आगामी दिनों में चार राज्यों बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडू ऑर एक केंद्रशासित प्रदेश पांडुचेरी में विधान सभा का चुनाव होने वाले है। इन राज्यों में चुनावों के नतीजे क्या होंगे यह तो भविष्य की बात है। लेकिन चुनाव के परिणाम जो हों, इस बार विधान सभाओं के चुनावों में स्थानीय मुद्दों के साथ–साथ राष्ट्रिय मुद्दों का भी दबदबा से इंकार नहीं किया जा सकता है। जिसमें लव जिहाद विरोधी कानून प्रमुख मुद्दा हो सकता है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के तरफ से यह कहा जा चुका है कि अगर हम सत्ता में आएंगे तो बंगाल और केरल में लव–जिहाद विरोधी कानून को प्राथमिकता से लागू करेंगे।
इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी का रुख साफ है क्योंकि उसके द्वारा शासित राज्यों में लव–जिहाद विरोधी कानून या तो लागू हो चुका या फिर इसकी खाका खींची जा रही है। विगत दिनों में ही उत्तर प्रदेश सरकार के विधान सभा ने ‘उत्तर प्रदेश विधि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिपेध’ नामक विधयेक ध्वनि मत से पारित कराते हुए यह संदेश देने का कार्य किया कि जहां जहां उसकी सरकार होगी लव–जिहाद विरोधी कानून लाया जाएगा। वहीं भाजपा का कटिबद्धता लव–जिहाद विरोधी कानून के प्रति और बढ़ जाती है, क्योंकि इस दल के नेताओं द्वारा समय समय पर इस गंभीर मुद्दे को देश में उठाते रहे हैं।
समझने वाली बात यह कि देश के तथाकथित सेकुलरवादी और वाम उदारवादी अक्सर लव-जिहाद को भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा बताकर इसे काल्पनिक बताते हुए यह अस्वीकार करते हैं कि लव-जिहाद जैसी कोई बात नहीं है देश में। हम यह इंकार नहीं कर सकते हैं कि हिंदुवादी संगठन इस विषय पर मुखर है और इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से देश के समक्ष रखते आयें हैं, किन्तु यह भी सत्य है, जिस लव–जिहाद की अवहेलना अनदेखा भारत के सेकुलर और वाम पंथी लोग करते हैं, उसी लव-जिहाद के खिलाफ सबसे पहले आवाज केरल के ईसाई संगठनों ने 2009 ने बुलंद की थी, जिससे वह आज भी डरे सहमे हैं और आतंकित हैं। साल 2010 के जुलाई माह में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ऑर वरिष्ठ वामपंथी वी एस अच्युतानन्दन भी प्रदेश में योजनबद्ध एवं क्रमबद्ध तरीके से मुस्लिम युवकों द्वारा विवाह के माध्यम से हिन्दू–ईसाई युवतियों के मंतातरण के बारे में बात कर चुके थे। यही नहीं केरल उच्च न्यायालय भी समय समय पर इस संबंध में सुरक्षा एजेंसियों को जांच के निर्देश दे चुकी है।
यह सत्य से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि मुस्लिम समाज का एक वर्ग मजहबी कारणों से झूठ, भय और लोभ के द्वारा और अपने समुदाय के प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन से न केवल गैर मुस्लिम युवतियों का यौन उत्पीड़न करता है, बल्कि उनका ममांतरण कर पीड़ित युवतियों को मूल पहचान और सांस्कृतिक विरासत को भी छिन लेता है और मानसिक प्रताड़ित कर उसे ऐसी अवस्था में छोड़ देता है कि वह पीड़ित लड़की मानसिक एवं शारीरिक रूप से लाचार हो जाती है। लव–जिहाद कोई दो व्यस्कों के बीच ‘प्रेम ‘का मामला नहीं है बल्कि धोखे से अपनी धार्मिक षड्यंत्र में फांसना है, और इसके लिए शरीयत भी विशेष परिस्थिति में एक मुस्लिम को झूठ बोलने की अनुमति प्रदान करता है।
हम सब जानते हैं कि भारत में जीतने भी लव–जिहाद के मामले आते हैं, उनमें ज्यादतर मुस्लिम युवाओं द्वारा गैर मुस्लिम लड़कियों का मामंतरण से संबन्धित होते हैं, और मुस्लिम युवकों द्वारा अधिकांशतः मामलों में मुस्लिम पहचान छिपाने हेतु माथे पर तिलक, हाथ में कलावा और हिन्दू नामों आदि का दुरुपयोग खूब किया जाता है। अभी कुछ दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक निजी न्यूज चैनल को दिये साक्षात्कार में मेरठ की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा –असलम नामक व्यक्ति ने अमित बनकर हिन्दू युवती से शादी रचाई। कई वर्षों तक दोनों पति पत्नी के रूप में साथ रहे। इस दौरान दोनों से एक बच्चा पैदा हुई। इसके बाद असलम ने हिन्दू युवती के समक्ष अपनी वास्तविक पहचान का खुलासा किया ऑर उसे इस्लाम स्वीकार करने को कहने लगा। पीड़िता मानसिक तौर पर बहुत परेशान होकर यह बात अपनी सहेली को बताई। जब कई दिनों तक पीड़ित युवती गायब रही, तब उसी सहेली ने पुलिस और मुझसे संपर्क साधा। जांच के दौरान पता चला कि असलम ने पीड़िता और उसकी बेटी को मारने के बाद दोनों की लाशों को घर के भीतर दफना दिया था।
यह स्थिति विकृत और धार्मिक एजेंडा के तहत किया गया कृत्य तब लगने लगता है, जब मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच विवाह एकतरफा रहता है। क्योंकि इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं का गैर मुस्लिम से विवाह ‘हराम’ है। उनकी शादी केवल अपने मजहब के भीतर ही हो सकती है। यह मजहबी पाबंदी मुस्लिम समाज के परंपरा का हिस्सा आज भी है। साल 2012 में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने बताया था कि 2009-12 के बीच 2667 गैर मुस्लिम महिलाएं इस्लाम में मामन्तरित हुई थी, जबकि केवल 81 मुस्लिम महिलाओं का मामन्तरण हुआ था। स्पष्ट है कि इस्लाम में विवाहित गैर मुस्लिम महिलाओं का संख्या इस्लाम से बाहर जाकर विवाह ऑर ममांतरण करने वाली मुस्लिम महिलाओं से कई गुना अधिक है।
सच तो यह है कि ‘लव–जिहाद’ के अस्तित्व को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता। ‘प्यार’ को लोग सहज समझते जरूर हैं, किन्तु ‘जिहाद’ का संबंध प्रेम से न होकर सिर्फ भारत को इस्लामीकरण करने से है, जो कि केवल युद्ध एवं आतंक तक सीमित नहीं है। ‘जिहाद’ का अर्थ इस्लाम को बढ़ावा देने हेतु किया गया कोई भी कृत्य है। यह समाज को समझने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए कि अधिकांश मुस्लिम पुरुषों का प्रेम मजहबी अभियान के अपेक्षा निम्न स्तर का है, जिसका हम साफ-साफ अर्थ यह समझ सकते हैं कि यह इस्लाम के विस्तार हेतु किया गया नापाक कोशिश है। इस मजहबी फैलाव के नाम पर धोखे को सभ्य समाज कब तक नजर अंदाज करेगा?
–जे आर पाठक -औथर –‘चंचला’ (उपन्यास)