भारत में जी20 सम्मेलन होने से भारत का एक अलग ही माहौल बना है दुनिया भर में। विश्व स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का कद वास्तव में पहले से कई गुना अधिक ऊंचा हुआ है। देश को विश्व गुरु बनाने की जो मुहिम छेड़ी है माननीय प्रधानमंत्री जी ने उसपर अमल भी किया हैं। सबसे बड़ी बात क्या मोदी जी के पट्टिका पर “भारत” लिखा गया गया था। सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की पहचान “भारत” का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता के तौर पर पेश की गई। सरकार ने जी 20 के कई आधिकारिक दस्तावेजो में देश के लिए “भारत” शब्द का प्रयोग किया।
मोदी जी ने जब शिखर सम्मेलन को संबोधित किया था, उस समय उनके सामने रखी नाम पट्टिका में “भारत” लिखा था। अर्थात एजेंडा तय है कि देश के अस्तित्व एकता और अखंडता संप्रभुता से कोई खिलवाड़ नही कर सकता है। जब बात भारत को उसकी खोई हुई विरासत और पहचान दिलाने की है तो सबसे पहले नाम पर ही काम करना जरूरी था।मोदी जी ने आह्वान किया की विश्वास की कमी को “भरोसे” में बदले। अशांत वैश्विक अर्थव्यस्था,आतंकवाद तथा खाद्य, ईंधन एवं उर्वरकों के प्रबंधन का ठोस समाधान को लेकर जोर दिया और आह्वान किया की इसका सामूहिक रूप से समाधान निकाले। साथ ही साथ क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने का आह्वान हुआ।
जी20 देशों के ‘नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लेरेशन’ में शनिवार को कहा गया कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है और इसी के मद्देनजर घोषणापत्र में सभी देशों से क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता सहित अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को बनाए रखने का आह्वान किया गया।घोषणापत्र में कहा गया है कि संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के साथ-साथ कूटनीति और संवाद भी जरूरी है। इसमें कहा गया है कि यूक्रेन में युद्ध के संबंध में बाली में हुई चर्चा को याद किया गया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपनाए गए प्रस्तावों को दोहराया गया।
यूक्रेन संघर्ष पर घोषणा पत्र की खास बातें :
■ आज का युग युद्ध का युग नहीं है
■ संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के साथ-साथ कूटनीति और संवाद भी जरूरी
■ सभी देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करें
■ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल या इस्तेमाल की धमकी देना अस्वीकार्य
■ जी20 आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है, भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों के समाधान का मंच नहीं
■ रूसी संघ और यूक्रेन से अनाज, खाद्य पदार्थों और उर्वरकों की तत्काल और निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने का आह्वान
इसके साथ 55 देशों के सदस्यों वाले अफ्रीकन यूनियन को प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्थायी सदस्यता दिलवाई। अफ्रीकी संघ सात वर्ष से पूर्ण सदस्यता की मांग कर रहा था सभी लोग जानते है इस बात को, बाली में हुए सम्मलेन में प्रधामंत्री ने कहा था मोदी की गारंटी है चिंता मत करिए सदस्यता मिलकर रहेगी। इससे होगा क्या की ग्लोबल साउथ को आवाज को मजबूती मिलेगी। भले ही जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल कराने का श्रेय चीन और रूस भी ले रहे हों लेकिन दिल्ली शिखर सम्मेलन में इसका फैसला होने से यह उपलब्धि भारत के ही खाते में दर्ज की जायेगी। इससे ग्लोबल साउथ की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत में भारत का प्रभाव भी बढ़ेगा।
जी20 में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करने का फायदा अफ्रीका के 55 देशों को होगा। अफ्रीका के कई देशों में अभी भी उपनिवेश का प्रभाव है और तमाम देशों में ज्यादा विकास नहीं हुआ है। चीन इन देशों में अपना प्रभाव बनाना चाहता है, हालांकि इन देशों को भारत से नजदीकी बनाना अधिक अनुकूल लगता है। वजह साफ है कि भारत उन पर चीन की तरह अपनी शर्तें नहीं थोपता।इस बात पर गौर करना होगा कि घाना, तंजानिया, कोंगो, नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी देशों से भारत की पुरानी निकटता है और भारतीय वहां लंबे समय से रह भी रहे है। विशेषज्ञ कहते है कि अफ्रीकी देशों का अब इटली, फ्रांस और जर्मनी सरीखे देशों से मोह भंग हो गया है। वह भारत, चीन और जापान जैसे एशियाई देशों में संभावनाएं देख रहे है।
चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और अफ्रीकी देश सबसे ज्यादा कर्ज भी उसी से लेते हैं। वहीं रूस अफ्रीकी देशों का सबसे बड़ा हथियार प्रदाता है। देखा जाए तो दुनिया को जिन संसाधनों की जरूरत है, उनमें अफ्रीकी देश बेहद समृद्ध है। अफ्रीकी महाद्वीप में विश्व की 60% नवीकरणीय ऊर्जा संपत्तियाँ और 30% से अधिक खनिज है जो नवीकरणीय और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के लिए महत्वपूर्ण है। अफ्रीका के आर्थिक विकास पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट है कि अकेले कांगो में दुनिया का लगभग आधा कोबाल्ट है, जो लिथियम-आयन बैटरी के लिए आवश्यक धातु है। जी20 में अफ्रीकी यूनियन को शामिल करने का सबसे बड़ा उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाना है।
अफ्रीकन संघ को इसका लाभ तो होगा ही। अफ्रीका के विकास को बढ़ावा मिलेगा, वैश्विक अर्थव्यवस्था में अफ्रीकी देशों की वास्तविक भागीदारी होगी और तो और तो अफ्रीकी देशों की आवाज बुलंद होगी..! जिसका श्रेय भारत को ही जाता है। इस जी20 सम्मलेन में प्रधामंत्री मोदी के बाद तो दो ही सबकी नजरें ज्यादा टिकी हुई थी वो है अफ्रीकन संघ के प्रमुख अजाली असोमानी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पास आकर गले लगना और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता।
बाकी हमे इटली की प्रधानमंत्री जियॉर्जिया मेलोनी को भी नही भूलना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ हुई बैठको का नतीजा ही है जो इटली चीन के बेल्ट रोड परियोजना(BRI) से बाहर निकलने का फैसला किया।सबसे बड़ी बात क्या की सबकी नजरें मोदी जी पर टिकी हुई थी चीन और रूस के राष्ट्रपतियों के आने न आने का कोई फर्क नही पड़ा। हालांकि रूस ने भारत का समर्थन किया है घोषणा पत्र को लेकर।
बाकी जो भी हो मोदी ने दुनियां को सबका “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास का” मंत्र दिया। यह जी20 सम्मलेन भारत की एक ऐतिहासिक सफलता है। जिसे आने वाले समय में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। वैश्विक स्तर पर मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने जो पहचान बनाई उसको आने वाले समय में भी बरकरार रखना होगा तभी देश विश्व गुरु बन पायेगा।