भारत में वामपंथियों का एक बड़ा समूह रहता है. इस कुख़्यात समूह को भारत में कुछ विशेष कार्य सौपे गएं हैं, जिनमें सनातनीयों को गाली देना, भारत के इतिहास को धूमिल करना, दुष्ट व्यक्तियों को महानायक बताना, मज़हबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देना इत्यादि समाहित हैं. वामपंथियों ने अपना जाल तंत्र भारत में बहुत चालाकी से फैलाया हुआ है. परंतु अधिकतर अवसरों पर यह सिद्ध हुआ है कि ये मार्क्सवादी वह बादल हैं जो केवल गरजते हैं बरसते नहीं, और ये चाहें कितना भी प्रयत्न क्यों ना कर लें परंतु भारत में मार्क्सवाद को कभी सफलता नहीं दिला पाएंगे.
इसका प्रमुख कारण है इस विचारधारा का विदेशी होना. इतिहास गवाह है कि भारत पर कई विदेशी शक्तियों ने आक्रमण किया और कईयों ने तो भारत में शताब्दियों तक राज्य किया. इस दौरान उन शक्तियों ने भारतवासियों पर अपनी विचारधारा थोपने का भरसक प्रयास किया परंतु उनके इस उद्देश्य में केवल उन भारतीयों ने समर्थन दिया जिनके रक्त में गद्दारी का मिश्रण था. उनकी विचारधाराओं को भारतीयों ने मजबूरी में ढोया और अनुकूल समय आने पर उनको उखाड़कर फेंक दिया. देर सवेर ही सही परंतु यह मार्क्सवाद भी भारत से उखड़ हि जाएगा.
मार्क्सवाद का भारत में असफल होने का एक अन्य कारण उसका क्रूर स्वभाव है. समाज के समक्ष अहिंसा की दुहाई देने वाली यह वामपंथी विचारधारा वास्तव में अत्यंत क्रूर एवं वीभत्स है. यदि आपको इसकी सत्यता की जांच करनी हो तो वामपंथी इतिहास में झांक कर स्टालिन और लेनिन जैसे नेताओं की क्रूरता के किस्से अवश्य पढ़िएगा. वामपंथी इतिहासकार हिटलर की दरिंदगी पर तो खूब भाषण देते हैं परंतु स्टालिन और लेनिन द्वारा किए गए नरसंहार पर चुप्पी साध लेते हैं. मार्क्सवाद की इसी क्रूरता का कारण है कि इनका प्रमुख शिकार युवा पीढ़ी होती है. जोशीले एवं विवेकहीन व्यक्तियों को ऊटपटांग शिक्षा देकर एवं उनकी मति भ्रष्ट कर यह उन्हें अपने खेमे में खींच लेते हैं जिनके कारण ये युवा अपने ही राष्ट्र एवं संस्कृति से विमुख हो जाते हैं.
भारतीय राजनीति में तो वामपंथियों का खेल लगभग समाप्त हो चुका है, गिने-चुने क्षेत्रों को छोड़ दें तो इनका कहीं भी अस्तित्व नहीं है. विचारधारा के रूप में भी इनको लगभग नकार दिया गया है. इस निर्मम विचारधारा का श्राद्ध भारत में जल्दी मनाया जाएगा.