मित्रों वामपंथियों और तर्कवादियों ने सदैव “सनातन धर्म” के सभ्यता, संस्कृति, भाषा, इतिहास, भूगोल और समाजिक व्यवस्था को अपने आलोचना का केंद्र बनाया है। ये हमारे जितने भी धार्मिक और ऐतिहासिक पुस्तके हैँ उन्हें काल्पनिक बताते हैँ। यंहा तक की प्रभु श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के अस्तित्व पर भी प्रश्न खड़ा कर देते हैँ और इसमे उनका साथ देते हैँ जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से मलेच्छ हिन्दु जो मैकाले के बनाई हुई फैक्ट्री से अंग्रेजी बोलते हुए समाज के सामने आते हैँ।
ऐसे हि हमारे एक मित्र हैँ जो जन्म से तो ब्राह्मण पर हैँ पर कर्म से वामपंथी हैँ। वो अक्सर हि सनातन धर्म की निंदा करते हुए हमसे चर्चा परिचर्चा करने चले आते हैँ और विश्वाश मानिये प्रत्येक अवसर पर वो निरुत्तर होकर पलायन करते हैँ। इस बार जो मुद्दा उन्होंने उठाया था वो भगवान विष्णु के तीसरे अवतार “वाराह” से जुड़ा है। मित्रों “कांतारा” चलचित्र देखने के पश्चात इन्होने अपने वामपंथी मस्तिष्क से थोड़ी बहुत पढ़ाई की और आ गये आलोचना करने। आइये जो चर्चा और परिचर्चा उनके साथ हुई, उसकी रूप रेखा का अवलोकन करते हैँ।
वामपंथी:- क्या भाई तुम सनातनी कुछ भी बोल देते हो, तुम्हारे भगवान ने “वाराह” का रूप धरकर पृथ्वी को समुद्र से बाहर निकाला था। अरे मालिक सारा समुद्र तो पृथ्वी पर हि है तो अपने समुद्र में हि कैसे पृथ्वी डूब सकती है?
सनातनधर्मी:- हे जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी मित्र, तुमने वाराहरुपम का दर्शन किया है। क्या तुमने पृथ्वी का आकार देखा है, जो उनके दांतो के ऊपर स्थिर है।
वामपंथी:- हाँ देखा है,गोल है, तो क्या, पहले ये बताओ वो समुद्र कंहा है, जिसमें पृथ्वी डूबी हुई थी।
सनातनधर्मी:- हे वामपंथी सुनो जब तुम वामपंथी पैदा भी नहीं हुए थे, जब धरती को चपाती की तरह चपटी मानने वाले मैकाले और उसका मजहब अतित्व में नहीं था तब हमारे धर्मग्रंथों ने बता दिया था कि “धरती गोल है” और इसीलिए हम “भूगोल” विज्ञान के रूप में पृथ्वी का अध्ययन करते हैँ?
वामपंथी:- ठीक है, मान लिया, पर वो समुद्र तो बताओ जिसमें पृथ्वी को छुपा दिया था, और ये कह कर वामपंथी जोर से हंस पड़ा।
सनातनधर्मी:- हे वामपंथी सुनो! सर्वप्रथम हम तुम्हें इसके पीछे की पृष्ठभूमि बताते हैँ फिर तुम्हें उस समुद्र की भी जानकारी देंगे।
हमारे परमेश्वर बैकुंठ में निवास करते हैँ और यह हमारी पृथ्वी से लगभग “१२ अरब प्रकाश वर्ष ” से भी दूर है। बैकुंठ में प्रवेश करने हेतु जो सातवा द्वार है, उसके द्वारपालक “जय” और “विजय” नामक दो देव हैँ।
तुम्हें ज्ञात होगा हि कि प्रारम्भिक सभी ऋषियों की उत्पति ब्रह्मा जी से हुई है। ब्रह्मा जी के हि मानसपुत्र हैँ सनकादिक मुनी, जिन्हें बैकुंठ और ब्रह्मलोक सहित प्रत्येक लोक में आवागमन करने की सम्पूर्ण छूट है, अत: इन्हें कोई रोक नहीं सकता।
एक दिन जब सनकादिक मुनि भगवान से मिलने वैकुण्ठ गये, तो द्वारपाळ् जय और विजय ने उन्हें रोक दिया, उन्हें इस प्रकार रोकना ठीक नहीं था, लेकिन जय और विजय को इस बात का भान न रहा और सनकादिक मुनि के बारम्बार आग्रह करने पर भी उन्होंने मुनि को बैकुंठ में प्रवेश करने से वर्जित कर दिया!परिणामस्वरूप सनकादिक मुनि ने क्रोध के वशिभूत होकर जय-विजय को असुर योनि में जन्म लेने का शाप दिया की वे धरती पर जाकर असुर या राक्षस रूप धारण करेंगे।
जय और विजय को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने प्रभु से क्षमा याचना करते हुए, वरदान मांगा कि उनकी मुक्ति सदैव प्रभु के हाथों ही हो। परमेश्वर विष्णु ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर उन्हें वरदान दे दिया।
जय और विजय वैकुण्ठ से निकल कर दक्ष प्रजापति की पुत्री और दैत्य माता दिति के गर्भ से “हिरण्याक्ष” और “हिरण्यकशिपु” नामक दो परम पराक्रमी राक्षस के रूप में अवतरित हुए। इनके पिता ऋषि कश्यप के पुत्र थे। असुर रूपी होने के कारण ये शीघ्र ही अत्यंत बलशाली और विशाल हो गये।
असुरी प्रवृत्ति होने के कारण हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों ने धरती पर तांडव मचाना शुरु कर दिया। इन्होंने ने अपने ताकत और समर्थ्य के बल पर एक विशाल असुर साम्राज्य स्थापित किया, जिसमें भगवान विष्णु की उपासना करना वर्जित कर दिया गया। विष्णु भक्तो को विभिन्न प्रकार के क्रूर और अति अमानवीय प्रकार से प्रताड़ित किया जाने लगा।
वे संसार में अजेयता और अमरता प्राप्त करना चाहते थे। हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु दोनों अपने को तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ मानते थे। हिरण्याक्ष स्वयं विष्णु भगवान को भी अपने से भी तुच्छ मानने लगा।
भगवान विष्णु के सत्ता को चुनौती देते हुए हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया। जलमग्न पृथ्वी पर त्राहि त्राहि मच गयी। फलस्वरूप भगवान विष्णु ने अपने भक्तो और सम्पूर्ण पृथ्वी की सुरक्षा के लिए अपना तीसरा अवतार वराह (सूकर) रूप धारण किया।अपनी थूथनी की सूंघने की शक्ति की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने जल को स्तंभित कर पृथ्वी को अपनी कक्षा में स्थापित कर दिया था। इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए।
वामपंथी:- ठीक है, तुम्हारी कहानी सुन ली, पर ये तो बताओ वो समुद्र है कंहा, क्या हवा में है और अदृश्य है।
सनातनधर्मी:- हे जन्म से ब्राह्मण पर कर्म से वामपंथी मित्र सुनोतुमने नासा (NASA) का नाम तो सुना ही होगा जो अमेरिका की नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (राष्ट्रीय वैमानिकी और अन्तरिक्ष प्रबंधन) एजेंसी है। इस NASA के अनुसार खगोल विज्ञान की दो टीमों ने ब्रह्मांड में अब तक खोजे गए पानी के सबसे बड़े और सबसे दूर के जलाशय की खोज की है।
नासा के एक खोज के अनुसार:
“खगोलविदों ने पानी का सबसे बड़ा, सबसे दूर का जलाशय खोजा ” जिसमे पाया जाने वाला पानी, दुनिया के महासागर में मौजूद सभी पानी के १४० ट्रिलियन गुना के बराबर है और यह एक विशाल, स्वचालित ब्लैक होल को घेरता है, जिसे क्वासर (QUASAR) कहा जाता है। यह पृथ्वी से करीब १२ अरब प्रकाश वर्ष से अधिक दूरी पर स्थित है।
NASA ( नासा )की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिक मैट ब्रैडफोर्ड ने कहा, “इस क्वासर (QUASAR)के आसपास का वातावरण बहुत ही अनोखा है, क्योंकि ऐसा लगता है की यही इस पानी के विशाल द्रव्यमान का उत्पादन कर रहा है।”यह एक और बात की ओर इंगित करता है कि यह पानी ब्रह्मांड में हमेशा से व्याप्त है, यहाँ तक की ब्रह्माण्ड के बनने से पहले से भी। “हे वामपंथी ध्यान से सुनों “उस जलाशय का पानी, हमारी पृथ्वी के समुद्र के १४० खरब गुना पानी के बराबर है। जो १२ बिलियन से अधिक प्रकाश-वर्ष दूर है। अब बताओ ये जलाशय NASA ने ढूंढा, जिससे एक बात तो स्पष्ट हो गयी कि पृथ्वी के बाहर भी भारी मात्रा में जल उपस्थित है, जिसमे पृथ्वी जैसे कई ग्रह उपग्रह डूब सकते हैँ। अब निश्चित से बात है कि हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को इसी जलाशय या इसी के जैसे किसी अन्य जलाशय में छुपाया होगा।”
हे वामपंथी सुनो वैज्ञानिकों के अनुसार उन्होंने हब्बल दूरबीन से अंतरिक्ष में पानी का पता चलाया। इसमें बहुत संवेदनशील परा बैंगनी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसके जरिए टी डब्ल्यू हाइड्रे नाम के तारे के पास ठंडे पानी की भाप देखी गई। पानी की भाप से पता चलता है कि वहां इतना पानी मौजूद है जिससे धरती के सारे सागर भरे जा सकते हैं। इतना बड़ा सागर जिसे हिंदु धर्मग्रंथों ने भवसागर कहा गया है।
हमने वामपंथी को स्पष्ट किया।१:- हम सनातनियों की ये बात भी सिद्ध हो गयी कि पृथ्वी या तो गोल है या अंडाकार है(क्योंकि वाराह के कुछ मूर्तियों में इसे गोल और कुछ में अंडाकार दिखाया गया है!)
२:- पृथ्वी के बाहर, अंतरिक्ष में भी जल के स्त्रोत मौजूद हैँ, जो पृथ्वी पर पाये जाने वाले पानी से कई खरब गुना पानी वाले होते है।
३:- पृथ्वी जल के अंदर समायी हुई थी।
अब NASA की बात थी तो जन्म से ब्राह्मण और कर्म से वामपंथी मित्र को काटो तो खून नहीं वाली हालात से दो चार होना पड़ा अत: अपने कुतर्कों से स्वयं को समझाते हुए सनातन धर्म की महानता को स्वीकार करते भाग खड़े हुए।