लगभग कुछ समय से तो मीडिया का एक वर्ग लगातार राहुल गांधी की तारीफ़ो के पुल बांंधने में लगा है। जैसे उन्होंने कोई करिश्मा कर दिया हो। और बस चुनाव जीतकर देश के अगले प्रधानमंत्री बन गए हो। लेकिन ये सब एक दूर का सपना लगता है।
सबसे पहले पंजाब के विधानसभा चुनाव की बात करते है। जिसका सेहरा राहुल के सर पे डालने के लिए कांग्रेस में होड़ लग गयी है। लेकिन पंजाब की जनता साफ़ जानती है कि ये जीत राहुल गांधी की नहीं बल्कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की जीत है। जिन्होंने अपने सियासी ताजबूरे से इस जीत को संभव किया है। पंजाब के लोगो ने वोट कैप्टन अमरिन्दर को दिया है, राहुल को नहीं। राहुल जी ने तो चुनाव में पंजाब में गुजरात की तरह पूरे जोश से आना भी ठीक नहीं समझा। या फिर कैप्टन साहेब ने आने नहीं दिया। शायद इस लिए की वो जानते थे इसका फ़ायदा कम और नुकसान ज्यादा हो सकता है।
अब आते है गुजरात चुनाव की तरफ। गुजरात में तकरीबन बीस साल की anti-incumbency के बावजूद भी और तीन हुकम के इक्के अपने हाथ में होने के बावजूद भी कांग्रेस के हाथों सेगुजरात निकल जाना निश्चित ही कांग्रेस की जीत तो नहीं है। और अभी हुए उपचुनाव, जिसे सेमीफाइनल कहा जा रहा है, में जीत यकीनन हौसला बढ़ाने वाली है लेकिन अति-उत्साहित होना सही नहीं है, क्योंकि बीजेपी में अमितशाह जैसा चाणक्य है जो कि हार मानने वालों में से नहीं है।
और सिर्फ उपचुनाव में जीत को 2019 की जीत समझ लेना समझदारी तोह बिलकुल भी नहीं हो गईं। बीजेपी में अमितशाह नरेन्द्रमोदी जैसे दिग्गज लीडर है जो अपनी गलतियों से सीखने में कभी झिजक महसूस नहीं करते। और ऐसे अहम समयह में राहुल का विदेशी दौरा उनकी सियासी सूझबूझ के बारे में बताता है।
और जैसे अभी नतीजे आए हैं, नार्थ ईस्ट की जनता ने भी मोदी जी पर विश्वास जताया है। जनता का जवाब स्पष्ट है। जनता अब सिर्फ विरोध की राजनीती से आक चुकी है। जिस तरह बीजेपी अटक से कटक तक जीत का परचम फहरा रही है। 2019 में किसी चमत्कार की आशा करना कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल होगी।
कांग्रेस और बीजेपी के नेत्तृत्व में बड़ा अंतर है। बीजेपी सामने से हार की जिमेवारी लेना जानती है। लेकिन कांग्रेस हार के लिए राहुल को जिमेवार नहीं ठहराना चाहती। शायद जे उसकी मजबूरी है कि उसे गाँधी परिवार की जी हजूरी करनी पड़ती है। जिस किसी ने भी राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाया उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। कांग्रेस को अपने अंदर की कमी को देखना पड़ेगा और अपने श्रीश नेतृत्व से सवाल करने पडेंगे। नहीं तो बाद में 2019 के चुनाव में भी उसका ऐसा ही हश्र होगा। नहीं तो सांप के निकल जाने पर लकीर पीटने से कोई फायदा नहीं होगा।