Saturday, April 20, 2024
HomeHindiनागरिकता संशोधन अधिनियम अर्थात जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

नागरिकता संशोधन अधिनियम अर्थात जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

Also Read

Akhand
Akhand
Insurance Professional. Bhartiya. Hindu. Nationalist.

दुनिया भर के तमाम देशों में दो दर्जन से भी ज्यादा देश आधिकारिक रूप से इस्लामिक राष्ट्र हैं अर्थात इस्लाम इन देशों का अधिकृत धर्म है और इस्लाम धर्म तथा इसके अनुयाइयों को सरकारी संरक्षण प्राप्त है। इन्हे अपने धर्म का पालन करने की पूरी आज़ादी है। तक़रीबन ऐसी ही स्थिति ईसाई धर्म की भी है। अनेक पश्चिमी देशों का अधिकृत धर्म ईसाई है।

परन्तु विश्व के तीसरे सबसे बड़े धर्म को मानने वाले हिन्दुओं के लिए एक भी देश नहीं है जिसका अधिकृत धर्म हिन्दू हो। यहाँ तक की कुछ अन्य धर्म जिनके अनुयायियों की संख्या हिन्दुओं से कहीं कम है, उनके लिए भी कई देश हैं, जैसे की बौद्ध और यहूदी धर्म।

कुछ साल पहले तक नेपाल एकमात्र हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था, परन्तु वहां की आतंरिक राजनीति और कुछ बाहरी शक्तियों के कुचक्र के कारण, नेपाल भी आधिकारिक रूप से एक धर्म निरपेक्ष राज्य बन गया।

इस तरह आज के समय में १०० करोड़ से भी ज्यादा हिन्दुओं के लिए पूरे विश्व में कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसे हिन्दुओ का अधिकृत राष्ट्र कहा जा सके। भारत १९४७ में आज़ादी और बटवारे के समय एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ और यही स्थिति अभी तक बनी हुई है, जबकि बंटवारे से उत्पन्न हुए पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (जो की १९७१ में बांग्लादेश के रूप में स्थापित हुआ) इस्लामिक देश बने। अविभाजित भारत में रह रहे मुस्लिमो को विशेष रूप से दो देश मिले, परन्तु बहुसंख्यक हिन्दुओं को मिला एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र। यह एक अलग विषय है की भारत में धर्म निरपेक्षता बाद में अल्पसंख्यक विशेषतः मुस्लिम तुस्टीकरण का दूसरा नाम बन गयी और हिन्दू अपने ही देश में दोयम दर्जे के नागरिक बनते चले गए।

ऐसे में जहाँ दूसरे अन्य धर्मों के लोगों के लिए दुनिया में आसरा लेने के लिए अनेक देश हैं, हिन्दुओं के लिए अपना कहने को कोई राष्ट्र नहीं है। क्या यह १०० करोड़ से भी अधिक हिन्दुओं के लिए दुखद स्थिति नहीं है?

दशकों पहले किसी ने संघ के तृतीय सर संघचालक बाला साहब देवरस से पूछा की क्या भारत एक हिन्दू राष्ट्र है? तब उन्होंने उत्तर दिया की “भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं है परन्तु हिन्दुओ के लिए एकमात्र राष्ट्र भारत ही है।”

इस कथन को आज जब हम नागरिकता संसोधन कानून के सन्दर्भ में देखते है तो सच्चाई नज़र आती है।

इस क़ानून की आखिर जरुरत क्यों पड़ी?

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत के तीन पडोसी देश — अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पिछले कई दशकों में अल्पसंख्यकों का धार्मिक उत्पीड़न होता रहा है। १९४७ में पाकिस्तान में जहाँ हिन्दुओं कि संख्या २३% से भी ज्यादा थी वो आज के समय में घटकर ३% से भी कम रह गयी है। यही हाल कमोबेश बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान का भी है। इन सभी देशो में अल्पसंख्यक विशेषकर हिन्दू या तो मार दिए गए या उनका जबरन धर्म परिवर्तन करा दिया गया। जो बच गए उनमे से अधिकांश ने भागकर भारत में शरण ले ली।

मानवाधिकार हनन का इससे बड़ा उदाहरण भारतीय उपमहाद्वीप में और कहीं देखने को नहीं मिलेगा। ऐसे में यदि भारत सरकार इन देशों के अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को संज्ञान में लेकर उनके लिए भारत में रहने की स्थायी व्यवस्था करती है तो इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? बल्कि इस कदम का तो पुरे विश्व में स्वागत होना चाहिए।

मानव कल्याण का इससे सुन्दर उदाहरण देखने को नहीं मिलता जहाँ सरकार के एक कदम से असंख्य लोगों की पीड़ा समाप्त हो जाएगी और उन्हें सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार मिलेगा। विश्व के कई देशों में जहाँ आज शरणार्थियों के विरुद्ध मुहीम चलायी जा रही है और उन्हें देश से बाहर निकालने की मांग की जा रही है, वहीँ भारत सरकार इसके उलट अन्य देशों में उत्पीड़न के शिकार लोगों को बाहें फैलाकर स्वागत कर रही है। यह मानव कल्याण की दिशा में ऐतिहासिक कदम है।

इस क़ानून को लेकर कुछ लोग यह भ्रम फैला रहे हैं की यह मुस्लिम विरोधी है। उनका यह कथन तर्क से परे है। ऐसे लोग समाज में भ्रान्ति फैलाकर देश में अराजकता की स्थिति पैदा करना चाहते हैं और कुछ नहीं।

पहली बात तो यह की ये कानून भारत के नागरिक चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान लागू नहीं होता है। यह भारत में शरण लिए हुए लोगों को नागरिकता देने का कानून है और जो भी व्यक्ति पहले से भारत का नागरिक है उस पर इस कानून का कोई असर नहीं होगा।

दूसरा, मुस्लिम शरणार्थी (अवैध घुसपैठिये नहीं) इस कानून के बाद भी भारत में चाहें तो सामन्य नियमों के अंतर्गत नागरिकता लेने के लिए आवेदन दे सकते हैं और सरकार उनकी पात्रता के हिसाब से नागरिकता देने पर विचार कर सकती है।

कुछ अन्य लोग यह भ्रान्ति फैला रहे हैं की यह कानून केवल हिन्दुओं के लिए है। यह भी एक सफ़ेद झूठ है जिसका उद्देश्य समाज में अशांति उत्पन्न करना है। सच्चाई यह है की ये कानून हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मो के लिए है जो इन तीन पडोसी देशों में अल्पसंख्यक है और धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हैं। यह बात सही है कि हिन्दू इस कानून से सबसे बड़ी संख्या में प्रभावित होंगे लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए की पडोसी देशों में सबसे ज्यादा धार्मिक उत्पीड़न यदि किसी का हुआ है तो वो हिन्दू ही हैं।

पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में भी देश विरोधी तत्वों द्वारा यह कुप्रचार किया जा रहा हैं की इस कानून के लागू होने से पूर्वोत्तर के राज्यों की, वहां के लोगों की और संस्कृति की पहचान खतरे में पड़ जाएगी क्यूंकि बांग्लादेशी हिन्दू बड़ी संख्या में वहां बसाये जायेंगे। ऐसा कहना पूरी तरह से हास्यास्पद है। पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्य इस कानून के दायरे से बाहर हैं। असम और मेघालय के लिए सरकार ने भरोसा दिलाया है कि वहां कि स्थानीय सभ्यता संस्कृति पर कोई प्रभाव न पड़े इसके लिए उचित कदम उठाये जायेंगे। ऐसे में वहां के लोगों को इस कानून से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।

कुछ जानकारों का मानना है कि ऐसा कानून कई दशक पहले आ जाता तो लाखों करोड़ों हिन्दुओं, सिखों तथा अन्य धर्मावलम्बिओं का नरसंहार न होता, इनकी महिलाओं कि अस्मत न लुटने पाती और इन सभी को सम्मान के साथ जीने का अवसर मिलता। जब १९५० में नेहरू-लियाक़त समझौता हुआ, उसी समय यदि इस तरह के कानून कि व्यवस्था कर दी जाती तो आज इसकी आवश्यकता नहीं होती और करोड़ो ज़िंदगियों को बचाया जा सकता था।

आज जबकि यह विधेयक संसद से पास होकर अधिनियम बन चुका है, निःसंदेह मोदी सरकार बधाई की पात्र है। देर से ही सही इस अधिनियम की प्रासंगिकता आज के समय में भी उतनी ही है जितनी ५० साल पहले होती।

आज बाला साहब देवरस जी का यह कथन कि “भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं है परन्तु हिन्दुओ के लिए एकमात्र राष्ट्र भारत ही है” सत्य साबित होता दिख रहा है।

पडोसी देशों के प्रताड़ित हिन्दुओं के लिए कम से कम एक देश ऐसा है जहाँ उनका खुले मन से स्वागत होगा, परन्तु ये बात उनलोगों को समझ में नहीं आएगी जिन्हें अपनी जन्मभूमि-मातृभूमि का महत्व नहीं पता। इन्हे पता नहीं कि हिन्दू धर्म में जन्मभूमि को स्वर्ग से भी ऊँचा स्थान दिया गया है, भगवन राम ने अनुज लक्ष्मण को समझाते हुए कहा था कि — “अपि स्वर्णमयी लंका न मे रोचति लक्ष्मण, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात “लक्ष्मण, ये सोने की लंका मुझे सुहावन नहीं लगती, माता और मातृभूमि मुझे इस स्वर्ग से ज्यादा प्यारी है ।”

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

Akhand
Akhand
Insurance Professional. Bhartiya. Hindu. Nationalist.
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular