शासन की कुप्रबंधन तथा जनप्रतिनिधियों के अकर्मण्यता एवं असंवेदनशीलता के कारण शहर-शहर गांव गांव स्थिति भयावह होती जा रही है। सिर्फ सियासत के मलाई में मशगूल इन जनप्रतिनिधियों से अब लोगों की सासें ही नहीं भरोसा टूट रहा है। भरोसा टूट रहा है सिस्टम से, सरकार से। पहले जाँच के लिए लड़िये, अस्पताल के लिए लड़िये, रेमेडिसीवर के लिए लड़िये, फिर आत्मीय जनों से दूर एकांत से जूझते नियति का फैसला मंजूर कीजिए।
देश का यह सौभाग्य था की हमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में 545 सांसद, 245 राज्यसभा सांसद, चार हजार से भी ज्यादा विधायक, 2.5 लाख ग्राम पंचायत, लाखों जिला पंचायत सचिव, लाखों वार्ड मेंबर, नगर पालिका एवं महानगरपालिका के प्रतिनिधि हमें जनप्रतिनिधि के रूप में मिले। संविधान निर्माताओं को इस बात की संतुष्टि रही होगी की भारत के 500 प्लस शहरों के साथ 6 लाख गावों के लिए एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि लोककल्याण हेतू अधिकृत किया गया।
परन्तु दूर्भाग्य से आज जब वैश्विक महामारी पूरी मानव सामज को खत्म करने पर आमादा है, लोग रोग और भय से व्याकुल अस्पताल के अंदर और बहार चिकित्सा नहीं मिलने से दम तोड़ रहे हो तब यह जनप्रतिनिधि खुद को वैक्सीनेटे करा आराम से घर के चाहर दीवारियों में कैद कर लिए हैं। क्या इन प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी नहीं थी की PM care से मिले वेंटिलेटर को समय रहते इंस्टॉल कराते, ऑक्सीजन प्लांट तथा बेड के लिए मिले फण्ड सही समय पर उपयोग में लिया जाता। क्या अपने गांव, जिला, क्षेत्र के कोरोना पीड़ितों का एक सूचि बना उनके लिए अस्पताल की व्यवस्था, मेडिसिन किट, एम्बुलेंस की मनमानी को रोकना,ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की व्यवस्था, अस्पतालों के बहार हेल्प डेस्क बनाना, तथा राज्य-केंद्र के नोडल अफसर से नियमित को-आर्डिनेशन कर गरीब लाचार बेबस जनता की सेवा नहीं कर सकते थे? क्या यह छोटे छोटे सहयोग, सही जानकारी, अपडेटेड सूचि का बनाना एक जनप्रतिनिधि के लिए कठिन कार्य है ? जनता के बीच दीखते रहना भी महामारी के समय एक मनोबल बढ़ाने वाला कार्य है। देश के प्रधानमंत्री हों या राज्य के मुख्यमत्री इनसे सवाल जरूर पूछा जाये परन्तु सबसे ज्यादा गुनहगार इस त्रासदी में वह हर एक जनप्रतिनिधि है जो जनता के बीच से नदारद है।
किसी राज्य में लोकसभा या विधानसभा की पूरी या अधिकांश सीटें राज्य की जनता ने किसी एक पार्टी को दिया हो। अब उस मेंडेट की क्या उत्तरदाईत्व होना चाहिए? आज सभी चेहरों से मुखौटा और नकाब उतर चुके हैं, याद रहे की कोई भी लहार या संगठन सत्ता या जीत के लिए लम्बे समय तक समाज जीवन में सहायक नहीं बन सकता। व्यक्तिगत जनसेवा और खुद ग्राउंड पर लोगों के बीच खड़ा रहने से ही अपने स्थिति को बचाया जा सकता है।
इन अकर्मण्य राजनेतओं की आंखे न फूटी हो तो अपने शीर्ष नेतृत्व के संसदीय क्षेत्रों को ही एक नजर देख लेते। जहाँ लखनऊ में आपात स्थिति में राजनाथ सिंह ने DRDO के मदद से 2 -2 बड़े अस्पताल बनवा दिये वहीं नितिन गडकरी ने तो महज 7 दिन में रेमेडिसीवर प्रोडक्शन कंपनी सटार्ट करा दी, प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र को संभाल रहे अरविन्द शर्मा का काम काशी और आस पास के जिलों में अद्भुत रहा है। स्मृति ईरानी, गौतम गंभीर, प्रवेश वर्मा,तेजस्वी सूर्य का अपने कार्यालय से मुफ्त दवा वितरण, सैकड़ो ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर का वितरण, प्रतिदिन अपने क्षेत्र के हॉस्पिटाल की मॉनिटरिंग, लोगों को एक ट्वीट पर सुविधा उपलब्ध करने का प्रयास क्या इन्हे प्रेरणा देने के लिए काफी नहीं है?
आज जब मानवता खतरे में है इंसान स्वयं को बचाने में लाचार हो रहा हो तब इन समर्थवान लोगों को आइना दिखता सेवा भारती/आरएसएस का देश व्यापी अभियान जहाँ हर शहर हर ग्राम में अपने सिमित संसाधनों, तथा सरकारी दुर्भावना/कोपभाजनों के बावजूद छोटी छोटी टोलीयां बना कर अस्पतालों में लाचार बेबस लोगों के सहयोग में दिन रात एक किये हुए हैं, वह भी तब जब स्वयं को संक्रमित हो जाने का डर लगा रहता है।
दिल्ली का एक छोड़ा NGO (उदय फाउंडेशन) जिसमें कई पत्रकार-समाज बंधू जुड़े हैं, के जज्बे को प्रणाम करता हूँ की उन्होंने व्यक्तिगत प्रयासों से विदेश से 200 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर माँगा भलाई के काम में लग गए हैं। न जाने ऐसे कितने लोग/संगठन लग गए है जो साधन संपन्न नहीं है पर मन में वेदना है पीड़ा है अपने समाज के लिए देश- राज्य के लिए। कल किसी ने मुझे एक वायरल मैसेज को सत्यापित करने के लिए बोला तो मैंने दिए हुए नंबर पर कॉल किया,उस ग्रुप में 2 -3 लड़के -लड़कियां हैं। कोरोना में उनके द्वारा लोगों के लिए किये जा रहे सहयोग सुनकर हैरान रह गया।
सत्ता का मद और अहंकार लोकतंत्र में ज्यादा दिन तक नहीं टिकता।बेहतर होगा अपनी अपनी मांद- वातानुकूलित गुफाओं से बहार निकल जनता की सेवा में बितायें। जब समाज बचेगा ही नहीं तो आप प्रतिनिधित्व किसकी करेंगे? जो मदद कर रहे है उनके जज्बे को प्रणाम। मदद का जिनको सामर्थ्य मिला वो सौभाग्यशाली हैं, जिन्होंने सामर्थ्य का सदुपयोग किया वो प्रणम्य हैं।
वीरेन्द्र पांडेय
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार)