‘हां, हमें याद रखना होगा, जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता, याद रखना जीने का अंदाज ही कुछ और होता है।’ दरअसल, ये लाइन्स पंजाब के मशहूर कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ ने अपनी कविता ‘सबसे बुरा होता है सपनों का मर जाना’ में लिखी थी। एक क्रांतिकारी कवि जिसने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ कलम चलाई तो युवाओं को जगाने का काम भी किया।
आज बरबस पाश की याद आने बेमानी नहीं है, यह जटिल राजनीतिक समीकरणों और जनता की रहनुमाई का ढिंढोरा पीटने वालों के खिलाफ जनाक्रोश बनकर उभरे ताजा परिणामों में झलकते हैं। तीन राज्य, हिंदी के हर्टलैंड – मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान, से सालों बाद भाजपा की विदाई ने साबित कर दिया है शासन सिर्फ बयानबाजी और कोरे वायदों से नहीं चलता है। इसके लिए राजनीतिक रूप से परिपक्वता और निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। जिस तरह से उत्तरप्रदेश में दो धुर विरोधी सपा और बसपा लोकसभा चुनाव के ठीक पहले साथ आए हैं, उसने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बढ़ा दी है।
भले ही पीएम नरेंद्र मोदी बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सरकार का गुणगान करें। लेकिन, हालिया हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कमाल किया, इसकी तो बधाई मिलनी चाहिए, लेकिन बीजेपी को भी बधाई कि कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के जरिए पार्टी को कहीं ना कहीं फिर से आत्ममंथन का मौका मिला है। बीजेपी के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने एक दफा संसद में जिक्र किया था कि लोकतंत्र में मतभेद होना लाजिमी है, लेकिन मनभेद नहीं होनी चाहिए। और, बीजेपी की अगली पीढ़ी ने अटल जी का नाम याद रखा, लेकिन, उनकी सलाह को दरकिनार कर दिया। नतीजा सामने है एक झटके में ही तीन बड़े राज्य हाथ से निकल गए। हर तरह से हारती जा रही कांग्रेस अचानक सत्ता में आ गई और राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते-उठाते खुद बीजेपी उस चौराहे पर आ खड़ी हुई है जहां से एक सवाल उठता है कि ‘ये रास्ता कहां जाता है।’ अगर इस सवाल का जवाब जल्द से जल्द नहीं ढूंढा गया तो आने वाले कल में बहुत देर हो जाएगी।
दरअसल, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों में दो चीजें सामने आई। पूर्वोत्तर के आखिरी प्रदेश से कांग्रेस की विदाई हो गई तो तेलंगाना में एग्जिट पोल के अनुरूप बड़ी मार्जिन से टीआरएस सत्ता पर काबिज हो गई। देखने वाली बात है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी एग्जिट पोल के अनुसार ही कमोबेश परिणाम रहे। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के काम की बदौलत आखिरी समय तक परिणामों में खींचतान जारी रही। लेकिन, अच्छे दिनों का वायदा टूट गया, 15 साल बाद बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई। कांग्रेस के सिर जीत का ताज सज गया और भोपाल के रास्ते दिल्ली की दौड़ शुरु हो गई।
अब, कमलनाथ का सीएम बनना लगभग तय हो गया है। तो, दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम पर पार्टी में गुटबाजी भी शुरू हो गई है। कहा जाता है कि लोकतंत्र में हर गुजरता दिन सत्ता के लिए उलटी गिनती के समान होता है। इस लिहाज से कांग्रेस आलाकमान को अभी ही, इस गुटबाजी को रोकना होगा, अन्यथा, जो गत बीजेपी की हुई है, कहीं कांग्रेस को भी उससे ना दो-चार पड़े। और, ऐसा होता है तो जनता की उम्मीदों को टूटने से कोई नहीं रोक सकेगा।
कुल मिलाकर, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार चल रही है। राहुल गांधी विदेश में जाकर धाक जमा रहे हैं तो पीएम मोदी पुराने शब्दों को दोहराकर बीजेपी का पक्ष मजबूत कर रहे हैं। देखना होगा आने वाली होली में कौन किस रंग से मिलकर क्या रंग बनाता है। क्योंकि, होली के बाद ही लोकतंत्र का जश्न शुरू होगा। और, जनता राजनीतिक पार्टियों को असली होली मनाने का मौका देगी।