एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना से परेशान हैं भारत में भी कोरोना मरीजों की तादाद 10 हजार से ज्यादा पहुंच चुकी है, और लगातार बढती जा रही है, तो ऐसे में हमारे देश के प्रधानमंत्री हिंदुओं को साध रहे हैं। ये तो सरासर गलत हैं, पहले थाली पिटवाई, क्या थाली पिटने से कोरोना चला गया? उसके बाद हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले नवरात्र के बाद कहा की 5 अप्रैल को 9 बजे 9 मिनट कर दिया जलाए, क्या प्रधानमंत्री ये भूल गए थे की दिया जलाने की बात सुनकर हमारे मुस्लिम भाईयों को ठेस पहुंच सकती है। हिंदूओं के नहीं भूलना चाहिए की नवरात्र उनके खत्म हुए हैं रामनवमी वो मनाते हैं, मुस्लिम भाई नहीं। तो दिया जलाने की बात कहना एक तरह से उनपर दबाव डालने जैसे बात नहीं है, लेकिन ये बात याद रखिए मुस्लिम सिर्फ अल्लाह से डरता है किसी और से नहीं।
लेकिन लगता है कि दिया जलाने की बात बोलकर, हमारे मुस्लिम भाईयों का दिल जलाने भर से ही सुकून नहीं मिला था कि अब वो सात वचन मांग रहे हैं। क्या सच में हिंदूओं को नहीं पता कि सात अंक मुस्लिमों के लिए कोई ज्यादा महत्व नहीं रखता हां हिंदूओं को लिए सात अंक महत्वपूर्ण हैं।
हिंदूओं में सप्तऋषि यानि (सात ऋषि) की मान्यता है शादी में 7 जन्म तक साथ देने का वचन दिया जाता है, सात फेरे लेकर ही शादी पूर्ण होती है। तो क्यों बार-बार कोरोना महामारी के बीच इस तरह से केवल हिंदूओं का तुष्टिकरण किया जा रहा है, क्या इस तरह की बातों से मुस्लिम भाईयों को बुरा नहीं लगेगा।
प्रधानमंत्री 2 वचन भी तो ले सकते थे। चलो 3 या फिर 4 वचन ले लेते, लेकिन नहीं उन्होने 7 वचन लिए हैं, तो मुस्लिम क्यों उनके वचनों को पूरा करेगा, और करना भी नहीं चाहिए, भई आपकी मान्यताएं हैं आप पूरा कीजिए, मुस्लिम भाई अपनी मान्यताओं को क्यों छोड़े ? कुछ ही दिन पहले शब-ए-बारात थी तो क्या उन दिन टीवी पर आकर वचन नहीं ले सकते थे, बिल्कुल ले सकते थे पर ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि केवल इस महामारी में हिंदूओं को ही साधना है, दूरदर्शन पर रामायाण महाभारत तो पहले से दिखा रहे थे, अब कभी 9 कभी 7 के बहाने मुस्लिमों पर निशाना साधा जा रहा है, जो सरासर गलत है।
अब अगर कोई मुस्लिम भाई आपकों वचन न दे आप उसे देशद्रोही साबित कर दीजिए, और तबलीगी जमात से जोड़ दीजिए, उन्हें बदनाम कर दीजिए। हद तो ये है कि उनके शौच करने तक को ऐसे दिखाया जा रहा है, जैसे उन्होने क्राइम कर दिया है, क्या हिंदू नित्यक्रिया नहीं करता हैं।
मेरा सिर्फ इतना कहना है कि अंकों के फेर में मुस्लिमों को मत फंसाइये, अपनी मान्यताएं उनसे पूरी मत करवाइये, याद रखिए ऊपर वाला सब देख रहा हैं।