बीते कुछ दशकों में अमेरिका ने ऐसी भीषण हिंसा नहीं देखी होगी जो आज पूरे अमेरिका में दिख रहा है। जॉर्ज पियरे फ्लाइड की पुलिस के द्वारा मृत्यु के बाद मानों अमेरिका हिंसा से जल उठा हो। आज पूरी दुनिया में फ्लाइड को इंसाफ दिलाने के लिए ब्लैक लिबस मैटर का #चलाया जा रहा है। भारत में भी फ्लाइड की मृत्यु पर बॉलीवुड में काफी हलचल देखने को मिल रहा है। यहां पर एक नाम एंटीफा सुनने को मिल रहा है जिस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसको आंतकवादी संगठन घोषित करने को बोले हैं। एंटीफा 1930 के दशक में हिटलर और मुसोलिनी जैसो के विरुद्ध बना संगठन था जो उस समय के तानाशाह को रोकने के लिए बना था। लेकिन यहां पर बात आती है की एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा चुने गए राष्ट्रपति के विरुद्ध अभियान चलाना कितना जायज है।
यहां पर बात आती है की एंटीफा का अमेरिकी हिंसा और जॉर्ज पियरे फ्लाइड की मृत्यु से क्या संबंध है? कहने को तो एंटीका फासिस्ट सरकारों के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करता है और हास्यास्पद बात यह है की एंटीफा एक रेडिकल वामपंथी समूह है। इस बात से यह तो अंदाजा हो ही जाता है की यह कितना शांतिपूर्वक प्रदर्शन करता है। जहां-जहां पर वामपंथी शांतिपूर्वक प्रदर्शन का ढोंग करते हैं वहां पर हिंसा अपने चरम स्थिति पर होती है। फ्लाइड को इंसाफ दिलाने के नाम पर रेडिकल वामपंथी समूह ने अमेरिका में हिंसा और लूटपाट को भी वैद्य ठहरा रहे हैं।
ये वामपंथी समूह हमेशा से ही पूंजीवाद का विरोध करते आ रहे हैं लेकिन फिर भी यह पूंजीवाद से छुटकारा नहीं पा सके। क्योंकि जिस पूंजीवाद का यह विरोध करते हैं उन्हीं पूंजीवादी समूहों से इन्हें पैसा मिलता है और इनकी रोजी रोटी चलती है। जिस दुकानों को यह लोग लूट रहे हैं उन्हें दुकानों का कोई मालिक एक ब्लैक व्यक्ति भी हो सकता है जिसके लिए यह लोग ब्लैक लिब्स मैटर का #चला रहे हैं। वामपंथी विचार वाले लोगों का हमेशा से ही दोहरा रवैया रहा है जो समय समय पर देखने को हिंसा के रूप में मिल जाता है।
भारत में फ्लएड की मृत्यु पर काफी लोग दुखी हैं और होना भी चाहिए। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु जब होती है तब काफी दुखद होता है। भारत में वामपंथी समूह से लेकर बॉलीवुड तक में ब्लैक लिप्स मैटर का # चल रहा है। लेकिन यही बॉलीवुड वाले महाराष्ट्र के पालघर में दो साधुओं की मृत्यु पर मौन साधे बैठे हुए थे और उनके लिए कोई भी #नहीं था क्या वे लोग पुलिस और सामूहिक हिंसा द्वारा नहीं मारे गए थे यही दोहरा रवैया वामपंथियों के हिंसात्मक चरित्र को उजागर करता है। यही वामपंथी समूह इस समय अमेरिकी हिंसा के तर्ज पर भारत में भी अल्पसंख्यकों को हिंसा के लिए भड़का रहे हैं। वामपंथियों का घिनौना चरित्र भारत अमेरिका और चीन में दिख चुका है फिर भी यह शांतिपूर्वक प्रदर्शन का ढोंग करके हिंसात्मक गतिविधियों को आगे बढ़ा रहे हैं। और दक्षिणपंथी समूह चुपचाप इनके हिंसात्मक गतिविधियों को देख रहा है। दक्षिणपंथी समूह को राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ आकर इनको सामना करना चाहिए इनके हिंसात्मक चरित्र को उजागर करना चाहिए। आज जिस भी देश में दक्षिणपंथी विचारधारा वाले सरकारी है वहां वहां पर यह वामपंथी हिंसा फैलाए हुए हैं।
वामपंथी भी अजीब है जिस लोकतांत्रिक देश में रहते हैं वे उस देश का लोकतंत्र का दुरुपयोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए करते हैं। लेकिन जिस देश में वामपंथियों का शासन है उस देश का लोकतंत्र का गला घोंट देते हैं