मुस्लिम लीग ने 1946 के चुनावो में 492 मुस्लिम बहुल सीटों में से 429 सीटें जीत ली थी। मतलब की 90% सीटें। कांग्रेस 1585 सीटों पर लड़ी और 923 सीटें जीती थी। जीतने का प्रतिशत तकरीबन 60% था, वो भी जब केवल दो बड़ी पार्टिया और कुछ छोटी महजबी पार्टियां ही चुनाव मैदान में थी। JDU भी बहुत सिकुलर बन रही थी। JDU ने 11 मुस्लिमो को टिकट दिया था, सभी उम्मीदवारों का हाल बुरा ही हुआ। इससे ये कोई भी समझ सकता है की खान्ग्रेस और दूसरी लिबरल पार्टिया उनकी पहली और नेचुरल पसंद नहीं थी, ना ही आज है, न ही कल होगी।
खान्ग्रेस और तथाकथित लिबरल और सिकुलर पार्टियों ने मुस्लिम वोटबैंक के लिये, सिकुलरिज्म और गंगा- जमुनी तहजीब की जो गंदगी फैलाई थी, उसे ढ़ोने का ठेका सिर्फ हिन्दुओ को ही दे रखा था और आगे भी दिए रखेंगे। हमारे मदिर तोड़े गएँ, बहन और माताओ का बलात्कार किया गया, हमारे पुस्तकालय जलाये गए, हमारी संस्कृत को खत्म किया गया। हम मूकदर्शक बने बस देखते रह गएँ गंगा-जमुनी तहजीब और सिकुलरिस्म का चोला ढ़ोने के लिये। न गंगा उनकी, न जमुना उनकी, बस जेहादी तहजीब ही उनकी थी। आज मुस्लिमो को एक जेहादी पार्टी मिल गयी है,अब वो खोंग्रेस्स या तथाकथित लिबरल पार्टियों को वोट नहीं देंगे। आने वाले समय में आप AIIM की सीटें बढ़ते हुए देखेंगे और इन सिकुलरो का रुदन भी सुनेंगे। आपको ये समझना होगा की, इस्लाम सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम ब्रदरहुड में विस्वास रखना सिखाता है।
मेरी बातो को आँख मूंदकर मत मानिये, आप हदीसो के साथ कुरान पढ़िए, तभी आप की आँखे खुलेंगी। इस्लाम जिस भी देश में भी गया, वहां की सभ्यता और संस्कृत को नष्ट करते हुए, सबका खतना कर दिया। खान्ग्रेस ने बहुत खाद-पानी दिया हैं, इन लोगो को। जितना नुकसान मुंगलो ने 300 सालो में भी नहीं किया, उससे ज्यादा तो इन बामपंथी और खोंग्रेस ने पिछले 50 सालो में ही कर दिया।
हमें फेक इतिहास पढ़ाया जाता हैं की मुग़ल दुनिया के सबसे बड़े सिकुलर थे, देश के लिए ब्लॉ-ब्लॉ किया है। देश को फलाना दिया, ढेकाना दिया, बेचारो ने सिर्फ दिया है, लिया कुछ नहीं। आज हम दुश्मनो से कई मोर्चो में लड़ रहे है, पहले है क्रिस्चन मिशनरीज, है जो एक हाँथ से हाथ से कुछ रुपये देते है, और दूसरे हाथ से बाइबिल। दूसरे वो हैं जो डरा धमका कर और हमारी घर की बहन-बेटियों के माध्यम से ७२ हरे पाने का सपना देख रहे है।
तीसरे हैं, सिकुलर जमात, कम्युनिस्ट, समाजवादी पार्टी, तृणमूल खान्ग्रेस,और खान्ग्रेस जैसे कई पार्टियाँ, जो हमारे समाज को नपुंसक बनाने का काम कर रही हैं। ये वही खान्ग्रेस और तथाकथित लिबरल पार्टियाँ है, जो कश्मीरी पंडितो के नरसंहार, लव जिहाद और इस्लामिक आतंकवाद पर मौन रहती हैं पर आतंकवादियों के एनकाउंटर पर रोती हैं, एनकाउंटर्स को फेक बताती हैं। आतकवादियों का महिमामंडन करते हुए थकती नहीं है। इसरो और बार्क के वैज्ञानिको को जेल भेजती हैं, मनगढ़ित केसों में। चौथे हैं निओ बौद्धिस्ट और खालिस्तानी जो किसी और के इशारो पर अपनी ही सभ्यता और संस्कृत को खा रहे है, भारत माता के टुकड़े करने के लिए बेकरार है। पाँचवे हैं, तथाकथित NGO वाले जो इन सब से सांठ-गाँठ करके बहुत ही प्यार से हमें ख़त्म कर रहे हैं।
इनमे सबसे ज्यादा खतरनाक हैं खान्ग्रेस, जो की इन सबकी जननी हैं। खान्ग्रेसी वही हो सकता हैं जो कुंडित हो, श्रेष्ठता की भावना से ग्रषित हो, जो सोचता हो की एकलौता वही सही हैं, उसे ही इस देश में शासन करने का अधिकार हैं, इसी सोच के चलते वो कई तरह के हथकंडो का प्रयोग करता रहता है, शासन करने के लिये, इस भूमि को लूटने के लिये। वो इतना गिरा हुआ हैं की यदि आज जयचंद जीवित होता तो वो बहुत ही खुश होता की उसके खून कितना विकास कर लिया हैं, ऐसा रूप ले चुका हैं की आम जन-मानष उसे पहचान ही नहीं पा रहा है। ये खान्ग्रेसी, कलयुग से भी ज्यादा रूप बदल रहे हैं दिन-प्रतिदिन। हम एक रूप पहचान पाते हैं , उससे पहले ही ये दूसरा और तीसरा रूप धारण कर चुका होता हैं। ये कभी NGO, कभी समाजवादी, कभी कम्युनिस्ट, कभी आतंकवादी, कभी जेहादी, कभी नक्सलाइड, कभी आपिये, और कभी लिबरल बन जाते हैं। इनके हज़ारो रूप है, बहुत ही मायावी होते हैं ये। इन खांग्रेसियों को पहचानना बहुत ही मुश्किल हैं। आपको ये समझना हैं की, देश में जो भी समस्याएं हैं, कही न कही, खान्ग्रेस से जुडी हुई हैं।
मजे की बात ये हैं की हम जाने-अनजाने इन सब की मदद की कर रहे हैं। ये सब सातवीं शताब्दी से चल रहा है। हमारे पूर्वज बहुत ही विद्वान् थे, उन्होंने बहुत कुछ बलिदान किया है, जो आज भी हमारे ह्रदय में सनातन धर्म बचा हुआ है। उस दिन शायद ये दुनिया ही न रहे, जिस दिन हमारा नामो-निशान न होगा। हर शताब्दी में जन नायक आतें रहे हैं, जो की हमारे होने का एहसास कराते रहे हैं। हमसे, हमारा ही परिचय कराते रहे है। इस शताब्दी में इसका श्रेय तो मोदी जी को भी जाता हैं। सारी जनता ने उन्हें इसी कारण वोट के साथ प्यार भी दिया हैं। मोदी जी ने भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने का वचन दिया हैं। हम मोदी जी की आलोचना तो कर सकते है, करना भी चाहिये, परन्तु उनका साथ किसी भी कीमत में नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसा करके, हम देश के दुश्मनो का ही साथ देंगे। नौकरियाँ तो कोई भी दे सकता हैं, अदानी, अंबानी, टाटा, फ्लिपकार्ट, पाकिस्तान, तुर्की, मलेशिया या कोई और दुश्मन देश भी दे सकता है। पर कई हज़ारो लोगो को उनके होने का एहसास तो मोदी जी ने ही कराया है, उन्होंने कुछ हद तक यूनाइट तो किया ही हैं।
इस भारतवर्ष दूसरा कोई भी माई का लाल पैदा नहीं हुआ था जो धारा 370 हटा दे और राम मंदिर बनवा सके। इसलिए हमारी ये नैतिक जिम्मेदारी हैं की मोदी जी के ऊपर विश्वास रखे और उन्हें सहयोग करे। अंत में मैं इतना ही कहूंगा की हम सबको चिंतन और मनन करने की आवश्यकता हैं की इतने जन-नायको के बाद भी हम हमेशा ही संघर्ष क्यों करते रहते हैं? क्यों इतना आसान है हमें आपस में बाटना? क्यों हमें अपने ही भाइयो का खून चूसने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है? और तो और, हम एक दूसरे का खून चूसने और नीचा दिखाने का प्रयत्न भी करते रहते है। हमें आपसी मतभेदो को भुला कर इनके कुचक्रो से निकलने की जरुरत है। हमें इन सिकुलरो के असली रूपों को समय रहते पहचानना होगा, तभी हम इनके जाल में फसने से बच पायेंगे।