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इस देश में चुप्पी तो भीष्म की भी माफ़ नहीं करी गयी थी
अर्णव गोस्वामी पे चुप रहने वालों याद रखना इस देश में चुप्पी तो भीष्म की भी माफ़ नहीं करी गयी थी
यह चुप बैठने का वक्त नहीं है, उठो और अपनी अस्मिता के लिए स्वयं लड़ो
अर्नब के साथ जो हुआ वह इन सात दशकों में न जाने कितनी बार हुआ है। सवाल यह नहीं कि कौन किस पार्टी का है, सवाल यह है कि यहाँ इस देश में पत्रकार, सब पत्रकारों जैसी पत्रकारिता क्यों नहीं कर सकता।
अमेरिकी-बिहार चुनाव
सत्ता परिवर्तन लोकतंत्र को जिंदा रखता है और भारत में तो चुनावी प्रक्रिया और खास तौर पर ईवीएम को भी सही साबित करता रहता है। लोकतंत्र की ताकत अहंकारी शासक को वोट मात्र से उखाड़ फेंकने में है। २०२४ आने तक केंद्र में वर्तमान सरकार के १० वर्ष पूरे हो जाएंगे। केन्द्र में सरकार बदले ऐसा स्वाभाविक ही है और सत्ता परिवर्तन लोकतंत्र की दृष्टि से वांछनीय भी है।
बिहार चुनाव और महिलाएं
यह जानकारी उत्साह जनक है और उससे भी ऊपर यह सुखद है कि बिहार के राजनीति में लालू के जाति गोलबंदी और और तुष्टीकरण से ऊपर महिला विकास और सशक्तिकरण की एक स्वस्थ और बहुप्रतीक्षित विमर्श शुरू हुई जो अब तब बिहार के राजनीतिक पृष्टभूमि से नदारद थी!
उत्तर प्रदेश में अंसारी गैंग के अवैध निर्माणों पर लगातार योगी सरकार का वार
अवैध निर्माणों के मामले पर शिकंजा तेज़ करते हुए अब सरकार ने वाराणसी में अंसारी गैंग के मेराज़ तथा मऊ में ईशा खान के गैर कानूनी इमारतों पर बुलडोज़र चलवा दिए हैं।
अब पत्रकारिता के दमन पर, अभिव्यक्ति की आज़ादी कहा है
4 नवंबर यानी बुधवार की तरोताजा सुबह ने मुंबई में जैसे आपातकाल की याद दिला दी हो यानी अभिव्यक्ति की आजादी जैसे सो कोस दूर हिलोरे मार रही हो ,स्वंत्रता की आजादी जैसे गड्ढे में दम ले लिया हो।
कांग्रेस से सीखे हुनर: शक्ति और सत्ता का दुरुपयोग कैसे किया जाए
कहाँ हैं अभिव्यक्ति की आजादी के ध्वजवाहक? कहाँ हैं असहिष्णुता के बुद्धिजीवी? कहाँ हैं वो पत्रकार जो रोज इमरजेंसी-इमरजेंसी चिल्लाते रहते हैं?
मोदी जी का आना और बहुत कुछ बदल जाना: किसी को सबकुछ मिल जाना और किसी का सबकुछ लुट जाना
Bhartiya -
हर मर्ज की दवा मोदी जी नहीं हो सकते। आपको विदेशी कंपनियों के उत्पादों का वहिष्कार करना होगा, इसके लिए मोदी जी के बैन लगाने का इंतज़ार न करिये, ये काम हम आप भी मिल कर सकते हैं।
करवा चौथ: लोक परंपरा, बाज़ार और नारीवाद
बड़ी संख्या में नवयुग की स्त्रियाँ दुविधा में है। करवा चौथ को हाँ कहें या ना कहें। हाँ कहती हैं तो पिछड़ी मानसिकता से बंधी मानी जाएँगी और ना कहती हैं तो विज्ञापनों में पसरा ते लुभावना ग्लैमर हाथ से जाता है।
सहिष्णुजन पर व्यंग
क्या हुआ… बड़े डरे डरे से नज़र आ रहे हो
कही मज़हबी नारे सुन कर आ रहे हो??