Sunday, November 3, 2024
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भारत का संदिग्ध विपक्ष

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Author_Rishabh
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भारतीय संस्कृति, विज्ञान और अध्यात्म में अटूट आस्था रखता हूं। अजीत भारती जी जैसे लोगों को ध्यान से सुनना पसंद करता हूं। पुस्तकें पढ़ने का बहुत शोषण है‌। मूलतः कवि हूं लेकिन भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास के बारे में की जा रही उल्टी बातों, फैलाई जा रही अफवाहों, न्यूज चैनलों की दगाबाजियों, बॉलीवुड द्वारा हिंदू धर्म और उसके लोगों पर किए जा रहे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हमलों से आहत होकर लोगों को जागरूक करने के लिए स्वतंत्र वैचारिक लेख लिखता हूं और ट्विटर पर वैचारिक ट्वीट करता रहता हूं। जन्मभूमि भारत और मातृभाषा की बुराई असहनीय है। जय हिन्द।

वर्तमान में राजनीति हमारे देश में एक मॉडलिंग बन के रह गई है। जहां राजनीतिक दर्शन में रचनात्मकता, समाज सुधार और समाज सेवा के कार्य जमीनी स्तर पर अत्यंत आवश्यक होते हैं उसके बाद में आधुनिक लोकतंत्र में आप प्रत्याशी बनने के लायक होते हैं लेकिन दुख की बात तो यह है कि आधुनिक लोकतंत्र में राजनीति केवल मॉडलिंग, विरोध, अवरोध और संगठन चलाने तक सीमित रह गई है। राजनीतिक दर्शन के इस अवपातन का परिणाम भारत में हम विपक्ष के चरित्र पतन में देखते हैं।

२०१४ में जब बीजेपी सत्ता में आई तो विपक्षी पार्टियों ने यह स्वीकार किया कि वह मोदी लहर थी लेकिन उन्होंने अपने दौर की प्रशासनिक अक्षमता को पार्टी के नेताओं के रचनात्मकता और समाज सेवा से कट जाने को, वंशवाद, परिवारवाद और पार्टी पर एक परिवार के ही नेतृत्व और चाटुकारिता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने सरकार द्वारा उठाए गए हर कदम का (उसके अच्छे कदमों का भी) विरोध किया और न केवल विरोध किया अपितु उसके अच्छे कामों को लेकर भी झूठ फैलाया गया, लोगों को भड़काया गया। सरकार के अच्छे कामों की प्रशंसा और प्रचार (जो कि जरूरी भी है) जब कुछ मीडिया हाउस ने किया तो उसे बिकाऊ कहा गया। यहां सोचने वाली बात यह है कि विपक्ष का फर्ज क्या है? यहां आज जो विपक्ष है वह कभी इस देश की राजनीति का एकछत्र शासक दल रहा है। उस भूमिका सिर्फ विरोध करने की हो ही नहीं सक इन राजनीतिक दलों के नेताओं को कम से कम पर तो सोचना ही चाहिए कि जिन नेताओं (चाहे वह किसी भी पार्टी के क्यों न हों) को जनता ने चुनकर भेजा है वह जनता आपस में एक दूसरे की दुश्मन नहीं थी, जनता ने जिसे भी चुनकर भेजा उसे काम करने के लिए भेजा है। जहां विपक्ष का कार्य सरकार के हर कदम का विरोध करना नहीं है, गलत कार्य का विरोध करना है और वह विरोध केवल संसद में उसकी कार्यवाही में बाधा डालकर या सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाकर नहीं किया जा सकता, विरोध के साथ-साथ समस्या के निदान के उपायों को रचना त्मक स्तर पर समाज सेवा के रूप में जमीन पर लागू करना भी जरूरी होता है।

जब गांधीजी ने विदेशी वस्तुओं और सेवाओं का बहिष्कार किया तो उन्होंने केवल बहिष्कार ही नहीं किया अपितु रचनात्मक स्तर पर स्वदेशी का परिष्कार भी किया। विपक्ष का कार्य विरोध के साथ-साथ रचनात्मक निदान भी लोगों तक पहुंचाना होता है। लेकिन अफसोस हमारे देश का विपक्ष रचनात्मक और नैदानात्मक राजनीति करने के वजाय अवरोध और प्रतिरोध की राजनीति कर रहा है जो कि किसी देश के शासन को तानाशाही में बदल सकता है।

जय हिन्द।

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भारतीय संस्कृति, विज्ञान और अध्यात्म में अटूट आस्था रखता हूं। अजीत भारती जी जैसे लोगों को ध्यान से सुनना पसंद करता हूं। पुस्तकें पढ़ने का बहुत शोषण है‌। मूलतः कवि हूं लेकिन भारतीय संस्कृति, धर्म और इतिहास के बारे में की जा रही उल्टी बातों, फैलाई जा रही अफवाहों, न्यूज चैनलों की दगाबाजियों, बॉलीवुड द्वारा हिंदू धर्म और उसके लोगों पर किए जा रहे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हमलों से आहत होकर लोगों को जागरूक करने के लिए स्वतंत्र वैचारिक लेख लिखता हूं और ट्विटर पर वैचारिक ट्वीट करता रहता हूं। जन्मभूमि भारत और मातृभाषा की बुराई असहनीय है। जय हिन्द।
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