मित्रों पिछले भाग में हमने प्रयास किया था ये जानने का की “मनी लॉन्ड्रिंग” क्या है, कैसे की जाती है और इसके लिए दंड का क्या प्रावधान किया गया है, इस अंक में हम ये जानने का प्रयास करेंगे की आपराधिक आय से अर्जित संपत्ति के सन्दर्भ में क्या प्रावधान किया गया है इस अधिनियम के अंतर्गत।
अध्याय ३
धारा ५:- मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति की कुर्की।
(१) जहां निदेशक या कोई अन्य अधिकारी जो इस खंड के प्रयोजनों के लिए निदेशक द्वारा अधिकृत उप निदेशक के पद से नीचे का न हो, के पास उसके कब्जे में सुपुर्द की गयी सामग्री के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है (ऐसे विश्वास का कारण लिखित रूप में दर्ज किया जाना है), कि-
(अ) किसी भी व्यक्ति के पास अपराध की कोई आय है; तथा
(ब) अपराध की ऐसी आय को छुपाए जाने, स्थानांतरित करने या किसी भी तरीके से निपटाए जाने की संभावना है जिसके परिणामस्वरूप अपराध की ऐसी आय की जब्ती/ कुर्की से संबंधित किसी भी कार्यवाही में निराशा हो सकती है तो इस अध्याय के तहत, वह, लिखित आदेश द्वारा, आदेश की तारीख से एक सौ अस्सी दिनों से अनधिक अवधि के लिए ऐसी संपत्ति को अंतरिम या अस्थायी रूप से और उस प्रका से कुर्क कर सकता है, जैसा कि निर्धारित किया गया है:
बशर्ते कि कुर्की का ऐसा कोई आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि अनुसूचित अपराध के संबंध में, दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा १७३ के तहत एक मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेज दी गई है, या उस अनुसूची में उल्लिखित अपराध की जांच के लिए अधिकृत व्यक्ति द्वारा एक मजिस्ट्रेट या अदालत के समक्ष शिकायत दर्ज की गई है। अनुसूचित अपराध का संज्ञान, जैसा भी मामला हो, या इसी तरह की रिपोर्ट या शिकायत किसी अन्य देश के संबंधित कानून के तहत की गई है या दायर की गई है:
बशर्ते यह भी कि धारा ५ में किसी बात के होते हुए भी , इस धारा के तहत किसी भी व्यक्ति की कोई संपत्ति कुर्क की जा सकती है यदि निदेशक या कोई अन्य अधिकारी, जो निम्न पद का न हो इस खंड के प्रयोजनों के लिए उनके द्वारा अधिकृत उप निदेशक के पास अपने कब्जे में मौजूद सामग्री के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि यदि धन शोधन में शामिल ऐसी संपत्ति तुरंत संलग्न नहीं की जाती है इस अध्याय के तहत, संपत्ति की गैर कुर्की इस अधिनियम के तहत किसी भी कार्यवाही को विफल करने की संभावना है।
[परंतु यह भी कि एक सौ अस्सी दिनों की अवधि की गणना के प्रयोजनों के लिए, जिस अवधि के दौरान इस धारा के तहत कार्यवाही उच्च न्यायालय द्वारा रोकी गई है, उसे बाहर रखा जाएगा और एक और अवधि जो आदेश के आदेश की तारीख से तीस दिन से अधिक नहीं होगी ऐसे स्थगन आदेश की छुट्टी की गणना की जाएगी।];
स्पष्टीकरण :- इस धारा के अंतर्गत मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल किसी संपत्ति की कुर्की से सम्बंधित प्रावधान किये गए हैं। इस धारा के अनुसार निम्न परिस्थितियों के अंतर्गत कुर्की का आदेश किया जा सकता है:- अ) जब अनुसूचित अपराध (Scheduled Crime) के संबंध में, दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड), १९७३ (१९७४ का २) की धारा १७३ के तहत एक मजिस्ट्रेट को जाँच अधिकारी द्वारा रिपोर्ट भेज दी गई है, या ब) उस अनुसूची (Schedule) में उल्लिखित अपराध (Crime) की जांच (Investigation) के लिए अधिकृत व्यक्ति द्वारा एक मजिस्ट्रेट या अदालत के समक्ष अनुसूचित अपराध का संज्ञान, जैसा भी मामला हो, लेने हेतु शिकायत (Complaint) दर्ज की गई है, या (स)इसी तरह की रिपोर्ट या शिकायत किसी अन्य देश के संबंधित कानून के तहत की गई है या दायर की गई है:-
और फिर उपरोक्त परिस्थितयों में निदेशक (या कोई अन्य अधिकारी जो इस खंड के प्रयोजनों के लिए निदेशक द्वारा अधिकृत उप निदेशक के पद से नीचे का न हो), के पास उसके समछ प्रेषित की गयी रिपोर्ट या शिकायत पत्र (परिवाद) के साथ सुपुर्द की गयी सामग्री के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि
ऐसे किसी भी व्यक्ति के पास अपराध की कोई आय (Proceeds of Crime) है जिसके सम्बन्ध में दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड), १९७३ (१९७४ का २) की धारा १७३ के तहत रिपोर्ट भेज दी गई है; या जिसके विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई गयी है या जिसके विरुद्ध इस प्रकार की रिपोर्ट या शिकायत किसी अन्य देश के सम्बंधित कानून के तहत की गई है या दायर की गयी है और अपराध की ऐसी आय को छुपाए जाने, स्थानांतरित करने या किसी भी तरीके से निपटाए जाने की संभावना है जिसके परिणामस्वरूप अपराध की ऐसी आय की जब्ती/ कुर्की से संबंधित कोई भी कार्यवाही विफल हो सकती है तो इस अध्याय के तहत, वह, लिखित आदेश द्वारा, आदेश की तारीख से एक सौ अस्सी दिनों से अनधिक अवधि के लिए ऐसी संपत्ति को अंतरिम या अस्थायी रूप से और उस प्रका से कुर्क कर सकता है, जैसा कि निर्धारित किया गया है: यँहा इस बात का ध्यान रखना चाहिए की निदेशक को अपने विश्वास के पीछे के कारण को लिखित रूप में दर्शाना आवशयक है।
(२) निदेशक (या कोई अन्य अधिकारी, जो उप-निदेशक के पद से नीचे का न हो), उप-धारा (१) के तहत कुर्की के तुरंत बाद, आदेश की एक प्रति, उसके कब्जे में मौजूद सामग्री के साथ, उसमें निर्दिष्ट सामग्री के साथ, निर्धारित ढंग से एक सीलबंद लिफाफे में, उप-अनुभाग, निर्णायक प्राधिकारी (Adjudication Authority) को अग्रेषित करेगा अर्थात भेजेगा। न्यायनिर्णायक प्राधिकारी ऐसे आदेश और सामग्री को निर्धारित अवधि के लिए रखेंगे।
(३) उप-धारा (१) के तहत किए गए कुर्की का प्रत्येक आदेश उस उप-धारा में निर्दिष्ट अवधि (अधिकतम १८० दिन) की समाप्ति के बाद या धारा ८ [उप-धारा (३)] के तहत किए गए आदेश की तिथि,जो भी पहले हो, पर प्रभावी होना बंद हो जाएगा।
(४) इस धारा की कोई भी बात उप-धारा (1) के तहत कुर्क की गई अचल संपत्ति से “हितबद्ध व्यक्ति” (जिसमें संपत्ति में किसी हित का दावा करने वाले या दावा करने के हकदार सभी व्यक्ति शामिल हैं) द्वारा अपने हितों का आनंद लेने (अर्थात अपने अधिकार के अंतर्गत उसका उपभोग व् उपयोग करने) से नहीं रोकेगी।
(५) निदेशक या कोई अन्य अधिकारी, जो उप-धारा (१) के तहत किसी संपत्ति को अन्तरिम या अस्थायी रूप से कुर्क करता है, ऐसी कुर्की से तीस दिनों की अवधि के भीतर, ऐसी कुर्की के तथ्यों को बताते हुए न्यायनिर्णायक प्राधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज करेगा।
धारा ८ . न्यायनिर्णयन.-(१) धारा ५ की उप-धारा (५) के तहत शिकायत प्राप्त होने पर, या धारा १७ की उप-धारा (४) के तहत या धारा १८ की उप-धारा (१०) के तहत किए गए आवेदनों पर, यदि न्यायनिर्णयन प्राधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि “किसी व्यक्ति ने धारा ३ के तहत मनी लांड्रिंग का अपराध किया है या उसके कब्जे में अपराध से अर्जित संपत्ति है तो ऐसे व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी करेगा जिसकी अवधी ३० दिनों की होगी);
उपरोक्त नोटिस के माध्यम से वह उस व्यक्ति से अपनी आय, कमाई या संपत्ति के स्रोतों को इंगित करने के लिए कहेगा जिसमे से या जिसके माध्यम से उसने धारा ५ की उप-धारा (१) के तहत संलग्न/कुर्क, या धारा १७ या धारा १८ के तहत जब्त संपत्ति हासिल की है;
उपरोक्त नोटिस के माध्यम से वह उस व्यक्ति को अपनी आय से सम्बंधित समस्त सबूत जिस पर वह निर्भर करता है और अन्य प्रासंगिक जानकारी और विवरण प्रेषित करने के साथ ही साथ कारण बताने के लिए भी कहेगा कि क्यों ना उक्त सभी सम्पत्तियों को मनी लांड्रिंग में शामिल संपत्ति घोषित कर दिया जाना चाहिए और केंद्र सरकार द्वारा जब्त कर लिया जाना चाहिए।
बशर्ते कि जहां इस उप-धारा के तहत एक नोटिस किसी अन्य व्यक्ति की ओर से किसी व्यक्ति द्वारा धारित संपत्ति को निर्दिष्ट करता है, ऐसे नोटिस की एक प्रति ऐसे अन्य व्यक्ति पर भी तामील की जाएगी: बशर्ते यह भी कि जहां ऐसी संपत्ति एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से धारित की जाती है, ऐसे नोटिस की तामील ऐसी संपत्ति रखने वाले सभी व्यक्तियों को की जाएगी।
धारा ८ (२) न्यायनिर्णायक प्राधिकारी, के बाद-
(अ) उप-धारा (१) के तहत जारी नोटिस का जवाब सम्बंधित (पीड़ित) व्यक्ति ने प्रेषित किया है, तो उस पर न्यायनिर्णायक प्राधिकारी विचार करेगा;
(ब) पीड़ित व्यक्ति और निदेशक या उसके द्वारा इस संबंध में अधिकृत किसी अन्य अधिकारी को न्यायनिर्णायक प्राधिकारी उक्त विषय पर सुनेगा; तथा
(स) उसके सामने रिकॉर्ड पर रखी गई सभी प्रासंगिक सामग्रियों को ध्यान में रखते हुए, उपधारा (१) के तहत जारी नोटिस में संदर्भित सभी या कोई भी संपत्ति मनी-लॉन्ड्रिंग में शामिल है या नहीं इस निष्कर्ष पर पहुंचकर एक आदेश पारित करेगा:
बशर्ते कि यदि संपत्ति का दावा उस व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है, जिसे नोटिस जारी किया गया था, तो ऐसे व्यक्ति को भी यह साबित करने के लिए सुनवाई का अवसर दिया जाएगा कि संपत्ति मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल नहीं है।
धारा ८ (३) जहां न्यायनिर्णायक प्राधिकारी उपधारा (२) के तहत निर्णय लेता है कि कोई भी संपत्ति धन शोधन में शामिल है, वह लिखित आदेश द्वारा धारा ५ की उप-धारा (१) के तहत की गई संपत्ति की कुर्की या धारा १७ या धारा १८ के तहत जब्त संपत्ति या रिकॉर्ड के प्रतिधारण की पुष्टि करेगा और उससे सम्बंधित अपने निष्कर्षों को आदेश में उल्लेखित करेगा अर्थात लिखेगा।,
जब्त संपत्ति या रिकॉर्ड की ऐसी कुर्की या प्रतिधारण (Retention)-
(अ) एक अदालत के समक्ष किसी अनुसूचित अपराध से संबंधित कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान जारी रहेगा; तथा
(ब) ट्रायल कोर्ट में व्यक्ति का अपराध साबित होने के बाद अंतिम हो जाता है और ऐसे ट्रायल कोर्ट के आदेश को अंतिम(Final) माना जाता है।विशेष न्यायालय] द्वारा धारा ८ की उपधारा (५) या उपधारा (७) या धारा ५८ब या धारा ६० की उप-धारा (2अ) के तहत जब्ती का आदेश पारित किए जाने के बाद अंतिम हो जाता है।
साथियों इस अंक में बस इतना ही आगे की परिचर्चा हम अगले भाग में करेंगे।
Nagendra Pratap Singh (Advocate) [email protected]