देश-दुनिया के लिए वर्ष दर वर्ष धधकती धरती जलवायु परिवर्तन के द्वारा लगातार दुनिया में तेजी के साथ बढ़ते हुए तापमान के संकेत बार-बार देना का कार्य कर रही है। लेकिन हम लोग सब कुछ समझने के बाद भी धरती की इस चिंताजनक हालात पर एक उस कबूतर की तरह ऑंख बंद करके बैठे हुए हैं, जो बिल्ली को देखकर अपने बचाव में ऑंख बंद करके बैठकर अपने आपको सुरक्षित मानने की गलतफहमी पाल लेता है और अंत में बिल्ली का शिकार बन जाता है, ठीक उसी तरह हम लोग भी अभी विज्ञान के द्वारा जनित साधनों के दम पर अपने आपको धधकती धरती की आग के अंतिम परिणाम से सुरक्षित मान रहे हैं, जो कि भविष्य में हम लोगों की एक बहुत बड़ी भूल व कल्पना मात्र ही साबित होगी।
आज धरातल पर बन रही स्थिति को ध्यान से देखें तो दुनिया का कोई भी महाद्वीप बढ़ते तापमान के चलते वहां पर हो रहे जलवायु परिवर्तन से अछूता नहीं बचा है, हालात यह हो गये हैं कि हर वक्त बर्फ़ की मोटी चादर में लिपटे रहने वाला अंटार्कटिक महाद्वीप में भी अब जलवायु परिवर्तन के चलते बहुत ज्यादा परिवर्तन हो रहे हैं, यहां पर तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि होने के चलते दिन प्रतिदिन अंटार्कटिक की बर्फ़ की चादर पिघलने के कारण से कम होती जा रही है। अब तो दुनिया के हर महाद्वीप में मौसम में वैश्विक स्तर पर बड़े परिवर्तनों के दुष्प्रभाव वर्ष दर वर्ष एक नया भयावह रूप लेकर के आने लगे हैं।
“भारत की बात करें तो इस वर्ष 2022 में देश के बहुत सारे हिस्सों के निवासियों को वसंत ऋतु का आनंद ही नहीं मिला पाया, शरद ऋतु समाप्त होने के बाद मात्र चंद दिनों तक ही वसंत ऋतु रहने पश्चात, इस वर्ष ग्रीष्म ऋतु जैसे हालात शुरू हो गये। मार्च-अप्रैल माह में पड़ी भीषण गर्मी ने इस बार वर्षों पुराने रिकॉर्ड को तोड़ने का कार्य किया है। जिसका प्रकोप मई-जून के माह में भी निरंतर जारी है, देश के विभिन्न स्थानों पर ‘हीट वेव’ के चलते बढ़ते तापमान के नित-नये कीर्तिमान बना रहे हैं और हम इस स्थिति से निपटने के लिए प्रकृति के सामने एकदम बेबस लाचार नजर आ रहे हैं।”
देश में बढ़ते तापमान के प्रकोप को हम भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों की नजरों से देखें, तो इस वर्ष 2022 के मार्च माह में देश का औसत अधिकतम तापमान मार्च माह में ही 33.1 डिग्री सेल्सियस तक चला गया था, जिसके चलते वर्ष 1901 के बाद इतिहास में पहली दफा मार्च माह को सबसे गर्म महीने के रूप में रिकॉर्ड किया गया। देश में यह आंकड़े तापमान विचलन के पैमाने को दर्शाते हैं, जिसने देश के अधिकांश हिस्सों में मार्च के महीने में ही प्रभावी ढंग से गर्मी बढ़ाने का कार्य किया था।
हालांकि इस पर मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि हवा के पैटर्न में असामान्य बदलाव को जलवायु संकट से जोड़ा जा सकता है। इसका कारण इन क्षेत्रों में वर्षा की कमी को भी माना जा सकता है। वैसे भी इस बार मार्च के महीने में हीट वेव की घटनाएं शुरू हो गयी थी, देश में एंटी-साइक्लोनिक सर्कुलेशन की वजह से पश्चिम की ओर से उत्तर और मध्य भारत में गर्मी बढ़ी थी। इस बार मार्च माह के दूसरे पखवाड़े में उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में 15 दिन लू का चलना दर्ज किया गया था, जो कि अपने आप में एक अप्रत्याशित घटना है।
वहीं अप्रैल माह में भी देश के कई क्षेत्रों में उच्च तापमान रिकॉर्ड 45 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया था। देश में सिर्फ मार्च माह ही नहीं, बल्कि अप्रैल माह ने भी पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ने का कार्य इस वर्ष किया है। ‘आईएमडी’ के विश्लेषण के अनुसार अप्रैल माह उत्तर पश्चिम और मध्य भारत के लिए सबसे गर्म माह था और देश ने पिछले 122 वर्षों (1901 से 2022) में तीसरा सबसे गर्म अप्रैल माह देखा है। इस बार
अप्रैल माह में औसत 35.05 डिग्री सेल्सियस उच्चतम तापमान रहा है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार देश के कुछ भागों में अप्रैल माह में भी 21 दिन तक लू चली थी। वहीं मई-जून के माह में भी लगातार देश के विभिन्न क्षेत्रों में हीट वेव का प्रकोप देखने के लिए मिल रहा है, मई माह में भी 15 दिन लू का जबरदस्त प्रकोप रहा था। देश-दुनिया में वर्ष दर वर्ष जिस तरह से तापमान में वृद्धि जारी है, वह स्थिति भविष्य में हमारी प्यारी धरा पर किसी भी प्रकार के जीवन के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
देश में हीट वेव चलने का प्रभाव वनस्पति, जीव-जंतुओं व मानव जीवन पर भी स्पष्ट रूप से अब तो नज़र आने लगा है। हीट वेव से आम जनमानस की जीवनशैली भी प्रभावित हो रही है। हालांकि फिलहाल देश में अच्छी बात यह है कि भारत में गर्मी की लहरों के कारण होने वाली मौतों की संख्या में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है, लेकिन वैज्ञानिकों की शोध से यह पता चलता है कि अत्यधिक तापमान से हम लोगों की सामान्य शारीरिक क्षमता और मानसिक स्थिति तक भी काफी प्रभावित हो जाती है। गर्मी के प्रकोप से जहां एक तरफ तो हमारे स्वास्थ्य, जीव-जंतु, वनस्पतियों आदि पर बुरा प्रभाव पड़ता है, वहीं दूसरी तरफ मानव, जीव-जंतु, वनस्पति व सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र की पानी पर निर्भरता अधिक बढ़ जाती है, जबकि पानी का मुख्य स्रोत बारिश होना कम हो जाता है।
जसकी वजह से गर्मी के भीषण प्रकोप के चलते देश के बहुत सारे हिस्सों को सूखे जैसी परिस्थितियों से जनित भिन्न-भिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उस वक्त पानी की एक एक बूंद अनमोल होती है, लेकिन पानी की कमी के चलते सभी का जीवन प्रभावित हो जाता है। सूखे की स्थिति उत्पन्न होने के दौरान अगर उस क्षेत्र में पानी की अनुपलब्धता हो जाये, तो स्थिति बेहद विकराल हो जाती है, इस स्थिति में मानव, जीव-जंतु व वनस्पति सभी के ही लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है। कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की अनुपलब्धता होने के कारण से सुखाग्रस्त क्षेत्र में अन्न की पैदावार बहुत कम हो जाती है, पानी की कमी से जहां एक तरफ वनस्पति व कृषि उपज सूख जाती है, वहीं दूसरी तरफ जीव-जंतुओं व मानव को जीवन जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और धरा पर बहुत से जीव-जंतु व मानव असमय काल का ग्रास बन जाते हैं।
हालांकि पृथ्वी का तापमान बढ़ने के लिए देश-दुनिया में चल रही अंधाधुंध अव्यवस्थित विकास की होड़ और ग्रीनहाउस गैसें बहुत ज्यादा जिम्मेदार हैं। आज दुनिया में मानव की स्वयं की विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के कारण ही धरती के वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (CHGs) का बहुत ज़्यादा उत्सर्जन हो रहा है, जिसके चलते वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जैसी अन्य गैसों के उलट, ग्रीनहाउस गैसें, पृथ्वी के वातावरण में ही ठहर जाती हैं और वह पृथ्वी से दूर नहीं जा पाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह पर ऊर्जा वापस लौट आती है, वापस लौटने वाली ऊर्जा की मात्रा पृथ्वी से दूर जाने वाली ऊर्जा से ज़्यादा हो जाती है, जिस वजह से पृथ्वी की सतह का तापमान तब तक बढ़ता रहता है, जब तक कि पृथ्वी पर ऊर्जा के आने-जाने के क्रम में किसी प्रकार से कोई सन्तुलन नहीं बन जाता है। बढ़ते प्रदूषण व इस प्रकार स्थिति से ओजोन परत को भी दिन प्रतिदिन बहुत तेजी से नुक़सान हो रहा है।
हालांकि दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर भी बहुत सारे प्रयास चल रहे हैं, जिसमें सबसे अहम वर्ष 2015 में पेरिस जलवायु समझौता के अंतर्गत किये गये प्रावधान हैं, इसके अन्तर्गत तापमान को पूर्व औद्यागिक स्तर में 2°C तक सीमित रखना एवं इसे और आगे 1.5°C तक सीमित रखने का प्रयास करना है, विकसित देशों के द्वारा विकासशील देशों को पर्यावरण संरक्षण के लिए 100 बिलियन डॉलर की धनराशि उपलब्ध करवाना शामिल है, वहीं यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क ऑन क्लाईमेट चेंज (UNFCCC) के COP-23 में पहली बार एक्शन प्लान को अंगीकार किया गया, दुनिया में ऊर्जा के एक नये प्रमुख विकल्प के रूप में ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ की स्थापना की गयी है, COP-25 में पेरिस समझौते के प्रावधनों को क्रियान्वित करने की प्रतिबद्धता जताई गई। हालांकि इस पेरिस समझौते के पूर्ण रूप से धरातल पर क्रियान्वयन में सबसे अधिक बाधक स्वयं ताकतवर विकसित देश ही हैं, लेकिन इस संदर्भ में भारत में धरातल पर बहुत कार्य चल रहा है, जो कि हमारे जीवन के लिए एक अच्छा संकेत है।
वैसे भी आज समय की मांग है कि हम लोगों को धधकती धरती के द्वारा दिये जा रहे बार-बार संकेतों को समझकर, धरा पर जीवन को सुरक्षित रखने की खातिर प्रकृति के साथ सामंजस्य करके समय रहते चलना सीखना होगा। पर्यावरण की रक्षा के लिए हमारा देश भारत पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध होकर धरातल पर कार्य कर रहा है, जिस कार्य में जल्द से जल्द तय लक्ष्य को हासिल करने के लिए आम जनमानस को दिल से सहयोग करके भारत सरकार की पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को सफल बनाना चाहिए। आज भारत में एक बहुत बड़े स्तर पर हरित कार्यवाई करने का कार्य धरातल पर चल रहा है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2022 के अंत तक भारत के द्वारा 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इस को बढ़ाकर 450 गीगावाट करने की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा की गई है।
“जलवायु परिवर्तन पर देश में राष्ट्रीय कार्ययोजना के अंतर्गत महत्वपूर्ण आठ मिशनों का संचालन किया जा रहा है, जिसके अन्तर्गत देश में – राष्ट्रीय सौर मिशन, विकसित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन, सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन, हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन चलाएं जा रहे हैं, जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद प्रभावी कदम हैं।”
वहीं वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित संसाधनों से लगभग 40% विद्युत शक्ति स्थापित करके तय क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। वर्ष 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन CO2 के बराबर का कार्बन सिंक सृजित करना भारत सरकार का पर्यावरण संरक्षण के लिए अहम लक्ष्य है। इसके अलावा पर्यावरण प्रभाव आकलन, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, हरित कौशल विकास कार्यक्रम, जैविक कृषि को बढ़ावा देने आदि योजनाओं पर देश में प्रकृति के साथ तालमेल करते हुए बृहद स्तर पर धरातल पर काम करने के प्रयास किये जा रहे हैं, जो कि आम लोगों के जीवन के हित में भारत सरकार की एक बेहद सराहनीय पहल है।
वैसे भी धरातल पर आयेदिन उत्पन्न होने वाली स्थिति को देखें तो देश-दुनिया में निरंतर बढ़ते हुए तापमान के चलते स्थिति बेहद गंभीर हो चुकी है, अब धरती की इस गंभीर समस्या के स्थाई रूप से समाधान के लिए सभी देशों को एकजुट होकर के तत्काल धरातल पर ठोस प्रभावी कदम उठाने ही होंगे। वैसे भी अभी तो देश व दुनिया को निरंतर धधकती धरती स्वयं ही लगातार जल्द से जल्द स्थिति को धरातल पर सुधारने की चेतावनी मात्र ही दे रही है, लेकिन उस सबके बावजूद भी हम लोग ना जाने क्यों अव्यवस्थित विकास की अंधी अंधाधुंध दौड़ में समय रहते हुए प्रकृति के साथ सामंजस्य ना करके, धधकती हुई धरती की भविष्य में बड़े ख़तरे की चेतावनी को जानबूझकर अनदेखा करके, नजर अंदाज करने का कार्य कर रहे हैं, जो कि पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखने के लिए उचित नहीं है। अंधाधुंध विकास के नाम पर हम लोग प्रकृति के द्वारा निशुल्क उपहार में दिये गये बेहद अनमोल संसाधनों का बड़े पैमाने पर दोहन करके प्रकृति को अपने ही हाथों से जबरदस्त नुक़सान पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।
आज हम लोग अपने व अपने परिवार के लिए विभिन्न प्रकार की अत्याधुनिक सुविधाओं को इकट्ठा करने की जबरदस्त होड़ में लगें हुए हैं, लेकिन इन सुविधाओं का उपयोग करते समय हम अक्सर प्रकृति के साथ तालमेल बैठाना ना जाने क्यों ज़रूरी नहीं समझते हैं। हम लोग तेजी से बढ़ते तापमान व जलवायु परिवर्तन की वजह से धरती पर उत्पन्न आज की स्थिति देखकर भी भविष्य के लिए सबक लेने के लिए अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हैं, विकट परिस्थितियों को देखने व समझने के बाद भी देश व दुनिया की आबादी का एक बड़ा वर्ग प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं, जबकि हम लोग यह अच्छे से जानते हैं कि भविष्य में इसके बेहद गंभीर परिणाम हो सकते हैं, यह स्थिति धरा पर हर तरह के जीवन के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है, लेकिन फिर भी हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर आज व भविष्य के लिए पर्यावरण सरंक्षण की कोई विशेष चिंता नहीं है। हमें पृथ्वी एवं उस पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को अब रोजमर्रा के व्यवहार में लाकर जीवन शैली का एक अहम अभिन्न अंग बनाने की जरूरत है।
हम लोगों को समय रहते यह समझना होगा कि जिस तरह से प्रकृति अपने निशुल्क के संसाधनों के द्वारा हम सभी का भरण-पोषण करती है, उसके बदले में हम लोगों का भी यह अहम दायित्व है कि हम भी प्रकृति की उचित देखभाल करते हुए, हर परिस्थिति में उसके संरक्षण को प्राथमिकता देने का कार्य करें, तब ही धरा पर प्रकृति व जीवन दोनों सुरक्षित रह सकते हैं।
।। जय हिन्द जय भारत ।।
।। मेरा भारत मेरी शान मेरी पहचान ।।