सनातन काल से ही भारतवर्ष का दर्शन महानतम रहा है। विभिन्न ग्रंथों के आभूषणों से सुशोभित रहने वाले सनातन हिन्दू धर्म में जीवन का प्रत्येक पहलू स्वीकार्य है। इन ग्रंथों में लिखे गए एक एक शब्द अपने आप में सम्पूर्ण एवं महान अर्थों वाले हैं। विश्व में कई सभ्यताएं जन्मीं और नष्ट गईं किन्तु हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसा विचार है जो अनंत काल से शाश्वत है।
पिछले एक हजार से पंद्रह सौ वर्षों में भारतवर्ष में एक समस्या उपजी, अपनी संस्कृति को विदेशियों के पहलू से जानने, समझने और पढ़ने की। यूरोपियों के आगमन के बाद यह समस्या और भी बढ़ गई क्योंकि अब सनातन के एक एक शब्द का अनुवाद यूरोपीय पद्धति में होने लगा। यूरोप जो कभी भी अपने समाज को संगठित कर नहीं पाया, वो अब भारत के दर्शन की व्याख्या करने लगा। एक ऐसा पश्चिमी समुदाय जिसका कोई सांस्कृतिक अस्तित्व नहीं था, वह भारतवर्ष की सनातन संस्कृति का समालोचनात्मक परीक्षण करने लगा। यह भारत और उसके सनातन हिन्दू धर्म का दुर्भाग्य था कि भारतवर्ष के मूल विचार का पश्चिमीकरण, जो सदियों पहले प्रारम्भ हुआ था, आज भी अनवरत चल रहा है।
हालाँकि भारतीय सनातन धर्म के पश्चिमीकरण का विषय अत्यंत विशाल है किन्तु इसके दो मुख्य पहलू हैं जो लघु रूप में विचारणीय हैं एवं हमारे दैनिक जीवन में प्रवेश कर चुके हैं। यह सनातन शब्दों के अंग्रेजीकरण और यूरोपीय अनुवाद से सम्बंधित है।
जैसा की हम सब जानते हैं कि संस्कृत विश्व की पुरातन भाषा है और वर्तमान की सभी भाषाओं की उत्पत्ति इसी भाषा से हुई है किन्तु आज यही संस्कृत भाषा विलोपित होती जा रही है। उससे भी बड़ी विडम्बना यह है कि हम स्वयं अपनी भाषागत परंपरा का पश्चिमीकरण कर रहे हैं।
आइये देखते हैं कैसे। लेख का पहला भाग अंग्रेजी उच्चारण से सम्बंधित है इसलिए इसमें अंग्रेजी के ही शब्दों का उपयोग किया जाएगा। वैसे तो अंग्रेजी वैश्विक भाषा है ही किन्तु हम भारतीयों ने इसे कुछ ज्यादा ही स्वीकार कर लिया है।
अब आप देखिए कि हम अपने पौराणिक और वैदिक अक्षरों का उच्चारण कैसे करते हैं।
भगवान राम (Ram), Rama के रूप में, हमारा महान ग्रन्थ रामायण (Ramayan), Ramayana के रूप में, महाभारत (Mahabharat), Mahabharata के रूप में लिखा और बोला जाता है। इसके अतिरिक्त हमारे महान वेद (Ved), Veda हो गए, अर्थात अब हमारे चार वेद हैं, Rigveda, Yajurveda, Samaveda और Atharvaveda. पुराण (Puran) को Purana के रूप में उच्चारित किया जाने लगा। यह सब जो पश्चिमी जगत में प्रारम्भ हुआ उसे हमने भी हाथों हाथ स्वीकार कर लिया। वास्तव में पश्चिम से प्रतिस्पर्धा करने और उनके बने पैमाने पर खरा उतरने के लिए हमारे द्वारा अपनी ही संस्कृति और अपने ही धर्म का पश्चिमीकरण प्रारम्भ कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद हमारे कई विचारक और विद्वान भारत छोड़कर जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और अमरीका में जा बसे। इनके भीतर भारतवर्ष के लिए प्रेम जीवित तो था इसलिए इन्होने अपने धर्म को नहीं छोड़ा और उसका प्रचार प्रसार करने का निर्णय लिया। लेकिन इन विद्वानों से गलती तब हुई जब उन्होंने अपने मूल विचारों को छोड़कर स्वयं को उन पश्चिमी विचारकों के बनाए खाके में ढ़ाल दिया।
साधारण रूप से देखने में यह लग सकता है कि Ram को Rama लिखने अथवा बोलने से ऐसा कौन सा धर्म का विनाश हुआ जा रहा है?
बिलकुल नहीं। धर्म का विनाश नहीं होगा। विनाश होगा हमारी विचारशीलता का। हमारे मूल तत्त्व का, जिसका धीरे धीरे पश्चिमीकरण हो रहा है।
वास्तव में Ram को Rama कहने से हम अब Ram को अपने मूल सनातन रूप में नहीं देख रहे हैं अपितु अब हमारी दृष्टि किसी जर्मन या अमरीकी दार्शनिक की हो गई है। अब हम राम को पश्चिम के आधार पर देखेंगे। हिंदी भाषा तो अभी भी अपने मूल को बचाए हुए है किन्तु भारतीय अंग्रेजी पूर्णतः पश्चिम आधारित है।
अब भाषा के उस दूसरे पहलू पर विचार करते हैं जो अनुवाद पर आधारित है। आज पूरे विश्व में अंग्रेजी का प्रभुत्व है। भारत ही नहीं कई अन्य ऐसे देश हैं जिनकी स्थानीय बोलियों या शब्दों का अंग्रेजी में अनुवाद किया जाता है।
भारत के मामले में यह अनुवाद घातक सिद्ध हुआ क्योंकि भारत की भाषाओं की उत्पत्ति संस्कृत से हुई और अनुवाद के कारण कई शब्दों के अर्थ या तो बदल गए, संकुचित हो गए, या नकारात्मक अर्थों वाले हो गए। इस मामले में पूरी दुनिया में यूरोप का प्रभुत्व स्थापित हो चुका है। लगभग सम्पूर्ण अंग्रेजी भाषा के शब्द लैटिन या ग्रीक उत्पत्ति वाले हैं। इसका अर्थ है कि एक लैटिन शब्द अब संस्कृत से उत्पन्न हुए शब्द का स्थान ले लेगा और उसके भावों का निर्धारण भी लैटिन भाषा पर आधारित होगा।
इसे दो उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं।
एक शब्द है जाति।
जाति शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की जनि धातु से हुई है। जाति शब्द का अर्थ एक प्रकार की सामूहिक समानता से है। जाति के विषय में पूरी जानकारी पिछले लेख में दी गई है। अब इसका अंग्रेजी अनुवाद देखिए। जाति को अंग्रेजी में Caste के रूप में अनुवादित किया जाता है। अब Caste की उत्पत्ति पर विचार करते हैं। Caste शब्द, स्पेनिश और पुर्तगाली शब्द Casta से उत्पन्न हुआ है जो वास्तविक अर्थों में भेदभावपूर्ण है और यूरोप के वर्ग आधारित विभाजन को मान्यता देता है। वैश्वीकरण की परिघटना में जाति को Caste से अनुवादित किया जाने लगा। जाति जो अर्थ में महान और भेदभाव से कोसों दूर है, उसे भारतीय समाज में वर्ग आधारित भेदभाव का पर्याय बना दिया गया। Caste से जाति की तुलना करने पर जाति का पूरा अर्थ बदल गया। वास्तव में भेदभाव एक अपराध है और भारतीय समाज में यह एक मानवीय प्रथा है न कि ग्रथों में वर्णित। वर्ण व्यवस्था भी पूर्णतः भेदभाव रहित है लेकिन Caste शब्द के अस्तित्व में आने से वर्ण और जाति दोनों ही भेदभावपूर्ण हो गए।
दूसरा शब्द है धर्म। धर्म मात्र एक है जो सनातन है और प्रकृति के जन्म के साथ ही इस धरा पर विराजमान है। धर्म वास्तव में महान अर्थ वाला है और अपने आप में सम्पूर्ण है किन्तु इसे भी Religion द्वारा अनुवादित करके इसके अर्थों को सीमित कर दिया गया है। वास्तव में सत्य यह है कि पश्चिम में धर्म का कोई अनुवाद है ही नहीं लेकिन फिर भी इसे Religion से प्रतिस्थापित किया गया।
धर्म एक सम्पूर्ण शब्द है जो संस्कृत से उत्पन्न हुआ है। इसके अंतर्गत जीवन, मरण, कर्म, अर्थ, काम, मोक्ष एवं मानव जाति से सम्बंधित सभी तत्वों का समावेशन है। यह एक विचार भी है और एक आचार भी। यह परिभाषाहीन है। यह अनंत है।
अब आते हैं धर्म के अंग्रेजी अनुवाद में। Religion, लैटिन भाषा के शब्द Religio से उत्पन्न हुआ है जो उतना विशाल अर्थ धारण नहीं करता जितना कि धर्म। Religion को पंथ या मजहब कहा जा सकता है लेकिन धर्म नहीं, क्योंकि ये सभी सीमित हैं। Religion निश्चित ही मानविक मूल्यों और नैतिक क्रियाओं का एक सेट है लेकिन विभिन्न विचारकों और दार्शनिकों में इसकी साझा परिभाषा को लेकर विवाद है। इसके विपरीत धर्म समावेशी है जहाँ सभी प्रकार के विचार साम्य में अस्तित्व में बने रहते हैं।
निश्चित ही धर्म, Religion नहीं है लेकिन भारतीय संस्कृति का दुर्भाग्य ही है कि अंग्रेजी हमारे विस्तार को संकुचित कर रही है और हम असहाय हैं।
ऐसे कितने ही शब्द हैं जो अपने आप में पूर्ण एवं सुपरिभाषित हैं लेकिन यूरोपीय भाषाओं में अनुवादित होने के बाद विभिन्न अर्थों वाले हो जाते हैं।
लेकिन अब हम क्या कर सकते हैं क्योंकि वैश्विक स्तर पर तो अंग्रेजी भाषा ही मान्य है। यह प्रश्न उचित हो सकता है किन्तु अंतिम नहीं। हम भारतीय तो इस प्रथा को बदल सकते हैं। हम अपने शब्दों को यथा रूप में अंग्रेजी में लिख सकते हैं। हम कोई भी हों, विद्यार्थी, विचारक, लेखक, दार्शनिक, अधिकारी या राजनेता, हमें अपने सनातन शब्दों को यथारूप लिखने का अभ्यास होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि हम अंग्रेजी में अपने हिन्दू धर्म की व्याख्या कर रहे हैं तो Hindu Dharma या Hinduism के स्थान पर शुद्ध रूप से Hindu Dharm ही लिखें। Ramayana को Ramayan ही लिखें। इससे वैश्विक स्तर पर हमारी छवि सुदृढ़ होगी। भारतीयता पर आधारित विचारशीलता का संचार पूरे विश्व में होगा और धीरे ही सही किन्तु हम पश्चिमीकरण के प्रभाव से मुक्त होंगे।