सरकार मजबूत भी होती है और मजबूर भी होती है।
मोदी 2.0 के मत्रिमंडल में हुए बड़े फेरबदल को मजबूत सरकार के प्रतीकात्मक रूप में देखा जा सकता है। कई बड़े मंत्रियों को मंत्रिमंडल से निकालना बड़ा संदेश है, उसमे भी ऐसे मंत्रियों को बाहर किया गया जिनका कद राजनीति में बड़ा है। उनकी जगह ये मौका युवाओं को दिया गया है, नए मंत्रिमंडल की औसत उम्र अब 58 वर्ष है।
मंत्रिमंडल के विस्तार में समाजिक न्याय और गवर्नेंस को जोड़ा गया है। जिन लोगों को समाजिक न्याय का ध्यान रखते हुए मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है उनमें सिर्फ जाति समीकरण देखकर नहीं बल्कि उनकी मेरिट का भी खास ध्यान रखा गया है। मंत्रिमंडल में शामिल 24 पेशेवर लोग हैं जिन्हें देखकर ये कहा जा सकता है कि मंत्रिमंडल बिल्कुल इक्कीसवीं सदी के अनुरूप है।
लंबे समय तक देश की सियासत में ‘हैवी वेट’ समझे जाने वाले मंत्रालयों का पदभार सियासी समीकरण का शिकार होता था। हालांकि इस मंत्रिमंडल में टैलेंट को मानक बनाकर मंत्रालय बांटे गए हैं। यही मजबूत और मजबूर सरकार का सबसे बड़ा फर्क है। इस तरह का स्किल कैबिनेट पूर्ण बहुत की सरकार में बना पाना ही सम्भव है जहां गठबंधन या पार्टी फ्रैक्शन्स का दबाव नहीं होता।
राष्ट्रपति भवन में रेल और आईटी मंत्री के तौर पर शपथ लेते अश्विनी वैष्णव मजबूत सरकार का संपूर्ण विश्लेषण है।
देश की अधिकांश जनता ने शायद इससे पूर्व अश्वनी वैष्णव का नाम भी नहीं सुना होगा, उन्हें इतने बड़े मंत्रालय का कार्यभार केवल उनकी योग्यता की बदौलत सौंपा गया है। अश्वनी वैष्णव करीब 15 वर्षों तक कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक जिम्मेदारियों को संभाल चुके हैं, विशेष रूप से उन्हें बुनियादी ढांचे में (पीपीपी ढांचे में) उनके योगदान के लिए जाना जाता है।
इससे पूर्व भाजपा सरकार ने पहले मंत्रिमंडल के गठन में विदेश मंत्रालय जैसे हैवी वेट मंत्रालय में भी योग्यता के आधार पर एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया था। इन्हीं एस जयशंकर की काबिलियत को समझते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी 2013 में उन्हें विदेश सचिव बनाना चाहते थे, लेकिन कहा जाता है तब सोनिया गांधी के दखल के चलते सुजाता सिंह को विदेश सचिव बनाया गया था। सुजाता सिंह के पिता टीवी राजेश्वर गांधी परिवार के करीबी थे। मनमोहन सिंह मन मारकर रह गए। इसे मजबूर सरकार कहते हैं।