Thursday, April 25, 2024
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आरक्षण आंदोलन का सच

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PAPPU KUMAR DAS
PAPPU KUMAR DAS
Author , Activist

आरक्षण अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े समेत गरीब स्वर्ण को आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में समान रूप से प्रतिनिधित्व करने के लिए भारत सरकार द्वारा आरक्षण का प्रावधान किया गया है। अलग अलग राज्य आरक्षण को लेकर अपना कानून बना सकती है जो आमतौर पर राज्य के वोटरों की सामाजिक और आर्थिक हैसियत को देखकर राज्य सरकार द्वारा दे दिया जाता है गैर आरक्षित लोगों के लिए यह शैक्षणिक संस्थान, नौकरी तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बुरी तरह से प्रभावित करता है।

आरक्षण की सामाजिक स्थिति
एक तरफ आरक्षण का लाभ लेकर तीन-चार पीढ़ी तक अपने ही लोगों को सांसद, विधायक, मंत्री, अफसर आसानी से बना रहे हैं वही गांव की स्थिति इसके विपरीत बहुत ही खराब हैं। गांव के लोगों में आरक्षण को लेकर अलग-अलग अवधारणा है। पढ़े लिखे नौजवानों का कहना है कि आरक्षण में संशोधन की जरूरत है ताकि हम गरीब दलितों का आरक्षण अमीर और उच्च वर्गीय दलित नहीं ले सके, जब इन्हीं के परिवार से आरक्षण के ऊपर सवाल पूछा गया तो कुछ लोग यह कहते मिले कि आरक्षण में संशोधन होने पर हम लोगों को एक भी नौकरी नहीं मिलेगी जबकि कुछ लोग यह कहते मिले कि आरक्षण संशोधन होने से हम लोगों का जमीन फिर से छीन लिया जाएगा। गले में हाँडी लटकाया जाएगा कमर पर झाड़ू बांधा जाएगा।

आरक्षण का कांसेप्ट इसलिए लाया गया था कि सभी का प्रतिनिधित्व समान रूप से हो। लेकिन यह दुख की बात है कि जिस दलित आदिवासी पिछड़ी जाति के नेता एक बार आरक्षण का लाभ लेकर संसद विधायक मंत्री बनते हैं वह अपने ही परिवार को गलत तरीके से आरक्षण का लाभ दिला रहे हैं। एक बार आरक्षण का लाभ ले कोई दिक्कत नहीं लेकिन लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी दलित आदिवासी समाज के साथ ही यह आरक्षणखोर नेता गद्दारी करते हैं।

आरक्षण का डर
जब कोई सामाजिक कार्यकर्ता मौजूदा आरक्षण को नए सिरे से लागू करने की बात करता है तो तथाकथित दलित अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व करने वाले नेता पत्रकार एक्टिविस्ट यह नहीं बताता है कि मौजूदा आरक्षण में संशोधन की जरूरत है। बल्कि बाबा आदम के जमाने का डर दिखाता है और पुरानी इतिहास की झूठी बातों को बताया जाता है कि सवर्णों उस जमाने में बहुत प्रताड़ित करता था जैसे गले में हांडी लटकाना, कमर में झाड़ू बांधना, इत्यादि।

आरक्षण आंदोलन
आरक्षण आंदोलन के दिन तथाकथित नेता सामाजिक कार्यकर्ता भोले भाले लोगों को इकट्ठा करके आरक्षण के अच्छाई या बुराई पर बात नहीं करता है। बात करता है कि स्वर्ण लोग विदेशी हैं हमारी सारी जमीन को यह लोग लूट लेंगे हम हिंदू नहीं हैं, हमें मूर्ति पूजा नहीं करना चाहिए हमें बुद्ध को मानना चाहिए। आरक्षण पर यह लोग सिर्फ एक ही बात बोलते हैं कि आरक्षण समाप्त कर दिया गया है। किसी दलित को नौकरी नहीं मिलेगा फिर से स्वर्ण के यहां नौकरी करना पड़ेगा। हिंदू देवी देवता को गाली हिंदुओं को गाली हिंदू प्रतिमाओं को भरी सभा में जलाया जाता है। सभी व्यक्ति के हाथ से मौली धागा कटवाया जाता है। औरतों को सिंदूर नहीं पहने को बोला जाता है धार्मिक ग्रंथ को जलाया जाता है। आरक्षण आंदोलन दिन आरक्षण मुद्दा ही नहीं है सिर्फ हिंदू विरोध।

आरक्षण का हासिल
जब आरक्षण आंदोलन होता तो गरीब लोगों के भीड़ को इकट्ठा करके राज्य सरकार और केंद्र सरकार के ऊपर दबाव बनाकर आरक्षण पर बातचीत होता है। और जब यह सफल हो जाता है तो गरीब दलित आदिवासी पिछड़े को मिलता क्या है आरक्षण रूपी झुनझुना आरक्षण वह भावनात्मक भेड़ है जो खुद खाई में तो जाता ही है। साथ ही आरक्षण प्राप्त करने वाले लोगों को भी खाई में गिरा देता सरकार भी ऐसे संवेदनशील मामलों पर चुप रहती है।

@TheCitizenRt

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