आज झन्नू की आँख देर से खुली, उसने लपक के तकिये के नीचे से फोन निकाला और पूँजीवादी कंपनी के सिम से इंटरनेट चला दिया। ट्विटर की नीली चिड़िया पे हाथ रखते ही झन्नू के चेहरे पे चिंता की रेखाएं गाढ़ी हो गयी, लाल गैंग के सारे नर एवं मादा क्रांतिकारी अंगरेजी में ताबड़ तोड़ विचार ठेले पड़े थे और भक्त मंडली नेहरू जी का इतिहास उधेड़े पडी थी। दिमाग की नसों पे उच्चतम दाब डालने पर भी समझ नहीं पाया की मोदी ने कोई काण्ड किया है या फिर अम्बानी-अडानी ने कुछ और खरीद लिया है। झन्नू की उगलिया कुछ ज्ञान ठेलने को विह्वल हो रही है।
टाइमलाइन पे कुछ और गौर देने पे झब्बर भैया का ट्वीट दिखा तो मुँह से आह निकल गयी, मने की मन में ही कराह उठा “हाय दैय्या मोटेरा का नाम मोदी हो गया”। फिर क्या था झन्नू दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा, एक विचार बनाने के लिए देश के सबसे शांत चैनल की खबरे तलाशने लगा तो पता चला, की रात नौ बजे बैठकी में चर्चा का आयोजन है। मुद्दा है “क्या राज नेतावो के नाम पे क्रीड़ास्थलों के नाम होने चाहिए?”। फिर क्या था झन्नू के मन मस्तिष्क में विचारो का आवाह प्रवाह होने लगा। अभी बस मायावती के पुतले और मोदी के मोटेरा का तुलनात्मक अध्ययन शुरू ही किया था की अम्मा की चपेट कनपटी पर पडी और झन्नू सबकुछ छोड़ के बाथरूम की तरफ भगा।
अब प्रश्न ये है की “मोटेरा का नाम मोदी रखना कहा तक उचित है?”
मोदी आलोचकों, लाल बाबुओ और जिटरी (अंगरेजी शब्द है, जानबूझ के लिखा है) ट्विटरियो की माने तो, ये मोदी का तानाशाही की तरफ रखा गया पहला कदम है और ये अखंड भारतवर्ष में हुयी पहली घटना है, महाप्रलय बस कुछ दूर ही है। अटल जी की तरह सोचे तो बात इनकी भी ठीक ही है। भला कोई अपने नाम का दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम थोड़े बनाता है?
कुछ अतिउत्साहित उभरते हुयी राजनीतिक विश्लेषकों (जिनको अभी तक ये नहीं पता चल पाया है की वो किस पाले में है, उनकी हालत “वो बेटा जी किश्मत की हवा कभी इधर, तो कभी उधर वाली है) की माने तो “मोटेरा का नाम बदल के मोदी ने ठीक नहीं किया, इससे तो बहन मायावती का पुतले वाला पाप धुल गया। मोदी का कद घटा है। खैर अटल जी की तरह सोचे तो बात इनकी भी ठीक है।
चलिए छोड़ते है इस बात को, मेरे हिसाब से पंचो की राय माने तो “मोटेरा का नाम मोदी होना” एक चर्चा का विषय है और इसपर जम के चर्चा होनी चाहिए। आखिर कबतक प्रबुद्ध समाज “पावरी हो रही है ” या “बागपत की चाट युद्ध” में उलझा रहेगा। अब जबतक स्वेता जैसी किसी होनहार की जूम काल या प्रोफेसर साहब का कोई जूम वीडियो ना लीक हो तबतक “मोदी और मोटेरा ” पर घनघोर वाद प्रतिवाद होना चाहिए।
परन्तु एक बात समझ में नहीं आयी, हमारे कांग्रेसी बंधू इस मुद्दे पे किस मुँह से बोल रहे है? अकेले नेहरू चचा और शाही परिवार के नाम पे २३ से ज्यादा स्टेडियम और १९ खेल पदक है। इसी वंशावली में ऐसे प्रधानमंत्री भी हुए, जिन्होंने खुद को ही “भारत रत्न” दे डाला। ये बात तो ऐसी हुयी “जैसी मेले में मजनू के पिजरे में बंद किया गया मनचला, महिला सुरक्षा पे व्याख्यान दे”।
बहुत देर हो गयी झन्नू शौचालय से नहीं निकला है, लग रहा है शौच गद्दी पे बैठ के ही क्रान्ति लाने का प्रयास कर रहा है। सुना है कल रात उसने भरी हई मिर्च का अचार खाया था, इस कारण वश अगर वो कुछ ज्याद उत्तेजना प्रकट करे तो भक्त गणो से अनुरोध है की #अरेस्ट_झन्नू का हैसटैग ना चलाये- आज बात “मोदी और मोटेरा” तक ही रहने दे!