चारों तरफ खौफ का माहौल है, अंतिम संस्कारों के लिए लंबी कतारें हैं। हमेशा मन में यह डर बना होता है कि कहाँ से मनहूस खबर आ जाएगी। मन में घबराहट और बेचैनी होती है, क्योंकि हम इस समय बेबस और लाचार नजर आ रहे हैं। हम चाहते हुए भी हम अपनों का मदद करने में सक्षम नहीं हो रहे हैं। बाहर निकलना मना है। हम इतने मजबूर हैं कि लोगों को रोकर गले भी नहीं लगा सकते, सांत्वना भी नहीं दे सकते, क्योंकि शारीरिक दूरी का ध्यान जो रखना है। जब हम खुद को बचाएंगे, तभी तो दूसरों को बचा सकते हैं।
माहौल इस कदर बन चुका है कि सामान्य सर्दी, जुकाम होने पर भी मन विचलित हो उठ रहा है, हर तरफ सिर्फ भय का राज चल रहा है। अगर बीमारी है, तो उसकी ठीक से जांच नहीं हो पा रही है, अगर जांच हो गयी, तो अस्पताल में बेड नहीं मिल रही है, अगर बेड मिल भी गयी तो, औक्सीजन का व्यवस्था नहीं हो पा रहा है, जीवन रक्षक दवाइयाँ नहीं मिल रही हैं। एक साधारण व्यक्ति के लिए इस समय आसान नहीं है बीमार पड़ना, क्योंकि उसके पास न धन–दौलत है, न रसूख है, न किसी की पैरवी है, जो इस विकट परिस्थिति में सहायता कर सके। इस समय लोगों को बीमार पड़ने की चिंता से ज्यादा इस बात की डर है कि अगर वे बीमार पड़ गए, तो क्या अस्पताल में भर्ती हो पाएंगे?।
एक साधारण व्यक्ति, जिसके पास न धन की ताकत है न किसी पैरवी, वह जाय तो कहाँ जाय? किसी बड़े व्यक्ति की मौत पर संवेदना जताने वालों की तांता लग जाता है, वहीं किसी साधारण व्यक्ति की मौत की खबर लेने वाला कौन है ?आज हर जगह डर बिक रहा है, डर से मुनाफे कमाने की होड़ मची है, औक्सीजन से लेकर दवाइयाँ की कालाबाजारी आम हो गयी है, शमशानो पर भी अंतिम संस्कारों के लिए मोल भाव हो रही है। इम्यूनिटी बढ़ाने के नाम पर कुछ भी बिक रहा है। सोशल मीडिया पर ऐसी नकली दवाओं और नकली एक्सपर्ट की कमी नहीं है।
ऐसे में कोरोना के लिए वैक्सीन ही बचाव के रूप में विकल्प के तौर पर उपलब्ध है, यह बात तो तय है कि जिन–जिन ने वैक्सीन लगवाया है, उन्हे संक्रमण का खतरा कम है, अगर संक्रमित हुए भी, तो मारक नहीं होगा। जब भारत में बने वैक्सीन को भारत सरकार टीकाकरण के लिए अभियान चलाया, तब वैक्सीन पर विपक्षी पार्टियों के द्वारा खूब विरोध हुआ, वैक्सीन के बारे में यह तक कहा गया कि यह भाजपा का वैक्सीन है, हम नहीं लगाएंगे, यह कारगर नहीं है। अगर यह कारगर है, तो मोदी जी स्वयं क्यों नहीं लगवाते हैं?। हालांकि प्रधानमंत्री ने सारे विपक्षी पार्टियों और देश की जनता को संदेश देते हुए स्वयं टिकाकरण करवाया। देश में टिकाकरण अभियान जनवरी में जब शुरू हुआ, तब संक्रमण के मामले और मौत का संख्या बहुत कम थी और वायरस कमजोर होता दिख रहा था। यही वजह था कि लोगों में टिकाकरण को लेकर उतना गंभीर नहीं दिख रहे थे। लेकिन जब बीते कुछ दिनों से संक्रमण बढ़ने लगा तो सरकार ने भी टीकाकरण की एज कैटेगरी को बढ़ा दिया है। पहले 45 वर्ष से ऊपर के को –मौबिलिटी वाले व्यक्तियों को ही टिकाकरण हो रहा था। लेकिन एक अप्रैल से 45 वर्ष से ऊपर का कोई भी व्यक्ति टीका लगवा सकता है। लेकिन अब 1 मई से बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए यह एलान किया गया है कि 18 वर्ष से ऊपर के आयु वाले कोई भी व्यक्ति टीका लगवा सकता है।
हालांकि अब राज्य सरकारें यह आरोप लगा रहीं है कि राज्य में वैक्सीन नहीं है, जितना आपूर्ति होनी चाहिए थी, उतनी नहीं मिल रही हैं। लेकिन भारत सरकार का कहना है कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि वैक्सीन की बर्बादी भी हुई है, क्योंकि किसी भी योजना का लागू करना केंद्र सरकार के हाथ में है, वहीं उस योजना को सही ढंग से क्रियान्वित करना राज्यों की जिम्मेवारी है। अगर राज्य सरकार किसी ठोस रणनीति के तहत ऐसी योजन बनाए, जिसमें वैक्सीन न बर्बाद हो, क्योंकि जिस तरह के हालात कोरोना के दूसरी लहर में बनी है, उसमें टिकाकरण ही बचाव के रूप में सबसे उपयुक्त है।
टिकाकरण के काफी दिन हो गए हैं, लेकिन अभी भी लोग टीका लेने से बच रहे हैं। लोग डर रहे हैं, लोगों में यह अफवाह है कि टीका लेने के बाद मौत हो जाती है, जिसके कारण टीका नहीं लगवा रहे हैं। यह जरूरी नहीं कि टीके की वजह से ही मौत हो रही है, जैसे खबरों को प्रसारित किया जा रहा है, लोगों को बेतुका अफवाह से बचना चाहिए। मौत का कारण और भी कई हो सकते हैं। मामूली साइडफेक्ट के डर से टीका नहीं लेना कहाँ तक सही है?। भारत में बेनीफिट–रिस्क रेशियो में लाभ बहुत ज्यादा और खतरा बहुत ही कम है। टीका लगने के बाद यदि मामूली दुष्प्रभाव होता है, तो यह इस बात का संकेत है कि हमारा शरीर टीका लगने के बाद प्रतिक्रीया दे रहा है।
भारत में बने दोनों वैक्सीन का कोई मेजर साइडफेक्ट नहीं देखा गया है। लोगों को इस बीमारी को गंभीरता से लेते हुए अपनी बारी आने पर टिकाकरण जरूर करवाना चाहिए और स्वयं को इस महामारी के चपेट से बचाना चाहिए।
ज्योति रंजन पाठक -औथर व कौलमनिस्ट