आप सभी को सचेत किया जाता है कि आने वाले कुछ दिनों में आपके फेसबुक, वाट्सैप अथवा ट्विटर पर वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे को लेकर यूएन के आंकड़े आदि देखने को मिल सकते हैं। साथ ही साथ पशु-पक्षियों को होने वाली हानि के प्रति आपको जागरूक करने वाले पोस्ट भी देखने को मिलेंगे। स्कूलों में बच्चों को पटाखे आदि ना जलाने की कसमें खिलाईं जाएंगी। आम बोलचाल की भाषा मे ‘क्लीन’ अथवा ‘ग्रीन’ नामक शब्दों का प्रचलन भी बढ़ते हुए महसूस होगा। यह गतिविधियां कुछ दिन तक हावी रहेंगी।
आखिरकार दीपावली की रात जब आप लक्ष्मी-गणेश की पूजा समाप्त कर बच्चों को अपने साथ पटाखे छूटाने ले जाएंगे तो हो सकता है की वो आपके साथ आने से मना कर दें। वह आपको घर के सामने बैठने वाले कल्लू डॉगी की संवेदनाओं के प्रति जागरूक कर सकते हैं या फिर दादाजी को होने वाली साँस की बीमारी के प्रति। यह सब बातें सुनकर आपकी उत्सुकता भी दम तोड़ देगी, जलने की प्रतीक्षा मे बैठे हुए अनार को समेट कर आप वापस अपने झोले में भर लेंगे और कल्लू को उसके हिस्से का खाना डाल कर घर के बाहर का दरवाज़ा बंद कर लेंगे। पटाखों को स्टोर की अलमारी में रख दिया जाएगा इस उम्मीद में की शायद भारत पाकिस्तान मैच के दिन शायद इन्हें घृणा से नही देखा जाएगा, तब तक स्टोर के अंधेरे में अपना उजियारा समेटे वो बैठे रहेंगे।
सफाई एवं सजावट की थकान आपको टीवी के सामने शिथिल होकर बैठने पर मजबूर कर देगी। टीवी पर लोगों को दीपावली मनाते हुए देख आप आंखे बंद कर नींद की ओर पलायन कर जाएंगे। अगले दिन आपको थोड़ी हैरानी अवश्य हो सकती है जब वायु समस्या पर लिखे लेख आपकी आंखों से ओझल होते हुए प्रतीत होंगे। वातावरण रक्षण पर वाद विवाद करने वाली जागरूक महिलाएं भी आपको दूर-दूर तक नज़र नही आएंगी। ऐसे में आपको घबराना नही है क्यूंकि कुछ ही महीनों में जल संकट का खतरा सामने खड़ा होगा और आप होली के लिये रंग खरीद चुके होंगे।