पहले राक्षस मांस डालकर पवित्र धार्मिक कार्यों को अपवित्र करते थे। अब गोली मारकर निकले मगज डालकर। दो पहलु बन जाएं तो अनुष्ठान बंद कर देना ही सस्ता है जान गवाने से।Breaking India Forces के इन अंगों का अंतिम हिन्दू तक ‘कुछ हुआ ही नहीं‘ की मदहोशी में दुनिया को रखने का तरीका है।
हाईलाइट्स
- अनूठी परंपरा: मुंगेर पालकी विसर्जन
- वर्दी-गुरुर ने किया लहूलुहान और कलंकित
- हिन्दू परंपरा: पुलिस का ‘अत्याचार-परिसर‘
- मेरा सवाल
- Twitter: Breaking India Forces का हथियार ?
26 अक्टूबर 2020 को हिन्दू परंपरा लहूलुहान होने के कारण ‘खूनी सोमवार‘ के रूप में याद रखा जाएगा।
अनूठी परंपरा: मुंगेर पालकी विसर्जन
पालकी विसर्जन सनातन धर्म के ‘दानवीर‘ कहे जाने वाले कर्ण की माटी मुंगेर की प्राचीन विरासत है। ये परम्पराएं भारतीय लोकतंत्र की अड़िग जड़े हैं। बंजर जमीन से उगकर पुरे दुनिया को बंजर बना देने की प्रकृति के विपरीत सनातन धर्म क्षेत्रीय प्रकृति के साथ मिलकर अलग अलग रूपों में दिखाई देता है।
परंपरा
- नंगे पैर, बिना चमड़े का पहनावा पहने 32 कहार-भक्त की टोली ही पालकी से विसर्जन करती है
- विसर्जन से पहले मां अपने मायके जाती हैं
- ‘खोइछा पूजन’ जिसमें महिलाएं मां को सिंदूर लगाकर अखंड सुहागन रहने की वर मांगती हैं
- सभी प्रतिमाओं का ‘मिलन’
- जो भक्त आभूषण पहनाते हैं वही उतराते भी हैं
वर्दी-गुरुर ने किया लहूलुहान और कलंकित
बर्बरता है या तत्परता; सहयोग है या सितम बताने के लिए पुलिस नहीं रही।
चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीख पीछे नहीं होने दी और पुलिस ने विसर्जन की तारीख आगे नहीं होने दी। बीच में फँसी हिन्दू परम्पराओं, आस्थाओं और हिन्दुओं के हालत का चित्र है। पालकी के पास निहत्थी छोटी-सी भक्तों की टोली पर लाठीचार्ज। जान बचाकर भाग रहे भक्तों पर भी। अमानवीय बल प्रयोग की बढ़ती घटनाएं हिन्दुओं में ‘प्रवासी’ होने का मनोभाव पैदा करती है। और, उग्र विरोध दर्ज करने के लिए उकसाती भी है। गोलीबारी करने के बाद पुलिस एम्बुलेंस सेवा तक को सूचित नहीं किया। साइकिल, रिक्सा, मोटर साइकिल और कन्धों पर घायलों को पहुंचाया गया अस्पताल।अगर यह सख्ती है तो फिर यही सख्ती राजनीतिक रैलियों, ताजिया के दौरान पुलिस पर पत्थरबाजी और लॉकडाउन का पालन कराने गई पुलिस पर गोली चलने पर भी क्यों नहीं दिखती? तब तो पुलिस जान बचाने के लिए अपनी गाड़ी छोड़कर भागने लगाती है। इससे पुलिस की एक ही परिस्थिति में हुई दो घटनाओं में दो धर्मों को लेकर दो चेहरा – दरियालीदी और दरिंदगी – सामने आता है। शांति और सुरक्षा की सपथ लेने वालों की जुल्मी तांडव का एक उपमा मात्र है यह घटना।
यह हर हिन्दू में किसी खौफनाक सपने से भी ज्यादा खौफ भर दिया है। कार्यपालिका और विधायिका का जब गहरा सम्बन्ध तो न तो न्यायपालिका का डर होता है न ही गोली लगी हिन्दू उपासक के आरोप (03:04-03:10) को झुठलाने में आत्म ग्लानि। साथ ही, पिता के आरोप को झुठलाकर पुलिस के करतूतों को बदमाशों के नाम पर भक्तों पर ही मढ़ देने में दंडात्मक कार्यवाई का भय भी नहीं होता।
- ‘खोइछा पूजन’ की विधि नहीं
- ‘मिलन’ की विधि नहीं
- पुलिस के दबाव और जोरजबरजस्ती से चार बांस टूट गए
- प्रतिमान विसर्जन के क्रम को तोड़ने का आदेश
- चमड़े के बूट और बेल्ट पहने पुलिस ने प्रतिमा को उठाने की कोशिश
- आभूषण उतारने की विधि भी नहीं
- पालकी के जगह जेसीबी और ट्रैक्टर से प्रतिमा विसर्जन
प्रशासन चाहे चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में हो या राज्य सरकार के, पुलिस द्वारा हिन्दू रीती रिवाजों और प्रतीकों का दमन अब आम होता जा रहा है। जाँच चलने के बाद पुलिस का यह ‘चलन’ भी चला जाएगा, उम्मीद कम है।
हिन्दू परंपरा: पुलिस का ‘अत्याचार-परिसर‘
मुंगेर जैसी घटनाएं भारत में घटती ही रहती है। मन में भय और भागने की चौकसी लिए आराध्य के आगमन से विदाई तक हर्षित होना वैसे ही है जैसे गर्म पानी में ठंढक का उल्लास। ऐसा लगता है, वर्दी हिन्दुओं पर अत्याचार करने की एक लाइसेंस है। सत्ता और व्यवस्था की चुप्पी इस लाइसेंस को सम्मानित करने जैसा होता है। पुलिस द्वारा देश के विभिन्न भागों में हिन्दुओं के आस्थाओं को कुचलने की घटनाओं का एक चित्रात्मक सूचि।
ऐसी वारदातें किसके आदेश पर हो रही हैं? किस मंशा से हो रही हैं? इन सवालों के बीच जो सवाल गौण हो गया है वह यह है कि राजनितिक दल, मंत्री, प्रधानमंत्री, मीडिया, प्रशासन और न्यायपालिका का त्वरित तल्ख़ प्रतिक्रिया किसी भी रूप में क्यों नहीं आती? शायद, ये इकाइयां हिन्दुओं पर आम होते जा रहे इस प्रकार की समूल नाशक हालमों को लाइलाज मान चुकी हैं। क्या हिन्दू धर्म निरंकुश पुलिस व्यवस्था का पसंदीदा ‘शिकार-क्षेत्र‘ बन गया है जहाँ बिना डर भय के हिन्दू उपासकों को निशाना बनाया जाता है? हिन्दुओं की परम्पराओं को रीति अनुकूल नहीं बल्कि ‘हिन्दू विहीन इंडिया‘ के लिए अथक प्रयास कर रहे Breaking_India_Forces के अनुसार चलने के आलावा क्या कोई विकल्प नहीं है? इस उत्पन्न असुरक्षा के भाव का उपाय क्या है? अगली धार्मिक जुलुस भी कहीं मुंगेर 2.0 न हो जाए, हमेशा के लिए बैठ गए इस खौफ का क्या इलाज है? हिन्दू धर्म को जड़ से ही ख़त्म करने में लगी जेहादी, आतंकवादी, उग्रवादी जैसी राक्षसी ताकतों की एक कड़ी बनता जा रहा है पुलिस तंत्र?
मेरा सवाल
रामायण काल में राम और लक्ष्मण जैसे रक्षक होते थे, भय और विघ्न रहित धार्मिक अनुष्ठान के लिए। पहले राक्षस मांस डालकर पवित्र धार्मिक कार्यों को अपवित्र करते थे। अब गोली मारकर निकले मगज डालकर। जब रक्षक और भक्षक एक ही सिक्का के दो पहलु बन जाएं तो अनुष्ठान बंद कर देना ही सस्ता है जान गवाने से। मैंने सरकार और पुलिस से दो सीधे और कड़े सवाल पूछे। जो मेरा हक़ है और जिम्मेवारी भी। #Mungerdanga, #Mungermassacre जैसे हैस टैग ट्रेंड करने के बावजूद मैंने सिर्फ #Mungerkillings, #Mungerfiring और #Mungerpolice प्रयोग किया। माहौल ख़राब होने के लिहाज से। आखिर ऐसा क्या है इस सवाल में एक हिन्दू के कराह और विवसता के सिवाय?
दिनोदिन हिन्दूफोबिया के विष से विषैला ताकतों की बढ़ती जा रही हिन्दू धर्म पर प्रहार से खौफजदा होकर कोई भी विवेकशील व्यक्ति डरकर पूछेगा कि शांति से रहने की सजा कब तक? भीमकाय हो चुकी हिन्दू विरोधी ताकतों का मनोबल कब टूटेगा?
ट्विटर: Breaking India Forces का हथियार ?
Twitter न्याय की मांग कर रहे पीड़ितों की अकाउंट को ससपेंड (suspend) करके न्याय मांगने की अधिकार से ही महरूम कर रहा है। अकाउंट ससपेंड करने वाला Guideline-फतवा अधिकांशतः हिन्दुओं और राष्ट्रवादी स्वरों के खिलाफ जारी होता है। ऐसे उदाहरणों की भरमार है जिसमें हिन्दुओं के हर आयाम को अपमानित किया है। ऐसा करना कुछ समूहों के लिए मनोरंजन का विषय तो कुछ समूहों के लिए ‘भीड़ की ताकत‘ प्रदर्शन का तरीका है। और, विस्तारवादी नए तरीकों को आजमाने का फॉर्मूला भी।
लोगों की विरोध पर भले ही ऐसे लोग बाद में ट्वीट्स को डेलीट कर दिया हो। लेकिन, Twitter ने कितनों का और कितनी बार Guideline-फतवा जारी कर अकाउंट ससपेंड किया गया?
हिन्दुओं पर हुए अत्याचार पर ट्विटर का पर्दा और तर्क
‘Agerestricted Videos’ और ‘Some Audiance’ का चूरन देकर हिन्दुओं पर हुए अत्याचार के वीडियो का सिर्फ आवाज ही सुनाया जाता है। फोटो के साथ भी ऐसे ही पर्दा प्रथा लगा दिया जाता है।
उपाय
पुलिस की ऐसी मनोवृत्ति हिन्दुओं की सुरक्षा के साथ साथ संविधान की सुरक्षा पर भी गंभीर प्रश्न है। इस पर कड़े सवाल पूछने वालों को ही चुप कराते रहने की Twitter ही प्रवृत्ति हिन्दुओं में डर और बेचैनी को और बढ़ा रहा है। पुलिस और ट्विटर के लिए हिन्दू-आस्था ‘मनमानी-परिसर‘ बन रहा है। हिन्दुओं के प्रति हिंसात्मक और राक्षसी मनोवृत्ति के पीछे के कारणों पता लगाकर उसे जड़ से मिटाना ही होगा। नहीं तो आधा उड़ा हुआ माथा की अगली तस्वीर पूरा हो जाएगा। तब और दमखम लगाकर Youtube इस तस्वीर का विश्लेषण का कर रहे किसी अजीत भारती का वीडिओ ही गायब कर देगा और Twitter तस्वीर। Breaking India Forces के इन अंगों का अंतिम हिन्दू तक ‘कुछ हुआ ही नहीं‘ की मदहोशी में दुनिया को रखने का तरीका है। Twitter पर भी सख्त कार्यवाई करने की जरुरत है ताकि जिस अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार संविधान देता है उस पर Twitter का अधिकार न हो सके। दबकर और डरकर बोलने वालों की सांचा में पीड़ित हिन्दुओं को ढालने की नापाक मनसूबे खिलाफ देशव्यापी जन आंदोलन ही अस्तित्व की लड़ाई का एक मात्र रास्ता है।इससे पहले कि ये भीड़ इन तरीकों और फॉर्मूलों को अधिकार बना ले।
नोट: इस लेख में अधिकांश photos और videos के स्क्रीन शॉट का प्रयोग किया गया है जिसे OpIndia Hindi, YouTube और Twitter से साभार लिया गया है।