2018 प्रदर्शनों और धरनों का वर्ष है। प्रदर्शनों का सिलसिला जो चल निकला है वो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। प्रदर्शन आज का फ़ैशन और ट्रेंड हो गया। प्रदर्शन न हुआ मानसून हो गया। 5 को इस राज्य में है, 10 को उस राज्य में पहुँचेगा, 15 को तिस राज्य में। आलम यह है कि मानसून की बारिश उतने राज्यों में नही हुई जितने राज्यों में प्रदर्शन हो गए। उतनी मिलीमीटर बरसात न हुई, जितने किलोमीटर के प्रदर्शन हो गए।
फिलहाल हमारे मध्य प्रदेश में एक प्रदर्शन चालू हुआ है, जो बिहार होते हुए उत्तर प्रदेश पहुँच गया है। प्रदर्शन एक रेल गाड़ी हो गया है, इंदौर से रात को चली और अगली दोपहर इलाहाबाद पहुँच गयी। हमारे एक मित्र ने एक व्हाट्सएप भेजा, प्रदर्शन के पक्ष में था, उसमें फारवर्ड करने का निवेदन था, सो हमने कर दिया। और इसी पर लिखने का मन हो गया।
तमिल नाडु में प्रदर्शन हो रहा है कर्नाटक के खिलाफ, कर्नाटक में तमिल नाडु के खिलाफ। दिल्ली में हरियाणा के खिलाफ प्रदर्शन, हरियाणा में दिल्ली के खिलाफ। बंगाल में प्रदर्शन, गुजरात में प्रदर्शन।
आज दसों दिशाओं से प्रदर्शन की ख़बरें आ रही है। जाति पर, आरक्षण पर। लेफ्ट प्रदर्शन कर रहा है, राइट प्रदर्शन कर रहा है, सेन्टर प्रदर्शन कर रहा है। कांग्रेस का भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन तो भाजपा का कांग्रेस के खिलाफ। आम आदमी पार्टी का दोनों के खिलाफ प्रदर्शन। सोमवार को इस बात पर प्रदर्शन, मंगलवार को उस बात पर प्रदर्शन। सातों दिन प्रदर्शन। बारहों महीने प्रदर्शन। सड़क पर प्रदर्शन, ट्विटर पर प्रदर्शन। जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे प्रदर्शन, कवि भी पीछे रह गए। हाल यह है, जितने मुद्दे नहीं है, उतने तो प्रदर्शन है।
एक आम आदमी सुबह उठता है, अखबार पढ़ता है, चाय पीता है, नहा-धो कर काम पर चला जाता है। प्रदर्शनकारी भी यही करता है। पर वो काम पर नहीं जाता। वो प्रदर्शन पर निकल जाता है। दस से दो इस चौराहे पर प्रदर्शन है, तीन से छह दूसरे चौराहे पर प्रदर्शन। बीच में लंच-सपर। बड़ा बिजी शेड्यूल होता है। कुछ प्रदर्शनकारी तो ऐसे भी होते है जो एक दिन एक के विरोध में प्रदर्शन करते है और दूसरे दिन विरोधी के पक्ष में हो कर पहले के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं।
धरनों का तो कहना ही क्या। किसने नहीं किया धरना? एक राज्य के मुख्यमंत्री ने तो धरनों को वो ऊचाईयाँ दी है, जो पहले उसे कभी हासिल न थी। उन्होंने तो अपने गुरु को भी मात कर दिया इस में।
अमेरिका में तूफान आते है, हमारे यहाँ आंधी आती है। प्रदर्शनों की। आती है और सब खत्म कर जाती है। पीछे छुटता है जलती हुई गाड़ियाँ, टूटे हुए कांच, लुटी हुई दुकानें, बर्बाद हुए घर। हज़ारों करोड़ों का नुकसान। अपना नहीं है तो तोड़ दो, फोड़ दो, जिसका नुकसान हुआ वो जाने। हमारा क्या था। हुँह। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कब अपने सामने आई हुई चीजों को राख कर देगा, कह नहीं सकते। शुरू शांतिपूर्ण होते है, पर धारा १४४ लगा जातें हैं। फिलहाल हमारे मध्य प्रदेश में सभी जगह यह धारा लगी थी। फ्लैग मार्च हो रहा था जगह-जगह।
एक होता है भारत बंद। भारत बंद तो अब रविवार की छुट्टी जैसा हो गया है। हर हफ़्ते आता है। एक भारत बंद गुज़रा पिछले हफ़्ते, एक भारत बंद आ रहा है अगले हफ़्ते। असल में दूध की नदियाँ इन बंद के दौरान ही मुझे देखने को मिली। हमारे पूर्वजों ने जो सपना तब देखा था, उन्हें उनकी संतति आज पूरा कर रहें है। सड़कों पर जगह-जगह दूध की नदियाँ बह रही है। ट्रक जला दिया तो क्या, दूध की नदियाँ भी तो बहायी है हमने। कभी एक समाज बंद करवाता है, कभी दूसरा। राजनैतिक पार्टियाँ तो बंद करवाती है ही। दो दिन बाद एक और भारत बंद है। और अगर इसमें आपने साथ नहीं दिया, तो मार-पीट की जाती है, धमकी दी जाती है। राजनेता, एक्टिविस्ट भी आ जाते है अपना प्रिय काम करने, हाथ सेेंंकने। हर आदमी दूसरे से ज्यादा प्रदर्शन करने में लगा है। यह तो अच्छी बात है, कि अभी घर-घर में प्रदर्शन शुरू नहीं हुआ। मालूम पड़े, कि 10 साल के मुन्ना ने प्रदर्शन शुरू कर दिया है कि उस पर होमवर्क करने का दबाव डाला जा रहा है। उसके माता-पिता उसपर ध्यान नहीं दे रहे है। वो अनशन पर बैठने की धमकी दे सो अलग विषय।
प्रदर्शन की एक ख़ासियत है। कभी सही कारणों पर नहीं होता। हर साल बारिश होती है, हर साल बाढ़ आती है, हर साल नुकसान होता है। पर कोई प्रदर्शन नहीं। गर्भवती स्त्री के पेट पर लात मार कर उसके बच्चे को मार देने वाले व्यक्ति के खिलाफ प्रदर्शन नहीं होता, उसका साथ दिया जाता है। चिकित्सा व्यवस्था बिगड़ी हुई है, उसपर प्रदर्शन नहीं होता। जनसंख्या पर प्रदर्शन नहीं होता है। होगा तो उस पर जिसमें अपना स्वार्थ हो। यही होता आया है, यही होता रहेगा।