सामान्यतः आपको दुनिया में दो तरह के व्यक्ति मिलते हैं एक वो जो कहते है कि जो किस्मत में लिखा हुआ है वो होकर ही रहेगा आप कुछ भी कर लो उसे बदल नहीं सकते और दूसरे वो होते जो कहते हैं किस्मत जैसा कुछ नहीं होता इंसान की इच्छा शक्ति उसका संकल्प ही उसका भविष्य निर्धारित करती है।
किन्तु मेरे विचार से ये दोनों चीजें अति हैं वास्तव में दोनों संभव हैं अब आप कहेंगे ऐसा कैसे हो सकता है? तो मैं आपको बताता ऐसा कई बार हुआ हैं और इसका उल्लेख रामायण में वाल्मीकि ने भी किया हैं।
आपको मै रामायण का वह प्रसंग बताता हूं जहां ऐसा उल्लेख हुआ हैं..
रामायण को पढ़ने वाले या उसे जानने वाले सभी को पता होगा कि राम भक्त हनुमान ने आजीवन प्रभु की सेवा के कारण ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लिया था किन्तु ब्रह्मा जी (नियति निर्माता) ने उनकी किस्मत में पुत्र योग लिखा हुआ था, यहां पर विधि के विधान और संकल्प में एक प्रत्यक्ष टकराव था क्योंकि ब्रह्मचारी के जीवन में पुत्र सुख नहीं होता हैं और हनुमान जी अपने संकल्प के प्रति इतने दृढ़ता से समर्पित थे की उनको विचलित करना विधि के लिए असम्भव था।
इस द्वंद की स्थिति के समाधान के लिए रामायण में मछली और उसके माध्यम से मकरध्वज के जन्म की कहानी को इस प्रकार रचा गया जिससे विधि का विधान भी अटल रहा और हनुमान जी का संकल्प भी।
अतः इस प्रसंग के माध्यम से आप सब से यही कहना चाहता कि हम विधि के विधान को शायद न बदल पाए लेकिन यदि हमारी इच्छा शक्ति मजबूत है हम उसके प्रति समर्पित हो तो परिणाम प्राप्ति की प्रक्रिया को जरूर बदल सकते हैं। हम अपने संकल्पों से प्रकृति को इतना विवश अवश्य कर सकते हैं कि वह कोई ऐसा मार्ग निकाले जिससे दोनों का सम्मान हो सके।