“जिस राज्य की प्रजा लोभी और लालची होती है, वहां ठग शासन करते हैं.” चाणक्य ने जब यह बात अपनी चाणक्य नीति में लिखी थी, उस समय शायद उन्हें भी नहीं मालूम था कि कभी दिल्ली जैसे राज्य में उनकी लिखी गयी नीति को पूरी सच्चाई के साथ अमल में लाया जाएगा. जब से दिल्ली में केजरीवाल की सरकार बनी है, लोग अपने मुफ्त के वाई-फाई, मुफ्त के पानी और सस्ती बिजली के लालच में अपना वोट एक ऐसी पार्टी को देने पर लगातार अपना सर पीट रहे हैं, जिसे न सरकार चलाना आता है और न ही सरकार चलाने कि कोई मंशा नज़र आती है. नतीजतन दिल्ली में पिछले लगभग दो ढाई सालों से जो कुछ भी हो रहा है, वह सब भगवान् भरोसे चल रहा है. अगर कुछ अच्छा हो जाए तो दिल्ली सरकार उसका श्रेय अपनी सरकार को दे देती है और जो कुछ भी ख़राब हो जाए या न हो पाए, उसके लिए वह सीधे सीधे मोदी सरकार को जिम्मेदार बताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है.
दिल्ली में विधान सभा चुनावों से पहले केजरीवाल ने जनता से यह वादा किया था कि दिल्ली कि बिजली कंपनियां गड़बड़ कर रही हैं और उनका सी ऐ जी ऑडिट कराया जाएगा और उस ऑडिट के बाद से दिल्ली में बिजली अपने आप ही सस्ती हो जाएगी. जिस समय केजरीवाल ने यह वादा किया था, उस समय भी उन्हें यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि दिल्ली की बिजली कम्पनियाँ प्राइवेट कम्पनियाँ हैं और उनका सी ऐ जी ऑडिट कानूनन संभव नहीं है. बाद में क्या हुआ, यह सभी को मालूम है – सी ऐ जी ऑडिट के खिलाफ प्राइवेट बिजली कम्पनियाँ अदालत चली गयीं और अदालत ने कानून का पालन करते हुए सी ऐ जी ऑडिट पर रोक लगा दी. केजरीवाल सरकार ने शर्मा शर्मी अपनी इस हार पर पर्दा डालने के लिए “सब्सिडी” के रास्ते से बिजली के बिलों में कुछ राहत देने की नौटंकी को अंजाम दिया . यह सभी जानते हैं कि “सब्सिडी” का मतलब यह होता है कि आप की एक जेब से पैसा निकालकर उसी पैसे को आपकी दूसरी जेब में डाल दिया जाए.
पिछले दो ढाई साल के शासन काल में केजरीवाल की सरकार और इसके नेता इतने विवादों में पकडे जा चुके हैं, जिनकी गिनती भी करना अपने आप में एक बड़ा काम है. अभी हाल ही में दिल्ली के उप राज्यपाल ने केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से विज्ञापन घोटाले में ९७ करोड़ रुपये वसूलने का आदेश दिल्ली के मुख्य सचिव को दिया है. बाकी के कारनामे रोजाना अख़बारों की सुर्खियां बनते ही रहते हैं.
केजरीवाल के इन्ही कारनामों के चलते हालिया विधान सभा चुनावों में गोवा में इन्हें ४० में से ३९ सीटों पर अपनी जमानत जब्त करानी पडी और पंजाब में भी लगभग २ दर्जन सीटों पर इनके नेताओं कि जमानत जब्त कर ली गयी. लेकिन इन सब बातों से कोई भी सबक न लेते हुए केजरीवाल ने दिल्ली नगर निगम चुनावों से ठीक पहले जनता को एक बार फिर से अपनी चाल में फंसाने की नाकाम कोशिश की है. इस बार जनता को यह लालच दिया जा रहा है कि अगर यह नगर निगम चुनावों में जीत गए तो दिल्ली में हाउस टैक्स को पूरी तरह ख़त्म कर देंगे. दिल्ली नगर निगम कानून, १९५७ के अन्तर्गत हाउस टैक्स को केवल कानून में संशोधन लाकर ही ख़त्म किया जा सकता है और कानून में संसोधन सिर्फ संसद की सहमति से ही किया जा सकता है. इनकी पार्टी के शिक्षा मंत्री इस बात को बार बार कह रहे हैं कि नहीं हम तो कानून में संसोधन के बिना ही हाउस टैक्स ख़त्म कर देंगे. लेकिन यह सबको मालूम है कि जब संसद में इस तरह का कोई संसोधन मंजूर नहीं होगा तो केजरीवाल मोदी सरकार पर यह आरोप लगाकर एक तरफ हो जाएंगे कि, “उनकी सरकार तो हाउस टैक्स ख़त्म करना चाहती है, वह तो मोदी जी उन्हें हाउस टैक्स ख़त्म नहीं करने दे रहे”.
यहां जो समझने वाली बात है वह यह है कि किसी भी नगर निगम को सुचारू रूप से चलाने के लिए पैसों की जरूरत होती है और हाउस टैक्स से होने वाली आय ही किसी भी नगर निगम के लिए सबसे अधिक राजस्व इकठ्ठा करती है. अब केजरीवाल जी नगर निगम को होने वाली आय के मुख्य स्रोत को ही बंद करना चाहते हैं- वह भी यह बताये बिना कि अगर यह आय नगर निगम को नहीं होगी तो नगर निगम चलेगा कैसे ? अभी जब हाउस टैक्स की वसूली जनता से की जा रही है, उसके बाबजूद नगर निगम राजस्व की कमी से इस हद तक जूझ रहे है कि दिल्ली में सफाई कर्मचारी कई बार सिर्फ इसी लिए हड़ताल पर जा चुके है कि उन्हें उनका वेतन नहीं मिल पा रहा था. अब जरा कल्पना कीजिये कि अगर हाउस टैक्स से होने वाली आय को भी बंद कर दिया गया तो क्या नगर निगम सुचारू रूप से चल पायेगा?
अपने चुनावी फायदे के लिए जनता को बार बार बेबकूफ बनाने में माहिर केजरीवाल इस बार कामयाब होंगे या नहीं, यह तो चुनाव नतीजों के आने की बाद ही मालूम होगा.