Monday, November 4, 2024
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उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की तैयारी

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Abhishek Kumar
Abhishek Kumar
Politics -Political & Election Analyst

उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज से भारत का सबसे बड़ा राज्य है जबकि क्षेत्रफल लिहाज से चौथा सबसे बड़ा राज्य है.उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल के लिहाज से ब्रिटेन के बराबर है तथा जनसंख्या ब्राजील के बराबर है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के समय उत्तर प्रदेश को जनसंख्या के लिहाज से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला राज्य माना जा रहा था। 23 करोड़ की विशाल आबादी वाले प्रदेश में प्रदेश सरकार ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर को जिस शानदार तरीके से हैंडल किया तथा स्थिति को नियंत्रण मे रखा उसपर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने प्रदेश सरकार की पीठ थपथापायी तथा आट्रेलिया की संसद सदस्य क्रेग केली ने ट्विट लिखकर कहा, भारतीय उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 23 करोड है। इसके बावजूद कोरोना के नए डेल्टा वेरिएंट पर लगाम लगाई है।

यूपी मे आज कोरोना के दैनिक केस 182 हैं जबकि ब्रिटेन की जनसख्या 67करोड है और दैनिक केस 20हजार 479 हैं। ऑस्ट्रेलियाई सांसद क्रेग केली के बाद कनाडा के पैट्रिक ब्रुकमैन नामक निवेशक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रभावी नेतृत्व का हवाला देते हुए, यूपी मॉडल ऑफ कोविड प्रबंधन की सराहना की लेकिन इससे बढती आबादी को नियंत्रण ना करने के उपायो से इंकार नही किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने की तरफ कदम बढा रही है, जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने के पीछे प्रदेश सरकार का मानना है कि प्रदेश की जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही है,इसी वजह से अस्पताल, खाना, घर और रोजगार से संबंधित दूसरे मुद्दे भी पैदा हो रहे हैं।

इसीलिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है हालाकिं सरकार का मानना है कि ये कानून किसी धर्म विशेष या मानवाधिकारों के विरूद्ध नही हैंविपक्ष को चाहिए कि वो इस मुद्दे को सिर्फ सियासी चश्मे से न देखे और विपक्ष में होने से उनका कार्य सिर्फ विरोध न करना नही है। सरकार चाहती है कि सरकारी संसाधन और सुविधाएं उन लोगो के उपलब्ध हों जो जनसंख्या नियंत्रण मे सहयोग कर रहे हैं तथा योगदान दे रहें हैं। जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू होने की चर्चा के बाद साधु-संत, मौलाना और नेता आमने सामने आ गये हैं। यूपी विधानसभा मे विपक्ष के नेता राम गौविंद चौधरी ने कहा है “पीएम और सीएम दोनो परिवार विहीन हैं, उन्हें पत्नी, परिवार का दर्द नही मालूम। जनता से उन्हें प्रेम नही हैं। उनका परिवार नहीं, लिहाजा उन्हें परिवार का दर्द नही पता”।

अखाडा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी का बयान आया, उन्होनें कहा, जनसंख्या वृद्धि को कानून लाकर नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों मे देश में बडा जनसंख्या विस्फोट हो सकता हैं। मंहत नरेंद्र गिरी के बयान पर शहजीम उलमा-ए-इस्लाम के जनरल सिक्रेटरी मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी ने कहा है कि ‘कौन कितने बच्चे पैदा करेगा, ये उसकी मर्जी है।अगर प्रदेश मे जनसंख्या नियंत्रण कानून आता है तो इसका विरोध किया जाएगा’।

चर्चाओ का बाजार गर्म है कि विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई को योगी सरकार नई जनसंख्या नीति जारी करने जा रही है। विधि आयोग ने सरकारी वेबसाईट पर ड्राफ्ट जारी किया हैं तथा लोगो से 19 जुलाई तक इसके बारे मे राय मॉंगी है। विधि आयोग का कहना है कि ये स्वंय की राय है इसके संबध मे सरकार की तरफ से कोई आदेश नही आया है,विधि आयोग के ड्राफ्ट के मुताबिक, 2 से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने तक पर रोक लगाने का प्रस्ताव है ऐसे में अगर यह एक्ट लागू हुआ तो दो से अधिक बच्चे पैदा करने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन और प्रमोशन का मौका नहीं मिलेगा, 77 सरकारी योजनाओं व अनुदान से वंचित कर दिया जायेगा। एक साल के अंदर सभी सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों स्थानीय निकाय में चुने जनप्रतिनिधियों को शपथ पत्र देना होगा कि वह इसका उल्लंघन नही करेगें। कानून लागू होते समय उनके दो ही बच्चे हैं और शपथ पत्र देने के बाद अगर वह तीसरी संतान पैदा करते हैं तो प्रतिनिधि का निर्वाचन रद्द करने व चुनाव ना लड़ने।

अगर परिवार के अभिभावक सरकारी नौकरी में हैं और नसबंदी करवाते हैं तो उन्हें अतिरिक्त इंक्रीमेंट,प्रमोशन समेत ये लाभ अगर परिवार के अभिभावक सरकारी नौकरी में हैं और नसबंदी करवाते हैं तो उन्हें अतिरिक्त इंक्रीमेंट, प्रमोशन, सरकारी आवासीय योजनाओं में छूट, पीएफ में एम्प्लॉयर कंट्रीब्यूशन बढ़ाने जैसी कई सुविधाएं देने की सिफारिश की गई है. दो बच्चों वाले दंपत्ति अगर सरकारी नौकरी में नहीं हैं तो उन्हें पानी, बिजली, हाउस टैक्स, होम लोन में छूट व अन्य सुविधाएं देने का प्रस्ताव है.वहीं एक संतान पर स्वंय से नसबंदी कराने वाले अभिभावकों को संतान के 20 साल तक मुफ्त इलाज, शिक्षा, बीमा शिक्षण संस्था व सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता देने की सिफारिश है। जनसंख्या विधेयक ड्राफ्ट के मुताबिक अगर परिवार के अभिभावक सरकारी नौकरी में है और नसबंदी करवाते हैं तो उन्हें अतिरिक्त इंक्रीमेंट, प्रमोशन, सरकारी प्रमोशन, सरकारी आवासीय योजनाओं में छूट,पीएफ में एंपलॉयर कंट्रीब्यूशन बढ़ाने जैसी कई सुविधाएं देने की सिफारिश की गई है.उत्तर प्रदेश के राज्य विधि आयोग ने यूपी जनसंख्या विधेयक 2021 का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. जल्द ही आयोग इसे अंतिम रूप देने के बाद राज्य सरकार को सौंप देगा। इस ड्राफ्ट में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानूनी उपायों के रास्ते सुझाए गए हैं।

इस साल हुए त्रिस्तरीय पंचायत मे दो बच्चो से अधिक वाले परिजन को चुनाव लडने पर प्रतिबंध की चर्चाओ की हवा चली थी जिससे बहुत लोगो की सांसे फुल गई थी जो चुनाव लडने के इच्छुक थे मगर इस प्रतिबंध के दायरे मे आ रहे थे ,बाद मे ये कोरी अपवाह निकली जिसके बाद ऐसे सभी लोगों ने राहत की सांस ली थी। कुछ मिडिया हॉउसो के हवाले से कहा गया है कि  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या नियंत्रण कानून से संबधित विधि आयोग द्वारा तैयार किया गया ड्राफ्ट को देखा है जिसमे कुछ सुधार करने के लिये उनके द्वारा संबधित अधिकारियो को कहा गया है। देश मे विभिन्न हिस्सो से मॉंगे उठ रही है देश मे जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लाया जाये। देश के कई राज्यो मे जनसंख्या नियंत्रण कानून पहले से ही लागू है . हाल ही में असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने बढती जनसंख्या को ‘सामाजिक संकट’ बताते हुये असम राज्य में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने की औपचारिक घोषणा कर दी है।

लेकिन असम के पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल की सरकार ने एक जनवरी 2021 के बाद दो से अधिक बच्चे वाले व्यक्तियों को कोई सरकारी नौकरी नहीं देने की घोषणा कर दी थी। ओडिशा राज्य मे दो से अधिक बच्चे वालों को अरबन लोकल बॉडी इलेक्शन लड़ने की इजाजत नहीं है। बिहार और उत्तराखंड राज्य मे टू चाइल्ड पॉलिसी है, वो भी केवल नगर पालिका चुनावों तक सीमित है। महाराष्ट्र मे जिन लोगों के दो से अधिक बच्चे हैं उन्हें ग्राम पंचायत और नगर पालिका के चुनाव लड़ने पर रोक है। महाराष्ट्र सिविल सर्विसेस रूल्स ऑफ 2005 के अनुसार तो ऐसे व्यक्ति  को राज्य सरकार में कोई पद भी नहीं मिल सकता है। ऐसी महिलाओं को पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के फायदों से भी बेदखल कर दिया जाता है। 1994 में आंध्र प्रदेश के पंचायती राज एक्ट ने एक शख्स पर चुनाव लड़ने से सिर्फ इसीलिए रोक लगा दी थी, क्योंकि उसके दो से अधिक बच्चे थे।

राजस्थान पंचायती एक्ट 1994 के अनुसार राजस्थान में अगर किसी के दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य माना जाता है। दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को सिर्फ तभी चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाती है, अगर उसके पहले के दो बच्चों में से कोई दिव्यांग हो। गुजरात की तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी सरकार ने 2005 मे लोकल अथॉरिटीज एक्ट को बदल दिया था। दो से अधिक बच्चे वाले शख्स को पंचायतों के चुनाव और नगर पालिका के चुनावों में लड़ने की इजाजत नहीं होगी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ मे सन 2001 में ही टू चाइल्ड पॉलिसी के तहत सरकारी नौकरियों और स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि, सरकारी नौकरियों और ज्यूडिशियल सेवाओं में अभी भी टू चाइल्ड पॉलिसी लागू है। 2005 में दोनों ही राज्यों ने चुनाव से पहले फैसला उलट दिया, क्योंकि शिकायत मिली थी कि ये विधानसभा और लोकसभा चुनाव में लागू नहीं है।

भले ही पिछले साल सुप्रीम कोर्ट मे केंद्र सरकार की नरेंद्र मोदी सरकार ने हलफनामा दिया था कि सरकार जबरन देश के किसी नागरिक पर परिवार नियोजन योजना थोपने के पक्ष मे नही है अत: जनसंख्या नियंत्रण पर कानून नही लाता जा सकता है। लेकिन सन 2019 जनसंख्‍या नियंत्रण कानून को पीएम मोदी भी आवश्‍यक बता चुके हैं पीएम मोदी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से लोगों से अपील कर चुके हैं कि वह जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान दें। बल्कि उन्होंने तो इसे देशभक्ति से भी जोड़ दिया और कहा कि छोटा परिवार रखना भी एक तरह से देशभक्ति ही है। जनसंख्‍या नियंत्रण कानून की मांग को लेकर मेरठ में ‘समाधान मार्च’ निकाला गया था। तीन दिवसीय पदयात्रा की अगुवाई केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, सांसद राजेंद्र अग्रवाल और स्वामी यतीन्द्रानंद गिरी ने की थी। आरएसएस ने पिछले सालों में जनसंख्या नियंत्रण की बात जरूर की है, लेकिन 2013 में आरएसएस ने ही ये भी कहा था कि हिंदू जोड़ों को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए.हालांकि, 2015 में रांची में हुई बैठक में आरएसएस ने टू चाइल्ड पॉलिसी की वकालत की।

देश में ‘हम दो, हमारे दो’ का कॉन्सेप्ट कई दशकों से चला आ रहा है। लोगों को जागरुक किया जाता रहा है, लेकिन अब देश मे टू चाईल्ड पॉलिसी की नही वन चाईल्ड पॉलिसी की आवश्यकता है। थोड़ी सख्ती भी बरतने की आवश्यकता है। आंकड़ों के अनुसार, भारत की आबादी के मामले में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। बीते कुछ दशकों में भारत में साक्षरता दर बढ़ने के साथ प्रजनन दर में कमी दर्ज की गई है। भारत में जैसे-जैसे साक्षरता बढ़ रही है, बड़ी संख्या में लोग बच्चे पैदा करने से पहले सभी स्थितियों का आंकलन कर ‘फैमिली प्लानिंग’ अपनाते हैं। जिसका सीधा असर प्रजनन दर पर पड़ता है। साल 2000 में प्रजनन दर 3.2 फीसदी था, जो 2016 में 2.4 फीसदी पहुंच गया था। भारत में जनसंख्या में वृद्धि की दर 1990 में 2.07 फीसदी थी, जो 2019 में 1.0 फीसदी पर आ चुकी है।

सरकार एक बच्चा होने पर छह हजार रूपये  दूसरा बच्चा होने पर भी छह हजार रूपये की सहायता राशि दी जाती है अब ऐसी नीतियो से कैसे परिवार नियोजन अभियान सफल हो पायेगा। देश मे बढती आबादी के लिये लोगो की धारणा बन चुकी है कि ज्यादा बच्चे मुसलिम पैदा करते है अगर आंकडो की तरफ देखा जाये तो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार जनसंख्या प्रति महिला 2.4 के करीब पहुंच चुकी है। हिंदुओं में ये संख्या 2.1 है और मुस्लिम समुदाय में 2.6 है। अगर 1992-93 के आंकड़ों के देखें तो पता चलता है कि तब प्रति महिला 3.8 बच्चों का औसत था। यानी करीब 30 सालों में ये संख्या करीब 1.4 कम हुई है। हां ये जरूर है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों में बच्चे पैदा करने की संख्या का अंतर घटा है।अर्थात दोनों ही समुदायों ने परिवार नियोजन पर ध्यान दिया है और जनसंख्या नियंत्रण करने में अपना योगदान दिया है। 1992-93 में ये अंतर सबसे अधिक 33.6 फीसदी था, जो करीब 30 सालों में घटकर 23.8 फीसदी हो गया है।

काफी समय से भारत में चीन की तरह जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनाने की मांग उठायी जाती रही है.जनसंख्या मे हुये असमान बदलाव जिस कारण चीन में बुजुर्गों की आबादी बढ़ने और वर्कफोर्स घटने के डर से चीन ने 2016 में ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ को बदलते हुए ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ कर दिया और इसी साल  इसे ‘थ्री चाइल्ड पॉलिसी’ में बदल दिया गया है. 1979 में चीन की जनसंख्या लगभग 97 करोड़ थी जो अब तक बढ़कर लगभग 140 करोड़ हो चुकी है। आप सभी सोच सकते है कि अगर चीन ने 1979 में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू नहीं की होती तो आज जनसंख्या लगभग 180 करोड पहुंच चुकी  होती। चीनी सरकार की वन चाइल्ड पॉलिसी से चीन ने करीब 40 करोड़ बच्चों को पैदा होने से रोका, जिसने जनसंख्या नियंत्रण में मदद की। चीन मे वन चाइल्ड पॉलिसी लागू करने के बाद फर्टिलिटी रेट तेजी से गिरा। चीन सरकार ने उससे पहले से ही लोगो पर सख्ती करना शुरू कर दिया था।

जनसंख्या के हिसाब से चीन और भारत की आबादी मे ज्यादा अंतर नही है ये अंतर लगभग 5-7 करोड का है। मगर चीन का क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल से तीन गुणा ज्यादा है। जितनी जगह मे चीन का एक व्यक्ति रहता है उतनी ही जगह मे भारत के तीन व्यक्तिओं को एडजस्ट करना पडता हैं। भारत की आबादी भले ही चीन से थोडी कम हो मगर इनका घनत्व बहुत अधिक है जिस पर शीघ्र जनसंख्या नियंत्रण करना आवश्यक है। भारत मे वन चाईल्ड पॉलिसी के लोगो को नुकसान और फायदे जनता को बताने साथ ही प्रोत्साहन के लिये बढावा देने की आवश्यकता है। ताकि लोगो मे इसके प्रति जागरूकता बढे और अपना फायदा दिखे।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की चर्चा के बाद इसको धर्म और राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है। ये विडंबना है भारत में टू चाइल्ड पॉलिसी को अक्सर धर्म के चश्मे से देखा जाता है। लगभग हर धर्म के लोगों ने ही टू चाइल्ड पॉलिसी का विरोध किया है। जिस स्पीड से जनसंख्या मे वृद्धि हो रही है ये देश के लिए अच्छा नहीं होगा। हमारे देश मे जमीन, क्षेत्रफल, संसाधन सीमित है। तेजी से बढती जनसंख्या का बोझ ज्यादा बढ़ा तो फिर देश की तरक्की के रास्ते में रुकावट आयेगी.हम जिस स्पीड से जनसंख्या के मामले में बढ़ रहे हैं,तुलनात्मक तौर पर उस स्पीड  से हमारी आर्थिक प्रगति नहीं हो रही है और ये गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी, प्रति व्यक्ति कम आय जैसी समस्याओं की एक बड़ी वजह है।

अगर हम दूसरे विकसित देशों से तुलना करते है तो ये पता चलता है ‘वो देश इसलिए विकसित हैं क्योंकि उनके पास संसाधनो की कोई कमी नही हैं, आर्थिक संपन्नता है और इसकी तुलना में जनसंख्या कम है। दूसरी तरफ भारत में जनसंख्या एक विकराल समस्या बनती जा रही है। राजनैतिक दलो ने अपनी सियासी महत्वाकांक्षाओं के कारण इस विषय को संवेदनशील बना दिया है। इस विषय पर कुछ भी बोलना राजनीतिक बंवडर खडा कर देता है। जब कभी भी इस विषय पर गंभीर चिंतन और विचार विमर्श हुआ है तभी वोट बैंक की पॉलिटिक्स के कारण राजनेताओं ने इस गंभीर विषय को राजनीतिक मुद्दा बना दिया हैं।

विपक्ष को चाहिए कि वो इस मुद्दे को सिर्फ सियासी चश्मे से न देखे और विपक्ष में होने से उनका कार्य सिर्फ विरोध न करना नही है। वहीं सबसे बड़ी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की भी है, जिसे इस मामले सामाजिक एजेंडे के तौर पर लेना होगा। इसके लिए देश की सभी प्रमुख पार्टियों से विचार-विमर्श कर एक सटीक रास्ता निकालना होगा। तभी हम भविष्य की बड़ी चुनौती से निपट पाएंगे और आने वाली पीढ़ी को एक सुविधा सम्पन्न और विकसित राष्ट्र दे सकेंगे।

लेख- अभिषेक कुमार (लेखक एक स्वतंत्र लेखक है।सभी विचार लेखक के व्यक्तिगत है)

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