Monday, November 4, 2024
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भारत में पनपती तालिबानी मानसिकता

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumar
Politics -Political & Election Analyst

राजस्थान के उदयपुर और महाराष्ट्र के अमरावती में हुई बर्बर हत्या ने साबित कर दिया हैं कि सिर तन से जुदा की सनक वाले देश में जिहाद करने के लिए बेख़ौफ़ बेलगाम होते जा रहे हैं. कइयों को ऐसी धमकियाँ मिल रही हैं जो नूपुर शर्मा के समर्थन में बोल रहे हैं, चाहे वो भाजपा नेता कपिल मिश्रा को ईमेल के माध्यम से दी गई धमकी हो. इससे पहले भी ऐसी वीभत्स घटनाएँ हो चुकी हैं. आपको याद होगा ही कर्नाटक के शिवमोगा में हर्षा नामक युवक की केवल इसलिए हत्या कर दी गई थी उसने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने की जिद की जगह भगवा शाल पहनने की वकालत की थी.

इसी तरह गुजरात के अहमदाबाद में कथित ईशनिंदा के नाम पर किशन भरवाड की हत्या कर दी गई थी. हालांकि, ये घटनाएँ नुपुर शर्मा के बयां से वास्ता नहीं रखती हैं. लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भी मायने नहीं रखती जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें देश का माहौल ख़राब करने के लिए जिम्मेदार बता दिया. मदरसों में इस्लाम के नाम पर दी जाने वाली तालीम आज की बात नहीं है. इन संस्थानों में इस्लाम के नाम पर कैसी जिहादी ट्रेनिंग दी जा रही हैं, क्या उसकी वजह भी कोई बयान भर है या यह गलाकाट हिंसा को विस्तार देने वाले सुनियोजित एजेंडे का हिस्सा है? मुस्लिम युवायों को एक नैरेटिव के साथ बहुसंख्यक हिंदू समाज के खिलाफ उकसाने का कुचक्र भी क्या किसी नूपुर शर्मा के कारण संभव हुआ हैं? विभिन्न शहरोँ की आतंकवादी घटनाओं में अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठनों भी भागीदारी और आरोपी मुस्लिम युवकों की संलिप्तता उजागर होती आ रही हैं. क्या इसके पीछे भी किसी नूपुर शर्मा का बयान ही हैं?

देश के विभिन्न शहरोँ में अपने खिलाफ दर्ज मामलों को दिल्ली स्थानांतरित करने की नूपुर की मांग पर न्यायधीशों ने देश की हालिया हिंसक घटनाओं के पीछे नूपुर शर्मा को जिम्मेदार बताने वाली टिप्पणी कर दी, जिस पर देश में एक बहस छिड़ गई हैं. यह साबित हुए बिना ही कि नूपुर शर्मा के कारण ही उदयपुर की घटना हुई, शीर्ष अदालत ने उन पर टिपण्णी कर दी जो फ़ैसले का लिखत हिस्सा नहीं हैं. अदालत ने जिस तरह सुनवाई के दौरान ही उन्हें उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया उससे उन तत्वों का मनोबल बढ़ने का ख़तरा बढ़ सकता हैं जो सिर तन से जुदा करने की धमकियाँ दे रहे हैं और विरोध करने वालों के खिलाफ दहशत फैला रहे हैं.

शीर्ष अदालत की ऐसी टिप्पणियों से सड़क पर उत्पात मचाने वालोँ को शह मिल जाती हैं. मान भी लिया जाये की टीवी पर बहस में नूपुर शर्मा के बयान से एक पक्ष की भावनाएं आहात होती हैं, इसका मतलब ये तो बिलकुल नहीं हैं कि उद्देलित लोग हिंसा फैलाएं और हत्या को अंजाम देने लगे. नूपुर शर्मा का बयान गलत हैं तो मुस्लिम नेता तस्लीम रहमानी ने भी हिंदू धर्म में भगवान शिव पर घटिया टिप्पणी की थी वो अभी तक शीर्ष अदालत की टिप्पणी और जेल जाने से कैसे बचा हुआ हैं! सरकार को देश में तेजी से फ़ैल रही जिहादी और सिर तन से जुदा वाली खतरनाक तालिबानी मानसिकता को कुचलने के लिए ठोस और प्रभावी कदम उठाने होंगे.

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