समाज में इंसान की व्याख्या करना हो तो ‘डबल स्टैण्डर्ड’ शब्द का उपयोग करें, बाहर से कुछ, और भीतर से कुछ होने की पूर्ण संभावना है। सोशल मीडिया के युग में इंसान का यह रूप बेहद आसानी से दिखने वाली सूची में अव्वल नंबर पर आता है। इंसान के बाहरी रूप को देखकर कई महा अनुभवों को गलती हो जाती है, कई बार तो इस गलती का स्तर इतना ऊंचा होता है कि लिबरल और वामपंथी विचारधारा के लोग इस पर लीपापोती करने को तैयार रहते हैं।
इसी पर अपना मोर्चा लेकर तैयार होकर आई थी जगत ज्ञानी फेमिनिस्म की मशाल लिए स्वरा भास्कर। इनके लिए कुछ कहने की अभिलाषा मन में भाव बन फूटते रहते हैं। फिल्मी जगत में वामपंथ को बनाए रखने में इनका योगदान सालों साल याद रखा जाएगा।
भारत में स्त्रियां सुरक्षित नहीं(राहुल बाबा तो रेप कैपिटल कह दिए) पर कुछ मामलों में यह भी उभर के आता है पुरूष भी ज्यादा सुरक्षित नहीं। स्वरा भास्कर जी ने इंस्टाग्राम में सभी लड़को को बेहद उच्च स्तरीय गालियों से संबोधित किया, उनके स्वरों में जहर की मात्रा इतनी घुली हुई थी कि हम अपने कदमों से ही जमीन को खिसका दिए। कुछ पल तो जमीन और मेरे नेत्रों ने एक दूसरे को बड़े ध्यान से देखा,फिर फोन उठाकर फेमिनिस्म का चौला ओढ़कर फेसबुक पर अंग्रेजी शब्दों का तालमेल बैठाया उसके साथ साथ #Gogirl #womenempowerment #RapefreeIndia के आधुनिक टैग का इस्तेमाल कर दिया। सच बताएं तो उस पोस्ट को लाइक भी मिले और शेयर भी किए गए और वो भी मिले जिन्होंने बहुत समय से मेरी फेसबुक की दीवार पर अपनी वामपंथी छाप नहीं छोड़ी थी।
लेकिन अब मुझे उस पोस्ट को इज्जत से डिलीट करना पड़ा कारण था ‘सिद्धार्थ’ का लिंग एक दम से बदल जाना।
नया नहीं है यह धोखा
सोशल मीडिया का दिया गया धोखा नया नहीं है, इसका विकास ही धोखे की तर्ज पर हुआ था।
याद करें जब फेसबुक नया नया आया था, gmail ने भी अपने पांव जमाने की शुरुआत करी थी। यह वो वक्त की शुरुआत का डिजिटल युग था जब इंसान ‘कबूतर जा जा जा’ वाले गीत नहीं गाता था बल्कि अपने घर से 10 रुपए का नोट लिए साइबर कैफे में मस्ती करने जाता था। Angel Priya से लेकर Angel Riya तक सभी को मित्रता के लिए पर्याप्त संदेश भेजे जाते थे। अर्थव्यवस्था की गति भी हम युवाओं ने ही थामी होती थी।
फेसबुक पे अकाउंट बनाना उस वक्त बेहद प्रचलित था, उम्र थी 13 वर्ष से कम लेकिन फेसबुक की प्राइवेसी पालिसी में भी हमें रोकने का नहीं था दम। 3-4 एकाउंट बना लिए गए एक में खुद का नाम और खुद की फोटो, बाकी में नाम अलग और पहचान भी अलग।
FakeFeminism:- स्त्रियों का सम्मान हो, पुरुष और स्त्री एक समान हो।
भारत देश का युग सदियों पुराना है। स्त्रियों को देवी के स्वरूप में प्रख्यात मिली है, हालांकि इस सत्य से नजर नहीं घुमाई जा सकती कि भारत में रेप नहीं होते या फिर स्त्रियों से भेदभाव नहीं होता। लेकिन यह भी सत्य है कि इन भेदभाव में पुरुषों को भी जकड़ा हुआ है।
भूल न गए हो तो याद दिलवा दूं कि #Metoo की शुरुआत भी इसी पुरूष समाज को गिराने के रूप में हुई थी,जिसमें यह पाया गया कि अधिकतर केस गलत दर्ज हुए हैं।
इस मौके पर 2015 का भी वाक्य जहन में आता है। सर्वजीत सिंह और जसलीन कौर का यह केस काफी सुर्खियों में रहा। हर सेक्युलर न्यूज़ चैनलों ने पूरे पुरुष समाज को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और जसलीन कौर के सर पर ताजपोशी कर दी गई।
कौन सही या कौन गलत मैं इसके बारे में नहीं कह सकता लेकिन किसी पर भी आरोप लगाने से पहले उस हादसे की जांच अवश्य होनी चाहिए।