पिछले रविवार से देश चीनी वुहान वायरस से बचाव के लिए लॉक डाउन है। लोग घरों में हैं और स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस के जवान, बैंक कर्मचारी और अनगिनत स्वयंसेवी अपने स्वास्थ्य की चिंता के बिना इस राष्ट्रीय आपदा में सर्वस्व लगाए हुए हैं।
प्रारम्भ से ही मोदी सरकार वुहान वायरस के प्रति सचेत थी, भारत प्रारंभ से उन देशों में सम्मलित था जिन्होंने एयरपोर्ट्स और बंदरगाहों पर स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जिससे संक्रमित व्यक्ति सामान्य जनजीवन में प्रवेश न कर सके और उसे आइसोलेशन में रखा जा सके।
तो फिर प्रश्न आता है कि इतनी सावधानी के बाद भी देश में वुहान वायरस के केस इतनी तेजी से क्यों फैले, मार्च के प्रथम सप्ताह तक तो सब ठीक था लेकिन उसके बाद आईसीएमआर और भारत सरकार ने ऑब्सर्वे किया कि जो लोग एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग में नेगेटिव शो हो रहे थे उनमें कुछ दिनों के बाद वुहान वायरस के लक्षण दिखाई दे रहे थे (जैसा कि आईसीएमआर प्रमुख ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस मे बताया). सरकार ने तत्काल 14 दिनों की आइसोलेशन एडवाइजरी सभी विदेशो से आने वाले यात्रियों पर लागू कर दी, और अंत मे सभी देशों से हवाई यात्राओ को बंद कर दिया लेकिन जब तक बहुत देर हो चुकी थी।
सवाल उठता है कि क्या सच में? चीन, इटली और स्पेन जैसे देशों ने यह सूचना भारत के साथ साझा की, अगर नहीं तो ग्लोबलाइजेशन जैसे नारों की फलपूर्ति करना क्या हमारा ही कर्तव्य है?
हाँ सच यह भी है जब भारत मे केस बढ़ रहे थे तो मुम्बई दिल्ली और बैंगलोर में IT कंपनीज ने अपने कर्मचारिओं को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी और लोगो को अवकाश भी लेकिन हमारे पढे लिखे तबके ने अपनी सिटी के फ्लैटो में ना रहकर अपने परिवारजनों के पास भारत के विभिन्न छोटे शहरों की और जाना प्रारम्भ किया जो बिल्कुल मूर्खता से भरा निर्णय था, मुम्बई से जोधपुर आने वाली लड़की जो ट्रैन में संक्रमित हुई इसी मूर्खता को दर्शाता है।
लॉकडाउन के बीच दुकानों अनावश्यक भीड़ बढ़ाना और राशन की जमाखोरी करना संकट को ही आमंत्रित करता है। यदि हम घर पर रहकर दाल रोटी जैसे सामान्य लेकिन पौष्टिक भोजन में काम चलाएंगे तो सोशल डिस्टन्सिंग से हम इस चीन वुहान वायरस की कड़ी को खत्म कर सकते है लेकिन आंशिक रूप अभी तक हम अपनी नागरिक जिमेदारी मेंअसफल साबित हुए हैं।
अभी भी समय है कि हमें एकजुट होकर आगामी 21 दिन जनता कर्फ्यू को सफ़ल बनाना है और नागरिक होने के कर्तव्यों का पालन करना हैं।