Friday, March 29, 2024
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समान नागरिक संहिता जल्द लागू करेंगे: पुष्कर सिंह धामी

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उत्तराखंड विधानसभा में चुनाव प्रचार के दौरान यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के वादे किए गए थे उसे पुष्कर सिंह धामी ने विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद दोहराया है और इसकी प्रक्रिया जल्द ही शुरू करने की बात कही है।

*क्या है संवैधानिक प्रावधान:-*
संविधान के अनुच्छेद 44 में भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता का प्रावधान है। इस कानून के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होता है यद्यपि व्यक्ति किसी भी धर्म या समुदाय का हो। इस कानून का उद्देश कमजोर वर्ग को भेदभाव की समस्या से निजात दिलाना देश भर में विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच तालमेल बैठाना, रुढ़िवादिता तथा धार्मिक कट्टरता समाप्त करना है।
समान नागरिक संहिता के अंतर्गत व्यक्तिगत स्तर संपत्ति के अधिग्रहण, संचालन का अधिकार, विवाह, तलाक और गोद लेने की प्रक्रिया सभी नागरिक के लिए एक समान होगी।

*समान नागरिक संहिता स्वीकार करने वाले देश:-*
विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू है, जैसे – अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और मिश्र।

भारत में सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय ने 1885 में शाह बानो मामले में फैसले के बाद संसद को समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश दिया था।

*इस कानून के लाभ:-*
कई व्यक्तिगत कानून जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं और समुदाय के बीच भेदभाव बढ़ाते हैं वह खत्म होगा।

धार्मिक तथा लैंगिक भेदभाव खत्म होगा

राष्ट्रीय एकीकरण और एकरूपता होगी।

शादी तलाक विरासत के अधिकार बच्चों की कस्टडी गोद लेने की प्रक्रिया आदि अदालतों में कानूनन समानता और न्याय का अधिकार देगा।

न्यायालय की जटिलता कम होगी, न्यायालय पर लंबित मुकदमों की संख्या कम होगा और न्यायिक प्रक्रिया तेज होगी।

*संवैधानिक चुनौतियां:-*

धर्म की स्वतंत्रता समानता के अधिकार का टकराव होगा।

अनुच्छेद 25-29 में वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता है उसका हनन होगा।

संविधान में धर्म आधारित प्रावधान जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू कोड बिल, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, द हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षा अधिनियम 1956, द हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटिनेस एक्ट 1956।
मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 जो सरिया कानून द्वारा शासित किए गए हैं।
इसके अलावा यहूदी और ईसाई अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35 में उल्लिखित है कि नीति निर्देशक तत्वों में वर्णित तथ्य न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे अर्थात इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।

उत्तराखंड विधानसभा में चुनाव प्रचार के दौरान यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के वादे किए गए थे उसे पुष्कर सिंह धामी ने विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद दोहराया है और इसकी प्रक्रिया जल्द ही शुरू करने की बात कही है।

*क्या है संवैधानिक प्रावधान:-*
संविधान के अनुच्छेद 44 में भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता का प्रावधान है। इस कानून के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होता है यद्यपि व्यक्ति किसी भी धर्म या समुदाय का हो। इस कानून का उद्देश कमजोर वर्ग को भेदभाव की समस्या से निजात दिलाना देश भर में विविध सांस्कृतिक समूहों के बीच तालमेल बैठाना, रुढ़िवादिता तथा धार्मिक कट्टरता समाप्त करना है।

समान नागरिक संहिता के अंतर्गत व्यक्तिगत स्तर संपत्ति के अधिग्रहण, संचालन का अधिकार, विवाह, तलाक और गोद लेने की प्रक्रिया सभी नागरिक के लिए एक समान होगी।

*समान नागरिक संहिता स्वीकार करने वाले देश:-*
विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू है, जैसे – अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और मिश्र।

भारत में सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय ने 1885 में शाह बानो मामले में फैसले के बाद संसद को समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश दिया था।

*इस कानून के लाभ:-*
कई व्यक्तिगत कानून जो सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं और समुदाय के बीच भेदभाव बढ़ाते हैं वह खत्म होगा।

धार्मिक तथा लैंगिक भेदभाव खत्म होगा

राष्ट्रीय एकीकरण और एकरूपता होगी।

शादी तलाक विरासत के अधिकार बच्चों की कस्टडी गोद लेने की प्रक्रिया आदि अदालतों में कानूनन समानता और न्याय का अधिकार देगा।

न्यायालय की जटिलता कम होगी, न्यायालय पर लंबित मुकदमों की संख्या कम होगा और न्यायिक प्रक्रिया तेज होगी।

*संवैधानिक चुनौतियां:-*

धर्म की स्वतंत्रता समानता के अधिकार का टकराव होगा।

अनुच्छेद 25-29 में वर्णित धार्मिक स्वतंत्रता है उसका हनन होगा।

संविधान में धर्म आधारित प्रावधान जैसे हिंदुओं के लिए हिंदू कोड बिल, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, द हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षा अधिनियम 1956, द हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटिनेस एक्ट 1956।
मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ 1937 जो सरिया कानून द्वारा शासित किए गए हैं।
इसके अलावा यहूदी और ईसाई अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35 में उल्लिखित है कि नीति निर्देशक तत्वों में वर्णित तथ्य न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे अर्थात इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।

*इससे जुड़े इतिहास के तथ्य:-*
यदि उत्तराखंड की विधानसभा समान नागरिक संहिता लागू करती है तो यह भारत का दूसरा राज्य होगा जहां समान नागरिक संहिता लागू होगा। जबकि स्वतंत्रता के बाद समान नागरिक संहिता कानून लागू करने वाला पहला राज्य उत्तराखंड होगा। क्योंकि गोवा एक ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता स्वतंत्रता से पूर्व ही लागू है।

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