उत्तराखंड एक देवभूमि है और वीरभूमि हैं। उत्तराखंड का कण कण प्राकृतिक सौंदर्य और विरासत से परिपूर्ण हैं। परंतु उत्तराखंड का दर्द पलायन है। उत्तराखंड का सबसे बड़ा मुद्दा पलायन है। उत्तराखंड की शान उसके गांव है, जो अब विरान हो चुके हैं। उत्तराखंड के नागरिक अब गांव छोड़कर शहरों की तरफ़ बड़ रहे हैं। पलायन का दर्द, गांवों से लोगों को दूर ले जा रहा है। उत्तराखंड के लोग खास तौर से गांव के लोग, शहर और शहर के लोगों से प्रभावित होकर गांव छोड़ देते हैं। इससे गांव विरान होते जा रहे हैं। उत्तराखंड का असली रूप आज लुप्त होते जा रहा है। उत्तराखंड के गांव के गांव आज विरान होते जा रहे हैं और हम सब हाथ पर हाथ रख बैठ गए हैं। भूतिया गांव का रूप ले रहे इन गांवों में अब सिर्फ सन्नाटा रहता है। उत्तराखंड की पीड़ा सिर्फ उत्तराखंड के लोग जान सकते है। अभावों की ज़िंदगी में और कहीं न कहीं शहरी जीवन से प्रभावित होकर गांवों को पलायन का फैसला लेना पड़ता है। उत्तराखंड में अभाव की बात करें तो पहाड़ी क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, शैक्षणिक संस्थानों का अभाव, रोज़गार का अभाव पलायन की ओर उत्तराखंड को ले जा रहा है।
उत्तराखंड में पलायन से गांव के खेत अब बंजर पड़े हैं। उत्तराखंड में पलायन की वजह से विकास की यात्रा पहाड़ चढ़ने को तैयार नही। पालन की वजह से जनसांख्यिकी परिवर्तन होना शुरू हो चुका है। जितने जितने गांव खाली होते रहेंगे, वहां, शहर के लोग गैरकानूनी तरीके से कब्ज़ा कर सकते हैं और वहां की ज़मीन बेचते रहेंगे। धार्मिक और सामाजिक संतुलन भी इससे बिगड़ सकता है। पलायन का असर लोगों की जिंदगी पर भी पड़ रहा है। एक तरफ जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं तो हमें भी आत्मनिर्भर उत्तराखंड बनने से पलायन एक बहुत बड़ी रुकावट बन कर उभर रही है। पलायन उत्तराखंड को विकास की राह पर जाने से रोक रहा है।
जनसंख्यिक परिवर्तन उत्तराखंड के वर्तमान और भविष्य के लिए खतरे की बात है। इससे उत्तराखंड की संस्कृति, सभ्यता और विरासत को लुप्त होने में समय नहीं लगेगा। उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने के लिए और परंपराओं की रक्षा के लिए, पलायन को रोकना बहुत ज़रूरी है। उत्तराखंड में हमें और सरकार को मिलकर एक रास्ता निकालना पड़ेगा। वर्तमान मुख्यमंत्री, पुष्कर धामी जी ने पलायन को रोकने के लिए ये कहा है कि उत्तराखंड के लोगों रोज़गार के लिए स्वरोजगार की तरफ चलना होगा। हमें स्वरोजगर को अपनाना होगा जिससे पलायन को रोकने में मदद मिलेगी। माननीय प्रधानमंत्री जी की ये सोच है कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी, पहाड़ के काम आनी चाहिए। पहाड़ के लोगों को खुद अपना रास्ता चुनना होगा। ये बात उत्तराखंड को आत्मनिर्भर उत्तराखंड बनाने की ओर अग्रसर करेगा। हमे खुद ये पहल शुरू करनी चाहिए जिससे हम खुद भी सशक्त हो और दूसरों को भी सशक्त करें। इससे हम हमारी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं की विरासत को लुप्त होने से बचा सकते हैं।
जय उत्तराखंड।