भारतीय जीवन बीमा निगम, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, आई सी आई सी आई बैंक, आई डी बी आई बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कामर्स , इंडस इंड बैंक, यस बैंक और ए बी एन एमरो बैंक. यह कुछ ऐसी संस्थाएं हैं जहां देश की आम जनता अपने खून पसीने की कमाई को जमा करती है. लोगों को यह विश्वास है कि उनका पैसा इन बैंको या संस्थाओं के पास सुरक्षित रहेगा और जरूरत पड़ने पर यह पैसा जनता को वापस भी मिल सकेगा. पहले से ही बैंकिंग संस्थाओं की आर्थिक हालत काफी नाजुक चल रही है और उस नाजुक हालात के बीच अगर राजनीतिक दबाब में इन बैंकों को जबरन दान देने के लिए मजबूर किया जाए तो जो पैसा दान में जाएगा वह जनता का ही होगा क्योंकि बैंकों के पास अपना कुछ भी नहीं है. कांग्रेस सरकार जिस समय केंद्र की सत्ता में थी तो उस समय इन बैंको और संस्थाओं ने राजीव गाँधी फाउंडेशन को दान दिया था. राजीव गाँधी फाउंडेशन गाँधी परिवार का एक निजी पारिवारिक ट्रस्ट है और किसी भी ऐसी संस्था या बैंक जिसमे जनता का पैसा लगा हुआ हो, उसे इस तरह का दान इस तरह के प्राइवेट ट्रस्ट को नहीं करना चाहिए लेकिन क्योंकि केंद्र में सरकार कांग्रेस की थी और सरकार का नियंत्रण हमेशा से ही गाँधी परिवार के पास था, इस तरह की अवांछित गतिविधियां धड़ल्ले से अंजाम दीं गयीं.
गौरतलब बात यह है कि राजीव गाँधी फाउंडेशन की अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं और राहुल गाँधी, प्रियंका वाड्रा, चिदंबरम और मनमोहन सिंह इसके अन्य ट्रस्टी हैं. इस ट्रस्ट ने सभी नियमों कानूनों को ताक पर रखकर न सिर्फ विदेशी संस्थाओं से दान लिया है, बल्कि प्रधान मंत्री नेशनल रिलीफ फण्ड, केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभिन्न सरकारी कंपनियों से भी काफी मात्रा में दान लिया है.
राजीव गाँधी फाउंडेशन किस तरह से व्यक्तियों और संस्थाओं पर कांग्रेस सरकार का दबाब डालकर दान वसूल रहा था, उसका सबसे बड़ा सबूत इस बात से मिलता है कि जब 2009 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार थी, तब इन पांच सालों में राजीव गाँधी फाउंडेशन तो लगभग 29.48 करोड़ रुपये का दान मिला था लेकिन जैसे ही कांग्रेस सत्ता से बाहर हुईं तो 2015 से 2019 के अगले पांच सालों में इस ट्रस्ट को महज 8.89 करोड़ का ही दान मिला. मतलब साफ़ है कि सब कांग्रेस सरकार सत्ता में थी और दबाब बनाने की स्थिति में थी तब दबाब बनाकर ज्यादा से ज्यादा रकम की वसूली की गयी और जब कांग्रेस सत्ता से बाहर निकल कर सिर्फ कुछ राज्यों तक ही सिमट गयी तो वह ज्यादा दबाब बनाने की स्थिति में नहीं रही और इसके चलते दान की रकम की मात्रा में भारी गिरावट आ गयी.
अब जब सब कुछ खुलकर सामने आ गया है और कांग्रेस और गाँधी परिवार देश की जनता के सामने पूरी तरह बेनकाब हो चुका है तो कांग्रेस पार्टी और उसके नेता इस तरह के बेहूदा तर्क देकर अपने काले कारनामों का बचाव कर रहे हैं, जिन्हे सुनकर इन लोगों के मानसिक दिवालियेपन का ही सुबूत मिल रहा है. कांग्रेस पार्टी का कहना है कि राजीव गाँधी फाउंडेशन ने चीन से पैसा लिया तो क्या पी एम केयर फण्ड ने चीनी कंपनियों से पैसा नहीं लिया? पहली बात तो यह है कि राजीव गाँधी फाउंडेशन जैसे एक परिवार के निजी ट्रस्ट से भारत सरकार के फण्ड की तुलना करना ही अपने आप में हास्यास्पद है. पीएम केयर फण्ड एक भारत सरकार का फण्ड है जिसमे कोई भी व्यक्ति का संस्था दान दे सकती है. जो चीनी कंपनियां भारत में अपना धंधा कर रहे हैं, उन्होंने भी पीएम केयर फण्ड में दान दिया है और वह नियमों के अनुसार दिया है. गाँधी परिवार से सवाल यह किया जा रहा है कि उन्होंने अपने फॅमिली ट्रस्ट राजीव गाँधी फाउंडेशन में चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी से चंदा क्यों लिया और वह भी उस समय जब उनकी केंद्र में सरकार थी? कांग्रेस पार्टी के नेताओं को जल्द से जल्द इन सवालों का जबाब देश की जनता को देना चाहिए. इधर उधर की बातों में देश की जनता अब उलझने वाली नहीं है.
चलते-चलते: कांग्रेस सरकार में जब मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री और सोनिया गाँधी सुपर पीएम के रोल में थीं, उन दस सालों में राजीव गाँधी फाउंडेशन ने प्राइवेट सेक्टर की भी सैंकड़ों कंपनियों से चंदा लिया है. उन सभी कम्पनियों के नाम यहां देना संभव नहीं है लेकिन अगर सोनिया गाँधी जी का ट्रस्ट राजीव गाँधी फाउंडेशन, चीन से दान ले सकता है, सरकारी कंपनियों और बैंकों से दान ले सकता है और पी एम नेशनल रिलीफ फण्ड से भी दान ले सकता है तो प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों से दान लेना तो इनके लिए एक बेहद मामूली बात ही कही जाएगी. देश की जनता खुद यह फैसला करे कि प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां जिनमे से बहुत सारी कंपनियों में जनता का पैसा लगा हुआ है और वे स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड भी हैं, वे इस ट्रस्ट को दान देने पर मजबूर क्यों थीं.
(इस लेख में दी गयी सभी जानकारियां और आंकड़े राजीव गाँधी फाउंडेशन की वेबसाइट पर उपलब्ध पिछले दस सालों की Balance Sheets और Annual Reports से लिए गए हैं)