मित्रों वैसे तो सनातन धर्म का इतिहास अनेक महान, साहसी और विद्वान स्त्रीशक्ति की संघर्षपूर्ण और प्रेरणादायक जीवन शैली से परिपूर्ण है परन्तु आधुनिक युग में यदि कोई मातृशक्ति अपने संघर्ष, धैर्य, साहस और सरलता से भारतवर्ष जैसे महान देश और दुनिया के सबसे प्राचीन लोकतंत्र के सर्वोच्च पद अर्थात “राष्ट्रपति” के पद को सुशोभित करें तो निसंदेह यह हम सबके लिए अत्यंत हि प्रेरणादायक होती है।
कुछ ऐसी हि संघर्षपूर्ण गाथा है हमारी अगली राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी की, आइये एक दृष्टि डालते हैं:-
पृष्ठभूमि:-
मित्रों श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का जन्म उड़ीसा राज्य में स्थित मयूरभंज जीले के बैदपोसि गांव में दिनांक २० जून १९५८ को हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री बिरंचि नारायण टुडु था जो संथाली आदिवासी परिवार से आते हैं।
मित्रों संथाली वाले मूल वक्ता को ही संथाल कहते हैं। संथाली भाषा बोलने वाले वक्ता खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, जो अपने को “होड़” (मनुष्य) अथवा “होड़ होपोन” (मनुष्य की सन्तान) भी कहते हैं। यहां “खेरवाड़” और “खरवार” दोनों शब्दों और उनके अर्थ में अंतर है। खेरवाड़ एक समुदाय है, जबकि खरवार इसी की ही उपजाति है। इसी प्रकार हो, मुंडा, कुरुख, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, भूमिज, महली रेमो, बेधिया आदि इसी समुदाय की बोलियां है, जो संताड़ी भाषा परिवार के अन्तर्गत आते हैं।
संताड़ी भाषा भाषी के लोग भारत में अधिकांश झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम राज्यों तथा विदेशों में अल्पसंख्या में चीन, न्यूजीलैंड, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, जवा, सुमात्रा आदि देशों में रहते हैं। संथाली भाषा भाषी के लोग भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है। किन्तु वर्तमान में इन्हे झारखंडी (जाहेर खोंडी) के रूप में जाना जाता है।
झारखंडी का अर्थ झारखंड में निवास करने वाले से नहीं है बल्कि “जाहेर” (सारना स्थल) के “खोंड” (वेदी) में पूजा करने वाले लोग से है, जो प्रकृति को विधाता मानता है। अर्थात् प्रकृति के पुजारी – जल, जंगल और जमीन से जुड़े हुए लोग। ये “मारांग बुरु” और “जाहेर आयो” (माता प्रकृति) की उपासना करतें है।इनके चौदह मूल गोत्र हैं- हासंदा, मुर्मू, किस्कु, सोरेन, टुडू, मार्डी, हेंब्रोम, बास्के, बेसरा, चोणे, बेधिया, गेंडवार, डोंडका और पौरिया।
मित्रों यद्यपि श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के दादा जी और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे परन्तु फिर भी उन्हें गरीबी की मार झेलनी पड़ी। गरीबी से जूझते हुए उन्होंने अपने गृह जनपद से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय से स्नातक की उपाधि अर्जित की। पढ़ाई पूरी होने के बाद एक शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की और कुछ समय तक इस क्षेत्र में काम किया।उन्होंने श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में सहायक प्रोफेसर और ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में एक जूनियर सहायक के रूप में काम किया।
संघर्ष जीवन का:-
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्री श्याम चरण मुर्मू से हुआ, जिससे उनके दो बेटे और एक बेटी हुई। परन्तु उनके पति का साथ उनको ज्यादा दिनों तक ना मिल सका और अकस्मात वो उन्हें अकेला छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गए। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी अभी इस दुःख से उबरी भी नहीं थी की उनके दोनों बेटे अकाल मृत्यु के शिकार हो गए। मित्रों अपने पति और दोनों बेटों को खोकर कोई भी मातृशक्ति अंदर तक टूट सकती है, उसकी समस्त दुनिया ही मानो उजड़ जाती है, परन्तु इस भयानक दुःख भरे वातावरण से स्वय को उबार कर अपनी एकमात्र बेटी के साथ श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने संघर्ष की वो गाथा लिखी जो अतुलनीय है। उन्होंने स्वय को समाज की भलाई के लिए पूरी तरह झोंक दिया।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का राजनीतिक करियर
उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ओडिशी से भारतीय जनता पार्टी के साथ ही की। भाजपा ज्वाइन करने के बाद उन्होंने वर्ष १९९७ में रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में हिस्सा लिया और सफलता प्राप्त की और अपने स्वर्णिम राजनीतिक जीवन का आरंभ किया।
भाजपा ने श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी को उनके समर्पण, अनुशासन और आदिवासी समुदाय की भलाई के लिए कार्य करने के उत्कंठा को देखकर पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा का उपाध्यक्ष बना दिया और साथ ही वह भाजपा की आदिवासी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं है।
इसके बाद ओडिशा राज्य में जब भाजपा और बीजू जनता दल की गठबंधन की सरकार अस्तित्व में आयी तो वो वर्ष २००० से २००२ तक वाणिज्य और परिवहन स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहीं। वर्ष २००२ से २००४ तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री के तौर पर भी कार्य किया। इसके पश्चात ओडिशा के रायगंज विधानसभा सीट से उन्होंने विधायकी का चुनाव भी २ बार जीता।
राज्यपाल के रूप में जीवन:-
वर्ष २०१५ से २०२१ तक झारखंड राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त हुईं। वह राज्य की पहली महिला गवर्नर बनीं और साथ ही किसी भी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनने वाली पहली आदिवासी महिला का ख़िताब भी उनके नाम हो गया।वे झारखंड राज्य की ९ वी राज्यपाल थी जिन्हें झारखंड उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह द्वारा राज्यपाल पद की शपथ दिलाई गई थी।
उनका कार्यकाल:-
मित्रों व्यक्ति यदि ज़मीन से जुड़ा रहता है और उसके अंदर यदि काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह पर नियंत्रण करने का अदम्य साहस हो तो वो व्यक्ति विशेष कितनी भी उंचाई पर क्यों ना पहुँच जाए, अपनी सरलता, सहजता और सहृदयता से सबका ह्रदय जीत लेता है और सबके लिए उपलब्ध रहता है। और श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ऐसी हि व्यक्तित्व की सम्राज्ञी हैं अत: उन्हें वर्ष २००७ में ओडिशा विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी भी लोगों खासकर आधी आबादी के आर्थिक स्वावलंबन और अहिंसा की प्रबल पक्षधर हैं। और इसी का परिणाम था की उन्होंने झारखंड की राज्यपाल के अपने कार्यकाल में राज्य के सबसे बड़े ४०० किलो वजनी चरखे का निर्माण राजभवन में करवाया था जिसके पीछे उनकी सोच थी कि राजभवन घूमने आनेवाले लोग आर्थिक स्वावलंबन के इस सबसे बड़े प्रतीक से प्रेरणा लेकर आत्मनिर्भर बन सकें।
वो सामाजिक समरसता कि वकालत करती हैं और आदिवासी समुदाय के भलाई और विकास के लिए सदैव प्रयास करती रहती हैं और इसी का परिणाम था कि वर्ष २०१७ में राज्यपाल के रूप में, श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने “छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम, १९०८”, और “संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम, १९४९” में संशोधन की मांग करते हुए झारखंड विधान सभा द्वारा अनुमोदित एक विधेयक को स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी राज्यपाल के रूप में अपने फैसले पर कायम रही और रघुबर दास के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी – सरकार से उन परिवर्तनों के बारे में स्पष्टीकरण मांगा जो आदिवासियों की भलाई के लिए लाए जाएंगे।
आधुनिक युग में जबकि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर आधे से अधिक बड़े स्तर नेता हो या अन्य राजनितिक पार्टीयों के नेता सभी के चरित्र् में भ्रष्टाचार के कुछ ना कुछ दाग अवश्य लगे हैं परन्तु यंहा श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की भांति पूर्णतया बेदाग व्यक्तित्व वाली राजनेता के रूप में स्वय को स्थापित कर चुकी हैं।
भारत के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने भारत के अगले राष्ट्रपति के लिये श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी अपना प्रत्याशी घोषित किया हैं। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने दिनांक २४ जून २०२२ को अपना नामांकन राष्ट्रपति पद के उम्मीद्वार के रूप में किया, उनके नामांकन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी स्वय प्रस्तावक के रूप में और रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह जी अनुमोदक के रूप में उपस्थित थे।
एक ऐसी मातृशक्ति जिसने अपने पति को खोया, अपने दोनों बेटों को खोया, गरीबी की अनवरत मारझेली, और आदिवासी समुदाय से होने के पश्चात भी अपने अदम्य साहस, संघर्ष, सरलता, सहजता और सहृदयता से ना केवल अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की अपितु सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गई।