कहते हैं कि सबको सबकुछ नहीं मिलता है लेकिन कुछ बिरले लोग होते हैं जो अपनी मेहनत के बलपर बहुत कुछ अर्जित कर लेते हैं। ऐसा ही एक नाम है संजय द्विवेदी। जो कवि तो नहीं है लेकिन स्वयं में काव्य है। भाषण और संचार कौशलता ऐसी कि उसका एक-एक अक्षर सहिर्दयता का वह पड़ाव है जहां वह पढ़ने वाले और सुनने वालों के रूह में उतर जाता है। वह न कभी रुकता है न कभी थकता है। मुश्किलें मायूस होकर उसकी चौखट से लौट आती है लेकिन उस तक पहुँच नहीं पाती। तमाम कोशिशें, साजिशें और षडयंत्र भी उसकी तारीफ करते नहीं थकते जो उन्हें बेबस होने पर मजबूर कर देता है। वह तो निर्मल है, निश्छल है, निष्कपटता उसे भला कब तक और कहां तक रोक पाएगी। वह तो अभ्युदय का जीता जागता दिव्य पुंज है। ओस की बूंदों पर बनी दीवारें भला उसे कब तक और कैसे रोकतीं। उसे तो रौशन होना ही था।
देश के जाने माने पत्रकार, लेखक व मीडिया गुरु और भाषण व संचार कला के धनी संजय द्विवेदी को माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार सौंपा गया है। वे इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे फिर प्राध्यापक बने। करीब एक दशक तक जनसंचार विभाग के अध्यक्ष रहे, दो बार कुलसचिव भी बने और अब उन्हें विश्वविद्यालय में कुलपति की जिम्मेदारी दी गई है। विवि परिवार के लिए इससे बड़ी सुखद और गौरवान्वित करने वाली खबर भला और क्या हो सकती है। विवि के अकादमिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण नियुक्ति है। निश्चित रूप से जितनी बड़ी जिम्मेदारी मिली है उतनी ही विवि और विवि के बच्चों को उनसे उम्मीदें भी हैं। अब तक जिस जिवटता और जिजीविषा के साथ उन्होंने पत्रकारिता और जनसंचार के क्षेत्र में कार्य किया है वह इस बात का जीवंत प्रमाण है कि वे आगे भी अनवरत विवि को ऊंचाइयों पर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
संजय द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 7 जुलाई 1974 को हुआ। वे बचपन से ही अत्यंत मेधावी थे। किशोरावस्था से ही उनकी लेखन के क्षेत्र में रूचि रही, वे विद्यार्थी जीवन में ही पत्र-पत्रिकाओं का संपादन करने लगे थे। उन्होंने छात्र जीवन में ही बाल सुमन नाम से बाल साहित्य पर आधारित पत्रिका निकालना शुरू कर दिया था। उन्होंने माखनलाल पत्रकारिता विवि से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की उपाधी ली और अपनी कक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त किया। इसके लिए उन्हें मा.गो.वैद्य स्मृति रजत पदक सम्मान से सम्मानित किया गया।
एक विलक्षण संपादक……संजय द्विवेदी को पत्रकारिता के तीनों प्रमुख आयाम प्रिंट, वेब और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम करने का अनुभव है। तीनों ही क्षेत्रों में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई के दैनिक भास्कर, स्वदेश, नवभारत, हरिभूमि जैसे अखबारों में स्थानीय संपादक, समाचार संपादक जैसी जिम्मेदारियां निभाई। वे इंफो इंडिया डाट काम, मुंबई से भी जुड़े रहे। इसके साथ ही उन्होंने छत्तीसगढ़ के पहले सेटलाइट चैनल जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ में इनपुट एडीटर और एंकर के रुप में कार्य किया।
मीडिया शिक्षा संजय द्विवेदी एक दशक से अधिक समय से मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। वे कई विश्वविद्यालयों से जुड़े रहे। वे कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर में पत्रकारिता विभाग के प्रथम एवं संस्थापक अध्यक्ष और विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद( एक्जीक्यूटिव कौंसिल) के सदस्य रहे। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय- धर्मशाला, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय-इलाहाबाद, रानी चेलम्मा विश्वविद्यालय-बेलगाम, महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, पत्रकारिता जनसंचार विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन आदि संस्थानों में बतौर बोर्ड ऑफ स्टडीज जुड़े रहे। वे माखनलाल पत्रकारिता विवि में एक दसक से अधिक समय से जुड़े हैं। इस दौरान वे प्राध्यापक, जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष, कुलसचिव और अब कुलपति बने हैं।
सम्मान…पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य करने के लिए संजय द्विवेदी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इनमें मा.गो.वैद्य स्मृति रजत पदक, वांडमय पुरस्कार, अंबिका प्रसाद दिव्य अलंकरण, धुन्नी दुबे आंचलिक पत्रकारिता सम्मान, पं. प्रतापनारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान, सृजनगाथा सम्मान, प्रवक्ता सम्मान और राजेन्द्र जोशी सम्मान शामिल हैं।
कीबोर्ड का सच्चा सिपाही…..
संजय द्विवेदी कीबोर्ड के एक ऐसे सिपाही हैं जो कभी थकते नहीं हैं, रुकते नहीं हैं। देश के तमाम ज्वलंत मुद्दों पर, मीडिया और समाज के सरोकारों पर अनवरत लिखते रहते हैं। आए दिन उनके सारगर्भिक लेख समाचार पत्रों व डिजिटल मंच पर पढ़ने को मिलता है। वे जितना साफ और स्पष्ट लिखते हैं उतना ही प्रखर और मुखर होकर तमाम ज्वलंत मुद्दों पर बोलते भी हैं। यूपी के एक छोटे से शहर बस्ती से निकल कर राष्ट्रीय मीडिया में अपनी पहचान बनाना और उसे वर्षों बाद भी कायम रखना आसान नहीं होता है। उन्होंने बदलते वक्त के साथ अपने को ढाल लिया और हर विधा के साथ मजबूती से जुड़ते गए और अपनी प्रखर लेखनी को भी जोड़ते गए। देश के विभिन्न समाचार- पत्र- पत्रिकाओं में उनके तक तीन हजार से अधिक लेख छप चुके हैं। वे दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन व संपादन कर चुके हैं। इनमें मोदी युग, मोदी लाइव, मीडियाः नया दौर, नई चुनौतियां, प्रभाष स्मृति, मीडिया की ओर देखती स्त्री, राष्ट्रवाद, भारतीयता और पत्रकारिता, ध्येय पथःराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नौ दशक, मीडिया और भारतीय चुनाव प्रक्रिया जैसी लोकप्रिय पुस्तकें शामिल हैं। वे पिछले 13 वर्षों से मीडिया सरोकारों पर केंद्रीत मीडिया विमर्श त्रैमासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं।
यारों के यार: संजय द्विवेदी यारों के यार हैं। वे किसी से तनिक भी द्वेष नहीं रखते हैं। वे पद, प्रतिष्ठा, विचारधार आदि से ऊपर उठकर सभी से सीधे संवाद में यकीन रखते हैं। उनके दरवाजे सभी के लिए समान रुप से खुले होते हैं। कभी भी कोई भी विषय हो, समस्या हो उनसे सीधे संवाद किया जा सकता है। उनका व्यवहार और वाकशैली ऐसी है कि उन्हें पसंद न करने वाला भी उनकी तरफ सहज ही खींचा चला जाता है। आप भले पहली बार उनसे मिल रहे हो पर वह इतनी आत्मियता और गर्मजोशी से मिलते हैं कि आप उन्हीं के होकर रह जाते हैं। इस बात का जरा भी एहसास ही नहीं होता कि हम पहली बार मिल रहे हैं या एक दूसरे से पहले से परिचित नहीं थे।
आसान नहीं हैं संजय द्विवेदी हो जाना….संजय द्विवेदी होना आसान नहीं है। उन्होंने लम्बा संघर्ष किया है, खुद को सजाया है, संवारा है, हर परिस्थिति के अनुरूप खुद को गढ़ा है। ऐसा नहीं है कि वे सीधे कुलपति बन गए हैं। इसके पीछे उनकी वर्षों की अनवरत लेखन साधना रही है। वे शून्य से शिखर तक पहुंचे हैं। माखनलाल पत्रकारिता विवि से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक ट्रेनी पत्रकार से संपादक तक का सफर किया। फिर विवि में प्राध्यापक बने, विभागाध्यक्ष बने, कुलसचिव बने और उसके बाद कुलपति का प्रभार उन्हें मिला है। अब तक के इस सफर में उन्हें कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, अनथक चलते रहे और सफलता के नित्य नए सोपान गढ़ते गए।
न रुकना कभी
न थकना कभी
मेरे की कीबोर्ड के सीपाही
तुझे चलना है मीलों अभी….