जी हाँ मित्रों पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के १० वर्षो के कार्यकाल में जितने घोटाले और भ्रष्टाचार हुए उतने तो पूरी कांग्रेस ने मिलकर उससे पहले के ४५ वर्षो में भी नहीं किये थे और एक तरह से घोटालेबाजी और भ्रष्टाचार के साथ साथ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में राष्ट्र के साथ सबसे बड़ा धोखा किया गया था जिसे हम एंट्रीक्स-देवास डील के नाम से जानते हैं। आइये सर्वप्रथम हम देखते हैं कि इस डील के मुख्य किरदार कौन कौन हैं।
१:-UPA सरकार जिसके मुखिया श्री मनमोहन सिंह और सुप्रीम मुखिया श्रीमती सोनिया गाँधी थी।
२:- एंट्रीक्स :-इसरो(ISRO) की व्यावसायिक इकाई के रूप में एंट्रिक्स कार्पोरेशन का वर्ष १९९२ में गठन किया गया था। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य यही था कि इसरो (ISRO) के शोध और विकास कार्यों का व्यावसायिक इस्तेमाल किया जा सके। खास तौर पर एंट्रिक्स कार्पोरेशन का मुख्य कार्य निजी क्षेत्र में संभावनाएं तलाशनी थीं।
३:-देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक ‘उपग्रह कारोबार से जुड़े कामयाब लोगों की टीम ने वर्ष २००४ में एक भारतीय कंपनी के तौर पर उसका गठन किया था जिसका बेंगलूरु में मुख्यालय है।’ वर्ष २००४ में देवास के दो शेयरधारक थे जबकि उसकी चुकता पूंजी 1 लाख रुपये थी। इसमें से ९० हजार रुपये तो इसरो के एक मध्यम स्तर के अधिकारी ने दिए थे। बाकी १० हजार रुपये का योगदान देने वाला शख्स चतुर्थ श्रेणी का एक कर्मचारी था। वह इसरो में १९८८ से लेकर १९९७ तक काम करने वाले एमजी चंद्रशेखर का निजी सहायक रह चुका था। बाद में यही एम जी चंद्रशेखर देवास मल्टीमीडिया के चेयरमैन बन गए थे।
अब आइये समझते हैं ये पूरी डील क्या थी?
जनवरी २००५: एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन और देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के मध्य एक सौदेबाजी कि घटना घटी और एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के अनुसार:- — एंट्रिक्स कार्पोरेशन ने दो उपग्रहों के निर्माण करने,उनका प्रक्षेपण और संचालन करने के लिए सहमति व्यक्त की और उपग्रह ट्रांसपोंडर क्षमता का ९०% देवास को १२ साल के लिए लीज पर अर्थात पट्टे पर देने कि बात स्वीकार कि गई जिसकी कुल कीमत रु.१६७ करोड़ तय कि गई जिसकी सहायता से देवास ने पूरे भारत में हाइब्रिड उपग्रह और स्थलीय संचार सेवाएं प्रदान करने कि रूप रेखा खींची और यही नहीं इस समझौते के तहत देवास को ७० मेगाहर्ट्ज एस-बैंड स्पेक्ट्रम तक पहुंच प्रदान की गई।
जी हाँ मित्रों इस समझौते का जो सबसे खतरनाक और धोखा देने वाला पहलू था वो यही था कि जिस स्पेक्ट्रम को केवल सुरक्षा संबंधी सेवाओं हेतु हमारी सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियां या फिर बीएसएनएल हि उपयोग में ला सकते थे और जो देश कि सुरक्षा से जुड़ा था उस स्पेक्ट्रम को देवास जैसी प्राइवेट कंपनी के हाथो में सौपा जा रहा था और ये सब हो रहा था मनमोहन सिंह के विश्वासपात्र मंत्री जो बाद में गिरफ्तार भी किये गए थे , उनकी देख रेख में। जो S-Band स्पेक्ट्रम दी जा रही थी उसकी कीमत रू. १,000 करोड़ रुपए थी।
मित्रों जैसा कि आप इस तथ्य से भलीभांति अवगत होंगे कि वर्ष २०११ में २जी घोटाला सामने आने के बाद, एंट्रिक्स-देवास सौदे पर सीएजी(CAG) की ड्राफ्ट रिपोर्ट लीक हो गई थी। उसमें कहा गया था कि देवास को सैटेलाइट्स का इस्तेमाल करने देने के लिए जरूरी अनुमतियां नहीं ली गई थीं। सीएजी (CAG) कि रिपोर्ट सामने आने के बाद पहले से ही कई घोटालो और भ्रष्टाचार से घिरी यूपीए सरकार ने शर्म के मारे में बड़े बेमन से यह सौदा रद्द कर दिया था। अब आइये देखते हैं कि सौदा रद्द होने के पश्चात क्या क्य महत्वपूर्ण घटनाये घटी:-
श्री जी माधवन नायर इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष हुआ करते थे। अगस्त २०१६ में तत्कालीन इसरो प्रमुख जी माधवन नायर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर देवास को ५७८ करोड़ रुपए का “गलत” लाभ दिलाने का आरोप लगाया गया और सीबीआई ने इस मामले में अपने आरोप पत्र दाखिल किए। इसके पश्चात श्री जी माधवन नायर सहित कई महत्वपूर्ण लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में दिल्ली की एक अदालत ने जी माधवन नायर की जमानत याचिका मंजूर कर ली। सरकारी खजाने को कथिततौर पर करीब ५७८ करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने वाले इस मामले में अदालत ने ५० हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानत बॉन्ड पर जी माधवन नायर को जमानत पर रिहा कर दीया। गौरतलब है कि सीबीआई ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि ये लोग हाई प्रोफाइल हैं और जमानत पर रिहा होने के बाद फरार हो सकते हैं, हालांकि अदालत ने समन के बाद भी पेश नहीं हुए तीन आरोपितों को छोड़कर अन्य सभी आरोपितों की जमानत मंजूर कर ली और इनमें नायर के साथ-साथ इसरो के तत्कालीन निदेशक ए भास्कर नारायण राव तथा एंट्रिक्स के तत्कालीन कार्यकारी निदेशक आरके श्रीधरमूर्ति भी शामिल थे।
देवास में धीरे धीरे विदेशी निवेशकों का वर्चस्व स्थापित हो चुका था अत: उन्होंने अंतराष्ट्रीय न्यायालय के छत्रछाया में आर्बिट्रेशन कार्यवाही आरम्भ कर दी। परन्तु यंहा अपने हाथो से मोटी कमीशन कि रकम के हाथ से निकल जाने के कारण एनरॉन कम्पनी कि तरह हि UPA सरकार ने आँखों और कानों पर पट्टी बाँध ली और देवास को खुली छूट दे दी, जिसका परिणाम ये निकला की:-
वर्ष २०१२ में चंद्रशेखर देवास कंपनी के बोर्ड चेयरमैन पद से हटा दिए गए। उनकी जगह पर वेराइजन के पूर्व उपाध्यक्ष और प्रेसिडेंट लॉरेंस टी बैबियो को देवास का चेयरमैन बनाया गया। नए प्रमुख की अगुआई में देवास ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पंचाट में ले जाने का फैसला किया। देवास का कहना था कि भारत सरकार ने गैरकानूनी तरीके से सौदे को रद्द किया है। यह मामला पंचाट के समक्ष दो बार ले जाया गया और दोनों ही बार भारत को हार का सामना करना पड़ा। जी माधवन नायर का कहना था कि असल में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बचाने और देवास की मदद करने के लिए उस सौदे को रद्द किया गया था।
१:-सितंबर २०१७ में इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (आईसीसी) ने देवास में विदेशी निवेशकों की अपील पर भारत सरकार को देवास को 1.3 अरब डॉलर का मुआवजा देने का आदेश दिया।
२:- जून २०१९ मेंअंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCITRAL) न्यायाधिकरण ने पाया कि भारत ने देवास के विदेशी शेयरधारक डॉयचे टेलीकॉम एजी द्वारा शुरू की गई मध्यस्थता में जर्मनी की द्विपक्षीय निवेश संधि का उल्लंघन किया है अत: इन्होने भी जुर्माना थोप दिया।
३:-जनवरी २०२० मे तीन मॉरीशस-आधारित संस्थाओं CC/Devas (मॉरीशस) लिमिटेड, देवास एम्प्लॉइज मॉरीशस प्राइवेट लिमिटेड और टेलीकॉम देवास मॉरीशस Ld, जिन्होंने देवास मल्टीमिडिया प्राइवेट लिमिटेड में ३७.५% फीसदी हिस्सेदारी ले रखी थी, उन्होंने US कोलंबिया जिला अदालत में UNCITRAL के आदेश की पुष्टि की मांग की।
४:-अक्टूबर २०२० को अमेरिका के वाशिंगटन के पश्चिमी जिले के अमेरिकी फेडरल कोर्ट ने आईसीसी के अवॉर्ड की पुष्टि की, जिसमें इसरो की एंट्रिक्स को देवास को 1.2 बिलियन डॉलर का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
५:-मनमोहन सिंह के पापो को धोने के लिए मोदी सरकार ने अमेरिकी अदालत के उस आदेश को भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चूनौती दी और ये चूनौती रंग लायी क्योंकि नवंबर २०२०को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी अदालत के आदेश पर रोक लगा दी और दिल्ली हाई कोर्ट को आदेश को लागू करने के खिलाफ दलीलें सुनने का निर्देश दिया।
६:- इसके पश्चात जनवरी २०२१मे कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने एंट्रिक्स कार्पोरेशन को कंपनी अधिनियम के तहत देवास मल्टीमिडिया प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ एक समापन याचिका (Liquidation proceeding) नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल में शुरू करने का निर्देश दिया। एनएलसीटी (NCLT) ने देवास के खिलाफ एंट्रिक्स की याचिका स्वीकार कर लिया और प्रोविजनल लिक्विडेटर की नियुक्त कर दी।(एंट्रिक्स ने NCLT का रुख़ करते हुए आरोप लगाया था कि साल २००५ में तत्कालीन चैयरमेन जी. माधवन नायर समेत कंपनी के वरिष्ठ अफ़सरों ने देवास को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़ों से कॉन्ट्रैक्ट दिया था।)
७:-देवास मल्टीमिडिया प्राइवेट लिमिटेड ने NCLT के इस आदेश को NCLAT अर्थात नेशनल कंपनी ला अपीलेट ट्रिब्यूनल में अपील दायर करके चूनौती दी परन्तु सितंबर २०२१ में मोदी सरकार कि जबरदस्त पैरवी के कारण एनसीएलएटी ने देवास मल्टीमीडिया को बंद करने के एनसीएलटी के आदेश को बरकरार रखा।
८:- पर इसी बीच नवंबर-दिसंबर २०२१ मे क्यूबेक में एक कनाडाई अदालत ने देवास निवेशकों द्वारा भारत सरकार के खिलाफ मामला दर्ज करने के बाद दो अलग अलग आदेश पारित करते हुए वैश्विक एयरलाइंस निकाय आईएटीए को भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण (एएआई) और एयर इंडिया (एआई) से संबंधित कनाडा में स्थित सभी असेट्स की जब्ती कि कार्यवाही को पूर्ण करने के लिए अधिकृत किया।
९:- फिर मोदी सरकार के अथक प्रयासों के पश्चात दिनांक ८ जनवरी, २०२२ को कनाडा की अदालत ने अपने आदेश को रद्द कर दिया और आईएटीए के पास पड़ी एएआई संपत्तियों को फ्रीज करने पर रोक हटा दी। दूसरे आदेश में, अदालत ने अपने फैसले में संशोधन किया और आईएटीए के पास पड़ी एआई (एअर इण्डिया) की संपत्तियों का केवल ५० फीसदी हिस्सा ही अधिग्रहण करने की देवास के निवेशकों को अनुमति दी।
१०:- दिनांक १७ जनवरी, २०२२ को देवास मल्टी मिडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा NCLAT के आदेश को चूनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के खिलाफ कंपनी की अपील को खारिज करके देवास को बंद करने के एनसीएलएटी के फैसले को बरकरार रखा।और यही नहीं दोस्तों इस एन्त्रिक्स्-देवास समझौते को एक “राष्ट्रीय फ्राड” कि संज्ञा दी।
मित्रों UPA अर्थात मनमोहन सिंह के सरकार कि देश के प्रति भरी हुई गंदगी तब भी सामने आई जब २०११ में जब पूरी डील रद्द हो गई तो देवास अंतरराष्ट्रीय न्यायकर्त्ता के पास गया था और यूपीए सरकार को २१ दिनों के अंदर आर्बिट्रेटर नियुक्त करने के लिए कहा गया था लेकिन सरकार ने उसे नियुक्त नहीं किया था, जानबूझकर जिस प्रकार एनरॉन के मामले में भारत को जबरदस्ती हारने के लिए इन भ्रष्टाचारीयो ने हारने के लिए मजबूर कर दिया था पाकिस्तानी वकील रखकर।
सुप्रीम कोर्ट का ये फ़ैसला दिखाता है कि यूपीए सरकार ग़लत कामों में ना केवल शामिल थी अपितु सारा प्रोजेक्ट हि उनका होता था। यह पूरा समझौता भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए किया गया था और अब कांग्रेस पार्टी को बताना है कि इस तरह का धोखा देश की जनता के साथ कैसे किया गया।
विशेष:-
इसरो द्वारा गठित विशेष समिति ने भी एंट्रिक्स-देवास समझौते में देश के तीन शीर्ष वैज्ञानिकों पर संदेह जताते हुए कहा कि इस तरह के सौदों में जितनी पारदर्शिता अपनाई जानी चाहिए वह नहीं अपनाई गयी और कई स्थानों पर खुले तौर पर नियमों की अनदेखी की गयी। इस पूरे प्रकरण में देवास के द्वारा गलत जानकारियां दी गयी पर उनके बारे में कोई जांच नहीं की गयी और सरकार और अन्तरिक्ष विभाग के साथ बड़े सौदों के बारे में कोई सामान्य विचार विमर्श तक नहीं किया गया और न ही इसके बारे में पूरे वर्ष कोई सूचना ही दी गयी।
अब आप समझ गए होंगे कि रक्षा मंत्रालय के लिए प्रयोग किए जाने वाले टेलीकॉम बैंड को प्राइवेट कंपनियों के हाथ बेचा गया, यूपीए सरकार की लालच के कारण आज मोदी सरकार को कई अंतरराष्ट्रीय केस लड़ने पड़ रहे हैं। यूपीए सरकार के इस फैसले की जानकारी उस वक्त कैबिनेट तक को नहीं दी गई। उससे भी बुरी बात यह है कि देवास ने एस-बैंड स्पेक्ट्रम पर मोबाइल सेवाएं शुरू करने का लाइसेंस हासिल करने के लिए आवेदन तक नहीं किया था।
कैसे पता चला:-
सबसे पहले वर्ष २००९ में इसरो के एक असंतुष्ट वैज्ञानिक ने एंट्रिक्स और देवास के इस सौदे के बारे में आवाज उठाई थी। इसके एक साल बाद अंतरिक्ष आयोग ने देवास के साथ हुए करार को रद्द करने की सिफारिश कर दी। उसके बाद ही नायर को इसरो प्रमुख के पद से हटने के लिए कह दिया गया था। फिर के. राधाकृष्णन ने इसरो की कमान संभाली जो इस मामले को सुरक्षा मामलों पर गठित कैबिनेट कमेटी के समक्ष भी ले गए। कैबिनेट कमेटी ने देवास-एंट्रिक्स सौदे को रद्द कर दिया और अग्रिम भुगतान के तौर पर दी गई रकम देवास को वापस कर दी। बहरहाल भारत को इस पूरे गड़बड़झाले की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। उस दौरान एक मीडिया के द्वारा किये गए खुलासे में दावा किया गया कि इस सौदे से नेशनल ट्रेजरी को 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो सकता था।
“यह कांग्रेस का फ़्रॉड है जो कांग्रेस के लिए था और कांग्रेस के द्वारा था।”
नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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