घटना ४ जून २०२१ कि है जब पश्चिम अफ्रीका के एक देश बुर्किना फासो के उत्तरी भाग में बसे एक गांव सोल्हन में आतंकवादियों ने १३२ मासूम नागरिकों को गोलियों से छलनी कर दिया और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया।
संयुक्त राष्ट्र संघ कि रिपोर्ट के अनुसार मरने वालों में ७ बच्चे भी थे।
शान्तिदुत रुपि चरमपंथीयों कि हैवानियत का एक और नमूना विश्व के सामने आया। पर ये घटना अपने आप में आश्चर्य का विषय नहीं है क्योंकि जँहा जँहा इन नापाक शांतिदूतों के पांव पड़े वँहा वँहा हैवानियत और शैतानियत के अलावा कुछ नहीं फैला।
इस घटना से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र संघ कि उस रिपोर्ट ने चौंका दिया जिसमें बताया गया कि इस सामूहिक नरसंहार को अंजाम देने वाले स्वय १२ वर्ष से १४ वर्ष के बालक हैं।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक १२ वर्ष का बच्चा जो शायद ८ वी कछा का छात्र होगा, वो अपने हांथो में भयानक हथियार लेकर एक गाँव में घुसे और अपने समान जीवित लोगों पर गोलीयाँ बरसाते हुए मारने लगे। उस बच्चे कि मानसिक स्थिति क्या होगी? वो कैसे इतनी हैवानियत दिखा सकता है।
सामान्य तौर पर १२ वर्ष से १४ वर्ष के बच्चों के मस्तिष्क में इतनी क्रूरता नहीं उत्पन्न हो सकती जब तक कि उसे लगातार किसी विषय वस्तु से घृणा (नफ़रत) करने के लिए प्रेरित ना किया जाए।
शांतिदूतों ने बच्चों के अपरिपक्व मस्तिष्क अवस्था का लाभ लेना शुरू कर दिया है, वो दानव इन मासूम बच्चों को अब बम, ग्रेनेड और गोलियों कि तरह प्रयोग में ला रहे हैं। ISIS, अलकायदा व बोको हराम इत्यादि जैसे हैवानियत से भरे नरपिसाचो के समुहों ने बच्चों कि मासूमियत को अपना हथियार बनाकर इंसानियत को खत्म कर अंधकार और हैवानियत का साम्राज्य खड़ा करने कि अपनी मुहीम आगे बढ़ाने कि प्रक्रिया शुरू की है।
आइये जानते है बुर्किना फासो के बारे में।
कहानी शुरू होती है येनेंगा नामक राजकुमारी से। येनेंगा, बुर्किना फासो की एक राजकुमारी थी, जो 900 साल पहले वंहा के राजा नेदेगा और रानी नापोको की बेटी थी। नेदेगा १२वीं सदी में डगोम्बा साम्राज्य का आरंभिक राजा था, जो अब उत्तरी घाना में है।
येनेंगा बहुत सुंदर थी| वह अपने मजबूत चरित्र और स्वतंत्र मस्तिष्क वाले पह्चान से बुर्किना फासो के लिए एक सांस्कृतिक प्रतीक बन गई थी। वह अत्यंत वीर थी और उसने मात्र १४ साल की उम्र में अपने पिता के लिए अपने देश के पड़ोसी मालिंक्स के खिलाफ युद्ध किया था।
वह भाले और धनुष के उपयोग में कुशलता अर्जित कर चूकी थी , वह एक उत्कृष्ट घुड़सवार थी और अपनी बटालियन की कमान संभालती थी ।येनेंगा इतनी महत्वपूर्ण सेनानी थी कि जब वह विवाह योग्य उम्र तक पहुँची, तो उसके पिता ने उसके लिए एक पति चुनने या उसे शादी करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। अपने पिता के प्रति अपनी नाखुशी व्यक्त करने के लिए येनेंगा ने गेहूँ का एक खेत लगाया। जब फसल बढ़ी, तो उसने उसे सड़ने दिया। उसने अपने पिता को समझाया कि शादी करने में असमर्थ होने के कारण उसे कैसा लगा। नेदेगा इस इशारे से हिलने में नाकाम रहे और अपनी बेटी को कैद कर लिया।
पिता के कैद से मुक्त होकर अपना जीवन अपनी इच्छानुसार जीने के उद्देश्य से प्रेरित होकर वह एक सैनिक कि सहायता से अपने घोड़े पर बैठ भागने में सफलता प्राप्त कर ली। मार्ग में मालिंक्स द्वारा हमला किया गया, जिसमें उसका साथी मारा गया, और येनेंगा अकेली रह गई। उसने हिम्मत नहीं हारी और उत्तर दिशा की ओर चलना जारी रखा। एक रात, येनेंगा का घोड़ा उसे जंगल में ले गया जँहा पर वह रियाल नामक एक शिकारी से मिली और उनमे दोस्ती हो गई। रियाल ने जब येनेंगा को देखा, तो उसे प्यार हो गया। येनेंगा और रियाल के संगम से उन्हें एक पुत्र कि प्राप्ति हुई और उसका नाम उन्होंने ऊड्राओगो रखा, जिसका अर्थ है “घोड़े” और अब यह बुर्किना फासो में सबसे प्रसिद्ध नाम है। इसी ऊड्राओगो ने बुर्किना फासो में मोसी साम्राज्य की स्थापना की।
इतिहास
ममप्रुगु साम्राज्य सबसे पुराना साम्राज्य है। इस किंगडम की स्थापना १३वीं शताब्दी के आसपास ग्रेट ना गबनवाह/ गबेवा द्वारा पुसिगा में की गई थी, जो बावकू से १४ किलोमीटर दूर एक गाँव है, यही वजह है कि मम्प्रुसिस बावकू को अपने पैतृक घर के रूप में मानते हैं। ना गबनवाह का मकबरा पुसिगा में है। ममप्रुसी राजशाही की कहानी इसकी उत्पत्ति तोहाज़ी नामक एक महान योद्धा से करती है। Tohazie, का अर्थ है रेड हंटर। उन्हें उनके लोगों द्वारा रेड हंटर कहा जाता था क्योंकि वे गोरे रंग के थे। तोहज़ी के पोते ना गबनवाह पुसिगा में बस गए और ममप्रुगु की स्थापना की। मम्प्रुसिस उत्तरी घाना और टोगो में एक जातीय समूह है।
यूरोपियन कि धूर्तता का शिकार
इस मौसी साम्राज्य का पतन भी यूरोप के मक्कार प्रजातीयों ने किया जिसमें फ्रांसीसी सबसे प्रमुख रही। वर्ष १८९६ में जब किम्बर्ली के फ्रांसीसी सैनिक इस शांतिप्रिय छेत्र में पहुंचे तो इन्होने अपनी यूरोपियन धूर्तता (व्यापार करने के नाम पर लूट पाट करने वाली) का परिचय देते हुए इस छेत्र पर धीरे धीरे कब्जा जमाना शुरू किया और अन्तत: अपना दावा ठोक दिया।
करीब ५० से ज्यादा वर्षों तक बुर्किना फासो को लूटने और चुसने के बाद फ्रांसीसियों ने इसे आज़ाद करने का मन बनाया और 11 जुलाई 1960 को बुर्किना फासो को फ़्रांस ने आजाद कर दिया और इसका नाम अप्पर वोल्टा (upper Volta) रखा, परंतु 1984 में यँहा के देशभक्त नागरिकों ने लुटेरे यूरोपियन के द्वारा दिए गए नाम को फेककर अपना नाम बुर्किना फासो रख लिया। बुर्किना फासो की भाषायें मोरे और दिऔला है।
ऊपरी वोल्टा गणराज्य।
वोल्टिक डेमोक्रेटिक यूनियन (UDV) के नेता मौरिस यामियोगो 5 अगस्त 1960 को अपर वोल्टा गणराज्य के पहले राष्ट्रपति नियुक्त हुए। 1960 में देश् को संविधान प्रदान किय गया जिसके द्वारा सार्वभौमिक मताधिकार और 5 साल की अवधि के लिए एक राष्ट्रीय सभा द्वारा राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था प्रदान किया गया। यमोगो की सरकार को भ्रष्ट के रूप में देखा गया, सरकार 1966 तक चली, परन्तु छात्रों, श्रमिक संघों किसानों और सिविल सेवकों द्वारा बड़े पैमाने पर सरकार के विरुद्ध प्रदर्शनों और हड़तालों से फैली अशांति व अराजकता के बाद – सेना ने हस्तक्षेप किया और 1966 में तख्तापलट कर यमोगो को हटा दिया गया।
संविधान को निलंबित कर दिया, नेशनल असेंबली को भंग कर दिया, और वरिष्ठ सेना अधिकारि लेफ्टिनेंट कर्नल संगौले लामिज़ाना को सरकार का मुखिया बना दिया गया। सेना 4 साल तक सत्ता में रही; 14 जून, 1970 को, वोल्टन्स ने एक नए संविधान की पुष्टि की जिसने पूर्ण नागरिक शासन की ओर 4 साल की संक्रमण अवधि की स्थापना की। लामिज़ाना 1970 के दशक में सैन्य या मिश्रित नागरिक-सैन्य सरकारों के अध्यक्ष के रूप में सत्ता में रहे। उन्हें साहेल सूखे के रूप में एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा।
१९७० के संविधान पर संघर्ष के बाद, १९७७ में एक नया संविधान लिखा और अनुमोदित किया गया और लामिज़ाना को १९७८ में खुले चुनावों द्वारा फिर से चुना गया था। लामिज़ाना की सरकार को देश की पारंपरिक रूप से शक्तिशाली ट्रेड यूनियनों के साथ समस्याओं का सामना करना पड़ा और 25 नवंबर, 1980 को कर्नल सई ज़ेरबो ने रक्तहीन तख्तापलट में राष्ट्रपति लामिज़ाना को उखाड़ फेंका।
कर्नल ज़र्बो ने सर्वोच्च सरकारी प्राधिकरण के रूप में राष्ट्रीय प्रगति के लिए रिकवरी की सैन्य समिति की स्थापना की, इस प्रकार 1977 के संविधान का उन्मूलन किया।
कर्नल ज़र्बो को भी ट्रेड यूनियनों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा और दो साल बाद 7 नवंबर, 1982 को मेजर डॉ। जीन-बैप्टिस्ट औएड्राओगो और काउंसिल ऑफ पॉपुलर साल्वेशन (सीएसपी) द्वारा उखाड़ फेंका गया । सीएसपी ने राजनीतिक दलों और संगठनों पर प्रतिबंध लगाना जारी रखा, फिर भी नागरिक शासन और एक नए संविधान में परिवर्तन का वादा किया।
सीएसपी के दाएं और बाएं गुटों के बीच अंदरूनी कलह विकसित हो गई। वामपंथियों के नेता, कैप्टन थॉमस शंकरा को जनवरी 1983 में प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। कैप्टन ब्लेज़ कॉम्पोरे द्वारा निर्देशित, उन्हें मुक्त करने के प्रयासों के परिणामस्वरूप 4 अगस्त 1983 को एक और सैन्य तख्तापलट देखने को मिला ।
तख्तापलट ने शंकर को सत्ता में ला दिया और उनकी सरकार ने क्रांतिकारी कार्यक्रमों की एक श्रृंखला को लागू करना शुरू कर दिया जिसमें बड़े पैमाने पर टीकाकरण, बुनियादी ढांचे में सुधार, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, घरेलू कृषि खपत को प्रोत्साहित करना और मरुस्थलीकरण विरोधी परियोजनाएं शामिल थीं।
बुर्किना फासो
२ अगस्त १९८४ को, राष्ट्रपति शंकर की पहल पर, देश का नाम अपर वोल्टा से बदलकर बुर्किना फासो (ईमानदार/ईमानदार लोगों की भूमि) कर दिया गया। राष्ट्रपति के आदेश की ४ अगस्त को नेशनल असेंबली द्वारा पुष्टि की गई थी।शंकर ने परिवर्तन के लिए एक महत्वाकांक्षी सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम शुरू किया, जो अफ्रीकी महाद्वीप पर अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। उनकी विदेश नीतियां साम्राज्यवाद विरोधी पर केंद्रित थीं, उनकी सरकार सभी विदेशी सहायता से इनकार करती थी उनकी घरेलू नीतियों में एक राष्ट्रव्यापी साक्षरता अभियान, किसानों को भूमि पुनर्वितरण, रेलवे और सड़क निर्माण और महिला जननांग विकृति, जबरन विवाह और बहुविवाह को गैरकानूनी घोषित करना शामिल था।
इसके बाद भी समय समय पर बुर्किना फासो को अन्य तख्तापलट जैसी कार्यवाहियों का सामना करना पड़ा और आज अजादी के ६० वर्षों के बाद भी बुर्किना फासो के नागरिक अनगिनत सोने के खाद्दान के मालिक होने के बावजूद भी गरीबी का दंश झेलने के लिए विवश हैं।
भौगोलिक स्थिति।
बुर्किना फासो (पूर्व में अपर वोल्टा) पश्चिम अफ्रीका का एक लैंडलाक देश है, जिसकी सीमाएं उत्तर में माली, पूर्व में नाइजर, उत्तर पूर्व में बेनिन, दक्षिण में टोगो और घाना और दक्षिण पश्चिम में कोट द’ आईवोर से मिलती हैं। यह देश कई बार सैन्य तख्तापटल का शिकार हो चुका है।
आतंकवादि रूपी नरभक्षियों का प्रवेश:-
बोको हराम जैसे आतंकी संगठन ने तो पहले से हि आफ्रिका के इन देशों में कोहराम मचा रखा था परन्तु अलकायदा और ISIS के आतंकियों के प्रवेश से इंसानियत पूरी तरह खत्म होने के कगार पर है।
पश्चिम अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में 4 जून को भयानक हमला देखने को मिला था जिसमें 138 लोग मारे गए थे. अब इस मामले में संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि बुर्किना फासो में हुए इस नरसंहार में छोटे बच्चे शामिल थे और इस हमले को 12 साल से 14 साल के बच्चों की फौज ने अंजाम दिया था|
ISIS का नया अड्डा
बुर्किना फासो (Burkina Faso) अब आतंकी संगठन ISIS (Islamic State of Iraq and Syria) का नया अड्डा बना हुआ है। आतंकी वहां के संरक्षित जंगलों की कटाई करवा रहे हैं ताकि वहां मिलने वाली सोने की खदानों (gold mines) का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियां (terror activities) में हो सके। लगभग 10 हजार सदस्य संख्या वाले ISIS को दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन माना जाता है जिसका बजट 2 अरब डॉलर का है।
बच्चे बने हथियार।
बुर्किना फासो के सरकारी प्रवक्ता ओसेनी तंबोरा ने भी माना है कि इस अटैक में ज्यादातर हमलावर बच्चे थे। ये आतंकी संगठन इन बच्चों को बड़े पैमाने पर अपने साथ शामिल करते हैं। इस घटना के बाद यूनिसेफ का भी बयान सामने आया है और इसमें आतंकी संगठनों में बच्चों को शामिल करने की कड़ी आलोचना की गई है और ये भी कहा गया है कि ये उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में ही आतंकी संगठनों ने मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में लगभग 3270 बच्चों को अपने संगठन में शामिल किया था।दुनिया भर में मौजूद चाइल्ड सोल्जर्स में से एक तिहाई तो इस देश में ही शामिल हैं और इस क्षेत्र में हिंसा का काफी सामान्यीकरण हो चुका है।
कितने निच और घृणित प्रकृति के आतंकी दानव है जो मासूम बच्चोँ को हथियार के रूप मे उपयोग कर हैवानियत का नँगा नाच कर रहे हैं। ये आतंकी कहीं से भी दया के पात्र नहीं है। इनको भयानक से भयानक दंड देकर नेस्तनाबूद कर देना चाहिए।
बच्चे हमारे ब्रह्माण्ड के भविष्य हैं, इनके भविष्य को सुरक्षीत रखना हम सब का कर्तव्य है।
नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)