मित्रों जैसा की सर्वविदित है की अभिनय करके और नाच गा कर हमारा और आपका मनोरंजन करने वाले चलचित्र अभिनेता श्रीमान शाहरुख़ खान के सपूत आर्यन शाहरुख़ खान को उनके मित्रों के साथ ३/१०/२०२१ को Narcotics Control Buero द्वारा “स्वापक ओषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, १९८५ की धाराओं ८ ग के साथ २० ब, २७, २८,२९, और ३५ में दिए गए प्रावधानों के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया। इस सम्बन्ध में NCB के द्वारा आर्यन खान और अन्य ७ के विरुद्ध C. R. संख्या ९४/२०२१ पंजीकृत किया गया। आर्यन खान ७ अन्य अभियुक्तों के साथ दिनांक ३/१०/२०२१ से लेकर आज तक २२/१०/२०२१ तक जमानत पर छूटने में कामयाब नहीं हो पाए हैं जबकि उनके पिताजी ने महाराष्ट्र राज्य के सबसे महंगे और नामचीन वकीलों की फौज खड़ी कर दी है और दिन रात जमानत प्राप्त करने के जुगाड़ में हाथ पाव मार रहे हैं, यँहा तक की महाराष्ट्र सरकार के कई मंत्री भी उनकी पैरवी कर रहे हैं, आलम तो ये है की NCB को ही कटघरे में खड़ा करके उसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका भी दायर कर दिया गया है।
खैर आइये देखते हैं आखिर ये स्वापक ओषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 i.e. Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act, 1985 (NDPS Act)) है क्या और उपरोक्त धाराएँ क्या प्रावधान करती हैं?
स्वापक (Narcotic) ओषधियों (Drugs) से संबंधित विधि (Law) का समेकन (Consolidation) और संशोधन (Amendment)करने के लिए, स्वापक ओषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों (Psychotropic Substances) से संबंधित संक्रियाओं (Operations) के नियंत्रण (Control)और विनियमन (Regulations) के लिए [स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थों के अवैध व्यापार (illicit traffic) से प्राप्त या उसमें प्रयुक्त संपत्ति के समपहरण (Forfeiture of Property) का उपबंध (Provision) करने के लिए, स्वापक ओषधि और मनःप्रभावी पदार्थों पर अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन (International Conventions) के उपबंधों को कार्यान्वित (Implement) करने के लिए] तथा उससे संबंधित विषयों के लिए कड़े उपबन्ध करने के लिए इस अधिनियम को दिनांक १६ सितम्बर १९८५ को लागू किया गया।
आइये अब उन धाराओं को देखते हैं, जिनके प्रावधानों के अंतर्गत आर्यन खान और ७ अन्य को गिरफ्तार किया गया है:-
धारा ८ (ग) किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, भाण्डागारण, उपयोग, उपभोग, अन्तरराज्य आयात, अन्तरराज्य निर्यात, भारत में आयात, भारत से बाहर निर्यात या यानान्तरण, चिकित्सीय या वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिए और इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों या निकाले गए आदेशों के उपबंधों द्वारा उपबंधित रीति से और विस्तार तक ही और ऐसी किसी दशा में जहां ऐसे किसी उपबंध में अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, या प्राधिकार के रूप में कोई अपेक्षा अधिरोपित की गई है वहां ऐसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र या प्राधिकार के निबन्धनों और शर्तों के अनुसार ही करेगा अन्यथा नहीं: परन्तु इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, गांजा के उत्पादन के लिए कैनेबिस के पौधे की खेती या चिकित्सीय और वैज्ञानिक प्रयोजनों से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए गांजा के उत्पादन, कब्जे, उपयोग, उपभोग, क्रय, विक्रय, परिवहन, भाण्डागारण, अन्तरराज्यिक आयात और अन्तरराज्यिक निर्यात के विरुद्ध प्रतिषेध केवल उस तारीख से प्रभावी होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे: [परंतु यह और कि इस धारा की कोई बात आलंकारिक प्रयोजनों के लिए पोस्ततृण के निर्यात को लागू नहीं होगी।] अतः स्पष्ट है की NCB के अनुसार आर्यन खान ने अपने ७ अन्य साथियों के साथ मिलकर इस प्रावधान के विरुद्ध कार्य किया है।
धारा २०. कैनेबिस के पौधे और कैनेबिस के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड-जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में, -(क) किसी कैनेबिस के पौधे की खेती करेगा; या (ख) कैनेबिस का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात या उपयोग करेगा;
[(i) जहां उल्लंघन खंड (क) के संबंध में है वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा; और (ii) जहां उल्लंघन खंड (ख) के संबंध में है, – (अ) और अल्पमात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि [एक वर्ष] तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, (आ) और जहां वाणिज्यिक मात्रा से कम किंतु अल्प मात्रा से अधिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, (इ) और जहां वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है, वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा: परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा।]
धारा २७. किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ के उपभोग के लिए दंड-जो कोई, किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का उपभोग करेगा, वह- (क) जहां ऐसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ, जिसका उपभोग किया गया है, कोकेन, मार्फिन, डाइऐसीटल मार्फिन या ऐसी कोई अन्य स्वापक ओषधि या ऐसा कोई मनःप्रभावी पदार्थ है, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो बीस हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से; और (ख) जहां ऐसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का उपभोग किया गया है, जो खंड (क) में विनिर्दिष्ट ओषधि या पदार्थ से भिन्न है वहां, कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दंडनीय होगा।]
धारा २८. अपराध करने के प्रयत्नों के लिए दंड-जो कोई इस अध्याय के अधीन दंडनीय कोई अपराध करने का या ऐसे अपराध का किया जाना कारित करने का प्रयत्न करेगा और ऐसा प्रयत्न करने में उस अपराध के संबंध में कोई कार्य करेगा, वह उस अपराध के लिए उपबन्धित दंड से दंडनीय होगा।
धारा २९ . दुष्प्रेरण और आपराधिक षड्यंत्र के लिए दंड-(1) जो कोई इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा या ऐसा कोई अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र का पक्षकार होगा, वह चाहे ऐसा अपराध ऐसे दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप या ऐसे आपराधिक षड्यंत्र के अनुसरण में किया जाता है या नहीं किया जाता है और भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 116 में किसी बात के होते हुए भी, उस अपराध के लिए उपबन्धित दंड से दंडनीय होगा।
धारा ३५. आपराधिक मानसिक दशा की उपधारणा-(1) इस अधिनियम के अधीन किसी ऐसे अपराध के किसी अभियोजन में, जिसमें अभियुक्त की मानसिक दशा अपेक्षित है, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि अभियुक्त की ऐसी मानसिक दशा है किन्तु अभियुक्त के लिए यह तथ्य साबित करना एक प्रतिरक्षा होगी कि उस अभियोजन में अपराध के रूप में आरोपित कार्य के बारे में उसकी वैसी मानसिक दशा नहीं थी। स्पष्टीकरण-इस धारा में आपराधिक मानसिक दशा” के अन्तर्गत आशय, हेतु, किसी तथ्य का ज्ञान और किसी तथ्य में विश्वास या उस पर विश्वास करने का कारण है।
(2) इस धारा के प्रयोजन के लिए कोई तथ्य केवल तभी साबित किया गया कहा जाता है जब न्यायालय युक्तियुक्त संदेह से परे यह विश्वास करे कि वह तथ्य विद्यमान है और केवल इस कारण नहीं कि उसकी विद्यमानता अधिसंभाव्यता की प्रबलता के कारण सिद्ध होती है।
धारा ३७. अपराधों का संज्ञेय और अजमानतीय होना-(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, -(क) इस अधिनियम के अधीन दंडनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा।
अतः उपरोक्त धाराओं के अंतर्गत विनिर्दिष्ट प्रावधानों के अंतर्गत कैनेबिस के पौधे और कैनेबिस के संबंध में (विशेषकर कैनेबिस का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात या उपयोग से सम्बंधित)उल्लंघन के लिए दंड, किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ के उपभोग के लिए दंड, इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध करने के प्रयत्नों के लिए दंड, दुष्प्रेरण और आपराधिक षड्यंत्र के लिए दंड की व्यवस्था के साथ साथ आपराधिक मानसिक दशा की उपधारणा की गयी है अतः आर्यन खान और ७ अन्य अभियुक्तों के विरुद्ध केवल किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ के उपभोग के लिए FIR पञ्जीकृत नहीं किया गया है अपितु दुष्प्रेरण और आपराधिक षड्यंत्र करने के लिए, अपराध करने के प्रयत्नों के लिए तथा कैनेबिस का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात या उपयोग करने के लिए पञ्जीकृत किया गया है अतः इन प्रावधानों के अंतर्गत जमानत पर किसी अभियुक्त को छोड़ा जाना उतना आसान नहीं होता, जितना मिडिया और अन्य राजनितिक दलों के विशेषज्ञ अपनी समझ से प्रकट कर रहे हैं।
जमानत की अर्जी ख़ारिज करते वक्त आदरणीय न्यायालय ने जो अवलोकन प्रस्तुत किया वो निम्नवत है:- Order dated 20/10/2021.
पैरा संख्या ३४:- इसके अलावा, व्हाट्सएप चैट से पता चलता है कि आरोपी नं १ नियमित आधार पर मादक पदार्थों की अवैध दवा गतिविधियों में संलिप्त रहा है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि जमानत पर रहते हुए आरोपी नंबर १ के समान अपराध करने की संभावना नहीं है।
पैरा संख्या ३५:-इस प्रकार अभियुक्त संख्या 1 से 3 के गंभीर (grave)और गंभीर (serious)अपराध में प्रथम दृष्टया संलिप्तता को देखते हुए, यह जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं है। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री, प्रथम दृष्टया दर्शाती है कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 29 लागू है। इसलिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 की कठोरता लागू होगी। इसलिए इस स्तर पर संतुष्टि दर्ज करना संभव नहीं है कि आवेदकों/ अभियुक्तों ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं किया है।
पैरा संख्या ३६:- रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर विचार करते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आरोपी संख्या 1,2 और 3 ऐसे अपराध के दोषी नहीं हैं और जमानत पर रहते हुए उनके द्वारा ऐसा अपराध किए जाने की संभावना नहीं है।
आदरणीय सत्र न्यायालय द्वारा प्रस्तुत किये गए उपरोक्त अवलोकनार्थ से स्पष्ट है की प्रथम दृष्टया साछ्य उपलब्ध हैं जिनके आधार पर आर्यन खान और ७ अन्य अभियुक्तों को जमानत नहीं दी जा सकती है अतः बड़े नामचीन वकील भी जमानत दिलाने में असफल साबित हो रहे हैं।
Nagendra Pratap Singh (Advocate) [email protected]