राफेल एक लड़ाकू विमान है जिसे देश की सेना को मजबूत करने के लिए और युद्ध होने की दशा में देश के दुश्मनों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाना है. कांग्रेस सरकार इस राफेल सौदे को अपने कार्यकाल में क्यों नहीं निपटा पायी यह अपने आप में बड़ा सवाल है. लेकिन जब मोदी सरकार ने अपने शासन काल में राफेल सौदे को कांग्रेस सरकार से भी बहुत बेहतर कीमतों पर निपटा दिया तो कांग्रेस पार्टी, उनके नेता राहुल गाँधी और उनके चमचों ने यह दुष्प्रचार शुरू कर दिया कि राफेल सौदा कांग्रेस सरकार के समय तय की गयी कीमतों से महंगा किया गया है.
राहुल गाँधी शायद पूरी दुनिया को यह बताना चाहते थे की जिस “राफेल” का सौदा मोदी सरकार ने किया है, उसमे राफेल लड़ाकू जहाज़ के साथ-साथ और ऐसी क्या क्या चीज़ें लगाई गयी हैं, जिससे लड़ाई की दशा में दुश्मन देश के छक्के छूट जाएंगे. एक बार राहुल की बातों में आकर मोदी जी यह बता देते कि जिस “राफेल” का सौदा उन्होंने किया है, उसमे क्या-क्या सामान लगाया गया है, फिर दुश्मन देशों का काम आसान हो जाता, कदाचित राहुल गाँधी यही चाहते थे और अपनी इच्छा पूरी न होते देख वह हर दिन नए नए सफ़ेद झूठ बोलकर यह आरोप लगा रहे थे कि सरकार कुछ छिपा रही है क्योंकि इसमें कोई घोटाला है.
कांग्रेस पार्टी की यह आदत है कि हर छोटी-मोटी बात पर यह अपना दुखड़ा लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँच जाती है- रात के अंधरे में भी इनके नेता अदालतों का दरवाज़ा खटखटाते देखे गए हैं. यह लोग इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गए लेकिन राफेल में किसी घोटाले का सबूत वहां भी पेश नहीं कर सके और वहां भी इन्हे मुंह की कहानी पडी- सुप्रीम कोर्ट से मोदी सरकार को इस मामले में क्लीन चिट मिलने के बाद भी राहुल और कांग्रेसियों का झूठ बोलना जारी रहा और यह तरह-तरह के झूठ लगातार गढ़ते रहे. यह भी मांग की गयी कि अगर “राफेल” में सब कुछ ठीक ठाक है तो सरकार CAG की रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं कर देती. अब जब CAG ने भी अपनी रिपोर्ट दे दी है और इस बात की भी पुष्टि कर दी है कि कांग्रेस सरकार की तुलना में मोदी सरकार द्वारा की गयी “राफेल डील” लगभग 2.86% सस्ती है, तो शायद यह सुप्रीम कोर्ट की तरह CAG की भी अवमानना कर दें और उसकी बात भी मानने से इंकार कर दें, क्योंकि इन्हें तो वह रिपोर्ट पसंद आएगी जिसमें यह कह दिया जाए कि मोदी जी ने कुछ “घपला” किया है.
यहां सबसे बड़ी गौर करने वाली बात यही है कि राहुल गाँधी के पास अपने इस सफ़ेद झूठ को साबित करने के लिए अगर कोई सुबूत होता तो वह उसे सुप्रीम कोर्ट में भी पेश करते और जब लोकसभा में स्पीकर सुमित्रा महाजन को भी देते. जब सुमित्रा महाजन ने लोकसभा में उनसे यह पुछा था कि क्या उनके पास अपने इन बेबुनियाद आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत है तो राहुल गाँधी ने एकदम साफ़ इंकार कर दिया था.
ऐसी हालत में सिर्फ अपनी कुर्सी की हवस पूरी करने के लिए मोदी को नीचा दिखाकर “राफेल” में किसी काल्पनिक भ्रष्टाचार को देश की जनता में फैला रहे थे ताकि मोदी सरकार किसी तरह से सत्ता से बाहर हो जाए, इनके हाथों में एक बार फिर से सत्ता लग जाए और यह देश को उसी तरह से लूटना शुरू कर सकें जैसे कि पिछले ६० सालों में इनकी सरकारों ने लूटा था.
राहुल गाँधी ने “राफेल” पर झूठ फैलाकर न सिर्फ मोदी सरकार को बदनाम किया बल्कि देश की सेना और सुरक्षा के साथ भी बड़ा खिलवाड़ किया है. जिस तरह की जानकारियां यह मोदी सरकार से “राफेल” के बारे में मांग रहे थे, उससे सबसे बड़ा फायदा दुश्मन देशों को होने वाला था. मोदी सरकार इनके दबाब में नहीं आयी और उसने देश की सुरक्षा के साथ कोई समझौता न करते हुए “राफेल” की किसी भी “तकनीकी जानकारी और उसकी कीमतों” को साझा करने से साफ़ मना कर दिया.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को खुद संज्ञान लेकर राहुल गाँधी पर देशद्रोह का मुकदमा नहीं चलाना चाहिए? सी बी आई के एक अफसर को एक ट्रांसफर के मामले में अवमानना के जुर्म में कोर्ट में एक दिन की सजा दी जा सकती है तो सुप्रीम कोर्ट की “राफेल” मामले में अवमानना और देश हित के साथ समझौता करने की सजा तो उससे भी “बड़ी” और ज्यादा “कड़ी” होनी चाहिए.