बीतें कुछ महीनों में देश की समरसिता व गंगा-जमुना तहज़ीव में कुछ चक्रवात उपस्तिथ हुए हैं। ये चक्रवात भिन्न-भिन्न छेत्र के महान धर्मनिर्पेक्ष-सेक्युलर-संविधानिक ब्रिटिश-इंडो इण्डियन द्वारा संचालित व प्रसारित कियें गये हैं। वर्तमान मीडिया संस्थानो ने इन चक्रवातों का नामकरण शहरी वैचारिक नक्सलबादी असहिष्णुता नामक समूह के पदचिन्हों के साथ पदित हो #मॉबलिंचिंग आविष्करित किया।
विदेशी न्यूज़ रूमो ने भी भारत विरोधी चले आ रहे सहस्त्र सताब्दियों पुराने आन्दोंलन को मॉबलिंचिंग से सम्पूर्ण विश्व में मिथ्यरोपित किया। १३५० वर्षों का इतिहास स्वयं आपको अनुभवित करा देगा कि बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक का मुद्दा अनैतिक घृणित कुत्सित अकल्पनीय हैं।
गौ अन्दोंलनों के मुग़ल-क़ालीन, ब्रिटिश ईस्टइण्डिया से ब्रिटिश साम्राज्य तक अनेको जन-क्रान्तियों का वर्णन आप को प्राप्त हो जाएगा यहाँ पर दिलचस्प बात ये है,1947 से 1970 तक चलें गौ अन्दोंलनों के बारे में ना कहीं चर्चा हुई ना ही कभी यह मुद्दा राष्ट्रीय मंच तक अपनी उपस्तिथि दर्ज करा पाया। गीता प्रेस का गौ सेवा अंक पढक़र आप गौ माता से जुड़ी क्रांति का अनुसरण कर सकते हैं।
गोपाल की जीवात्मा जब अपना पंचभौतिक शरीर छोड़ कर अपनी विधवा पत्नी,अपनी मासूम भोली-भालीं बेटियों को, व अपने बूढ़े माँ-पिता को देखती होगी, तो पहले तो गौ रक्षा में अर्पण अपने वालिदान पर गर्व कर सोचती होगी ईश्वर मेरे परिवार का पालन-पोषण करेगा, मेरे परिचित व अपरिचित हिंन्दु वंधु-वांधव मेरे त्याग समर्पण का इतना सम्मान तो करेंगे ही कि मेरे परिवार को कभी मेरे ना होने का एहसास ना हो!
कहीं ना कहीं राष्ट्रवादी पार्टी की सरकार से भी उसे हमेशा उम्मीद रही होगी। परंतु गौ-तस्करों द्वारा शहीद हो कर जब उसने अपनी नयी सूक्ष्म योनि में प्रवेश कर यथार्थ घटित हों रही परिस्तिथियों का अवलोकन व मूल्याँकन किया होगा तब उसे अपने आज तक किए गये सारे राष्ट्र-कार्यों पर एक रोष कुंठित भाव के समक्ष निम्न प्रश्नो को टीकाकणित होते पाया होगा।
प्रश्न-क्या गौ-रक्षा व गौ-रक्षक संविधान के विरुध्य हैं?
प्रश्न-क्या हिंन्दु समाज के लिए गौ-वंश कोई श्राप हैं?
प्रश्न-हत्यारों का मानवाधिकार है, रक्षकों का उत्पात है?
प्रश्न-क्या भारतीय सभ्यता का जीवित अस्तित्व बचा है?
प्रश्न-क्या सत्ता में उपाधित सरकार की राज्यनीति है?
प्रश्न-क्या मेरा त्याग, वालिदान निर्रथक है?
प्रश्न-क्या कलियुग का सारा प्रभाव इण्डिया में व्याप्त है?
प्रश्न-मेरे परिवार को कोई अपना भविष्य जीवित भी है?
प्रश्न- गौ-वंश का पतन हमारी संस्कृति का नवीनीकरण है?
प्रश्न- गौ हत्या पर राष्ट्रीय गौ क़ानून कभी आयेगा?
प्रश्न- गौ तस्कर अपराधी क्यों नहीं?
प्रश्न- क्या मैं मॉबलिंचिंग का शिकार नहीं?
प्रश्न- क्या हिंन्दु 1350 सालों में भी जीवांन्त नहीं हुए?
इससे अत्यधिक प्रश्न पूछ कर हम गोपाल की जीवात्मा को दुःखित नहीं करना चाहते। हरियाणा में अनेको बार गौ-रक्षा समिति के साथ मिलकर गौ तस्करों से गौ-वंश को बचाया और पुलिस के समक्ष गौ-तस्करों का भांण्डा समय समय पर सूचना प्राप्त होने पर फोड़ते रहते थे। सोमवार दिनांक 29 अगस्त 2019 को एक फ़ोन कॉल पर गौ-वध व गौ-तस्करी की सूचना प्राप्त होती है, गोपाल बिना एक क्षण व्यर्थ किये बताई जगह पर निकल गया, अपने समिति के सदस्यों को भी सूचित कर दिया परंतु वहाँ गोपाल अपनी मोटरसाइकिल से पीछा कर रहा था, गौ-तस्कर अभी तक का सारा हिसाब चुकता करने के लिए उसे गोलियों से छलनी कर देते हैं। बात यहाँ ऐसी एक एक-दो घटनाओं की नहीं अपितु ऐसे कितने गोपाल गौ-रक्षा के लिए अपने प्राणो की आहुति देते आएँ है व जब तक कृष्ण की वाँसुरी ध्वनित रहेगी तब तक देतें रहेंगे।
यह अंत नहीं आरंम्भ है, सोचिए आज भी हम अपने आदर्शों की रक्षा नहीं कर पा रहें! समस्या कुछ ना करने से अधिक कुछ ना होने की है! भावनाओं का हृाँस्य या कहें २१st centuary के मॉडर्न भारतीय जो भारतीय सभ्यता-संस्कृति के गुणो से स्वयं को आज़ादी के साथ स्वतंन्त्र कर चुकें हैं।
क़लम या पंक्तियाँ नहीं दर्शा सकतीं,
उन बलिदानित ईशों की पिपाशा नहीं
अब और नहीं दबा़ सकतीं,
जाति-धर्म मज़हब के ताजों को ना पहनाओं,
कहीं जाग गये भरत वीर तो भारत पुनः बन जायेगा
सारा सेक्युलरबाद धर्मनिर्पेक्षता का राग
क़ब्रों तक ही रह जायेगा,
पर कैसें जागेंगे भरत-पुत्र?
इसका संवाँद आप से ही आयेगा!