Monday, May 6, 2024

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साधारण ज्ञान (Common Sense) : कोरोना से बचाव का मूलभूत सिद्धांत

भारत की अति प्राचीन इतिहास में बहुत कुछ है जिसकी मदद से इससे बचा जा सकता है, जिसकी मदद से इसका इलाज करने में अपरोक्ष रूप से मदद मिले।

चीनी वामपंथ की अमानवीयता: तिब्बत के बाद नेपाल पर गिद्ध दृष्टि

इस बार चीन एक तीर से तीन निशाने लगा रहा है। पहला कि चीन से बहुत ही बारिकी से मुसलमानों को निष्कासित करना, दूसरा नेपाल के जनजीवन को कोरोना संकट में ढकेलना तथा तीसरा आतंकवादी अपराधी एवं कोरोना से संक्रमित मुसलमानों को नेपाल के मार्ग से भारत में भेज कर कोरोना संक्रमण से भारतीय जनजीवन को तबाह और बर्बाद करना।

सब याद रखा जाएगा

महामारी से बचने को, सरकार की सख्ती वाजिब थी, पांच बार नमाज़ और सुन्नत की, अजीब तुम्हारी एक ज़िद थी। तुम सोचते हो हम भूलेंगे, पर सोचो कैसे भूलेंगे? जिसने सबको बीमार किया, वो निजामुद्दीन कि मस्जिद थी। सब याद रखा जाएगा।

प्रजातंत्र और अराजकता

प्रजातांत्रिक व्यवस्था के दो मुख्य स्तम्भ हैं, कर्तव्य एवं अधिकार और यह व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहे ,इसके लिए इन दोनों स्तम्भों के बीच संतुलन होना बेहद आवश्यक है।

शिवसेना के राहुल गांधी साबित हो रहे हैं आदित्य ठाकरे

लॉकडाउन के कारण हुई परेशानियों को सुलझाने में नाकाम रहे उद्धव ठाकरे को बचाने की कोशशें करते उनके बेटे आदित्य ठाकरे खुद को शिवसेना का राहुल गांधी साबित कर रहें हैं।

मीडिया की निगेटिविटी से बचने के लिए तीन मई तक आंख-कान ढंकना भी ज़रूरी है

अखबार-पत्रिकाएं भले ही अभी बंद हों लेकिन उसमें शोर मचानेवाले चुप नहीं हैं. वे सोशल मीडिया में जाकर चिल्ला रहे हैं कि लॉकडाउन की अवधि बढने से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड रहा है, गरीबों-किसानों-दिहाडी मजदूरों के सिर पर आसमान टूट पडा है.

वर्तमान परिदृश्य में भारतीय समाज का भविष्य

अभी हम एक ऐसे समाज मे जी रहे हैं जो मानसिक रूप से अलसिया गया है, एक समाज के नाते हमारा कर्तव्य है, की समाज को प्रभावित करने वाले जो भी कारक है उसके खिलाफ प्रखर आवाज़ उठाए, चाहे वह कनिका कपूर हो या या चाइनीज वायरस को घर- घर पहुचने वाले जमाती।

दुःख हमें भी होता है; लेकिन हम नकली विक्टिम कार्ड नहीं खेलते

जब देश के अलग अलग शहरों में पत्थरबाजी और आगजनी की खबरे सुनता हूं तो लगता है मानो देश में और छोटे छोटे कश्मीर बन रहे हो।

उर्दू गालियों की विकृत संस्कृति का बोझ ढोती हिन्दी

जिन्हे हम ‘हिन्दी गाली’ कहते हैं, जितने भी फूहड़ और यौन-कुंठा के शब्द हिन्दी गालियों के रूप में बताए जाते हैं। अगर उनके उद्भव की पड़ताल करें तो हिन्दी क्या किसी भी भारतीय भाषा से उनका संबंध दूर-दूर तक नहीं मिलता।

विधि का विधान या आपका संकल्प?

हम विधि के विधान को शायद न बदल पाए लेकिन यदि हमारी इच्छा शक्ति मजबूत है हम उसके प्रति समर्पित हो तो परिणाम प्राप्ति की प्रक्रिया को जरूर बदल सकते हैं।

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