प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित किया गया आर्थिक पैकेज वास्तव में सुधारों का एक सेट भी है। इस पैकेज के माध्यम से न केवल पैसों का आवंटन किया जा रहा है अपितु आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न के रास्ते में जो भी बाधाएं हैं उन्हें भी समाप्त करने के प्रयास किये जा रहे हैं। 12 मई की घोषणा के पश्चात भारत की वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण लगातार 4 दिनों से प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से जनता के सामने सभी सुधार कार्यों की जानकारी लेकर आ रही हैं। प्रेस कांफ्रेंस की इस श्रृंखला में 16 मई को बड़े उद्योगों और क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के साथ संस्थागत सुधारों की बात की गई है। कोयला, खनिज, उड्डयन, रक्षा, एयरोस्पेस जैसे महत्वपूर्ण एवं कूटनीतिक क्षेत्रों में नीतिगत परिवर्तन किये जाने हैं। इन परिवर्तनों की सहायता से न केवल निवेश की वृद्धि होगी अपितु अर्थव्यवस्था में इन क्षेत्रों का योगदान भी बढ़ेगा। साथ ही भारत निर्यात क्षेत्र में अपनी क्षमता बढ़ाने में भी समर्थ होगा।
आत्मनिर्भर भारत के लिए किये जाने वाले उपायों पर चर्चा आवश्यक है क्योंकि इन्ही उपायों के माध्यम से संस्थागत और नीतिगत सुधार प्रभावी होंगे।
सबसे पहले तो निवेश को तीव्र गति प्रदान करने के लिए सचिवों के एक सशक्त समूह का निर्माण किया जाएगा जो निवेश निकासी के लिए उत्तरदायी होंगे। प्रत्येक मंत्रालय में एक प्रोजेक्ट डेवलपमेंट सेल बनाया जाएगा जो निवेश योग्य प्रोजेक्ट्स के निर्माण के लिए निवेशकों और राज्य/केंद्र सरकारों के मध्य सेतु का कार्य करेगा। इसके अतिरिक्त निवेश आकर्षित करने की क्षमता को परखने के लिए राज्यों को रैंकिंग भी प्रदान की जाएगी जिससे राज्यों के मध्य एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहेगी। सोलर फोटो वोल्टिक सेल और एडवांस स्टोरेज बैटरी उत्पादन जैसे चैंपियन क्षेत्रों के लिए प्रोत्साहन युक्त योजनाएं बनाई जाएंगी।
औद्योगिक अवसंरचना के उन्नयन के लिए भी सुधारों का खाका तैयार किया जा चुका है। उन्नयन की यह योजना चैलेंज मोड में राज्यों में लागू की जाएगी, जिसका उद्देश्य औद्योगिक समूह क्षेत्र का उन्नयन होगा। इस योजना के अंतर्गत नए निवेश के लिए भूमि बैंक का निर्माण प्रमुख है, जिसकी पूरी जानकारी औद्योगिक सूचना व्यवस्था (IIS) में GIS मैपिंग के साथ उपलब्ध होगी। हाल के समय तक 5 लाख हैक्टेयर भूमि में स्थित 3376 औद्योगिक पार्क / एस्टेट्स / SEZs की सूचना IIS में उपलब्ध है। 2020-21 तक इसके 100% पूर्ण होने का लक्ष्य तय किया गया है।
कोयला क्षेत्र में नीतिगत सुधार :
- कोयला क्षेत्र में आत्म निर्भरता प्राप्त करने के लिए सरकार इस क्षेत्र में निजी संस्थाओं को भी आमंत्रित करने की योजना बना रही है। इसके लिए प्रति टन मूल्य पद्धति के स्थान पर राजस्व वितरण तंत्र का निर्माण किया जाएगा। लगभग 50 कोयला ब्लॉक इसके लिए तैयार किये जाएंगे जिनमें प्रवेश के लिए किसी प्रकार की कोई पात्रता तय नहीं होगी।
- पिछली व्यवस्था के विपरीत नए नीति सुधारों के अंतर्गत आंशिक रूप से अन्वेषित कोयला ब्लॉक्स की नीलामी भी संभव हो सकेगी जिसमे निजी क्षेत्र को भी अन्वेषण की अनुमति होगी। निश्चित समयसीमा के पहले उत्पादन समाप्त करने के लिए राजस्व में छूट दिए जाने का प्रावधान है।
- न्यूनतम पर्यावरणीय क्षति और भारत को गैस आधारित ऊर्जा अर्थव्यवस्था बनाने के लिए कोल गैसीकरण और तरलीकरण प्रक्रियाओं को राजस्व वितरण में छूट देने की योजना है।
- कोयला क्षेत्र में अवसंरचना विकास के लिए 50000 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान है। इस बजट का उपयोग निजी कोयला ब्लॉक्स और कोल इंडिया लिमिटेड के द्वारा कोयला उत्पादन की क्षमता को 1 अरब टन करने के लिए किया जाएगा। इसमें खदानों से रेलवे केंद्रों तक कोयले को कन्वेयर बेल्ट के द्वारा ले जाने की सुविधा निर्मित करने के लिए प्रस्तावित 18000 करोड़ रुपये का बजट भी सम्मिलित है।
खनिज क्षेत्र में निवेश एवं संस्थागत सुधार :
- संवृद्धि एवं रोजगार निर्माण को बल देने के लिए एक अनवरत संयुक्त प्रक्रिया की व्यवस्था की जाएगी जिसमें अन्वेषण, खनन एवं उत्पादन एक साथ चलता रहे। इसके लिए मुक्त एवं पारदर्शी नीलामी के द्वारा 500 खनिज उत्खनन ब्लॉक तैयार किये जाएंगे।
- एल्युमीनियम उद्योग में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने और विद्युत् खर्च को कम करने के लिए बाक्साइट और कोयले की खदानों की संयुक्त नीलामी प्रारम्भ की जाएगी।
- कैप्टिव और नॉन कैप्टिव खदानों में अंतर को समाप्त किया जाएगा जिससे खनन लीज का स्थानांतरण एवं अतिरिक्त अप्रयुक्त खनिजों का विक्रय संभव हो सके।
- खनिज मंत्रालय द्वारा विभिन्न खनिजों के लिए मिनरल इंडेक्स भी बनाया जाएगा।
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता एवं नीतिगत सुधार :
- रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष हथियारों अथवा प्लेटफॉर्म्स के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया जाएगा। आयात किए गए पुर्जों का स्वदेशीकरण किया जाएगा तथा घरेलू पूंजीगत खरीद के लिए अलग बजट का प्रावधान होगा।
- आयुध आपूर्ति प्रक्रिया में स्वायत्तता, उत्तरदायित्व और दक्षता को बढ़ाने के लिए आयुध फैक्ट्री बोर्ड का निगमीकरण किया जाएगा, किन्तु यह प्रक्रिया निजीकरण से भिन्न है।
- रक्षा उत्पादन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को स्वचालित रूट के माध्यम से 50% से बढ़ाकर 74% किया जाएगा।
- रक्षा खरीद प्रक्रिया को समयबद्ध करने के लिए प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट की स्थापना होगी। इसके अलावा हथियारों और प्लेटफॉर्म्स के लिए जनरल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स का निर्माण किया जाएगा। इन सुधारों में ट्रायल एवं टेस्टिंग प्रक्रियाओं का उन्नयन भी सम्मिलित है।
नागरिक उड्डयन क्षेत्र में दक्षता एवं निवेश वृद्धि :
- नागरिक उड्डयन सुधार का पहला प्रमुख बिंदु है एयरस्पेस प्रबंधन क्योंकि भारत में अभी तक 60% एयरस्पेस नागरिक उड्डयन के लिए उपलब्ध है जिसमें ढील दिए जाने से नागरिक उड्डयन की दक्षता में वृद्धि होगी और उड्डयन क्षेत्र को सालाना लगभग 1000 करोड़ रुपये की बचत होगी।
- विश्वस्तरीय एयरपोर्ट्स के निर्माण के पहले चरण में 6 हवाईअड्डों में से 3 हवाईअड्डे सार्वजनिक-निजी भागीदारी के आधार पर कार्यरत हैं। दूसरे और तीसरे चरण के लिए भी 6-6 हवाईअड्डे सार्वजनिक-निजी भागीदारी के अंतर्गत बोली के लिए चिन्हित किये जा चुके हैं।
- जहाँ तक निवेश की बात है तो पहले चरण में 6 हवाईअड्डों का राजस्व 1000 करोड़ रुपये था, जबकि एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को डाउन पेमेंट के रूप में 2300 करोड़ रुपये मिलेंगे। पहले और दूसरे चरण में 12 हवाईअड्डों में निजी निवेशकों द्वारा लगभग 13000 करोड़ रुपये के निवेश होने की आशा है।
- भारत को विमान रखरखाव, मरम्मत एवं जीर्णोद्धार (MRO) के क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिए MRO तंत्र के लिए कर संरचना को सरल बनाने पर जोर दिया जा रहा है। आगामी वर्षों में कई बड़े इंजन निर्माता भारत में इंजन मरम्मत सुविधाओं को स्थापित करने वाले हैं। सबसे महत्वपूर्ण बदलाव है रक्षा एवं नागरिक उड्डयन क्षेत्र के मध्य आपसी सामंजस्य का निर्माण जिससे विमानों के रखरखाव, मरम्मत और जीर्णोद्धार तंत्र का पूर्णतः लाभ लिया जा सके।
विद्युत् क्षेत्र में टैरिफ नीति सम्बन्धी सुधार :
- इन सुधारों के तहत उपभोक्ता अधिकार, उद्योग संवर्धन और क्षेत्र का समावेशीकरण सम्मिलित है।
- डिस्कॉम की क्षीण दक्षता से उपभोक्ता की रक्षा, डिस्कॉम के लिए सेवा एवं दंड के मानक तथा डिस्कॉम द्वारा उचित विद्युत् आपूर्ति, उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण सुधार हैं।
- क्रॉस सब्सिडी में सुधारवादी नियंत्रण, मुक्त पहुँच सुनिश्चित करने के लिए समयबद्ध अनुदान एवं उत्पादन तथा संचरण प्रोजेक्ट के लिए डेवेलपर्स का प्रतिस्पर्धात्मक चयन, उद्योगों को बढ़ाने के लिए आवश्यक सुधार बिंदु हैं।
- विद्युत् क्षेत्र की स्थिरता के लिए किये गए उपायों में नियामक संपत्ति की अनुपस्थिति, जेनकोस (GENCOs- power GENerating COmpanies) का निश्चित भुगतान, अनुदान वितरण के लिए डीबीटी और स्मार्ट प्रीपेड मीटर का उपयोग सम्मिलित है।
- केंद्र शासित प्रदेशों में ऊर्जा विभागों एवं विभिन्न उपयोगिताओं का निजीकरण किया जाएगा। इसके माध्यम से उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधा उपलब्ध होगी एवं वितरण में वित्तीय दक्षता आएगी। इन केंद्र शासित प्रदेशों के अनुभव पूरे भारत के लिए एक प्रयोग की भांति होंगे।
संशोधित व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा क्षेत्र में निजी निवेश :
- सरकार सामाजिक क्षेत्र के लिए व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) में 30% की वृद्धि करेगी जो कुल परियोजना लागत पर प्रभावी होगी। अन्य क्षेत्रो के लिए VGF अनुदान 20% ही रहेगा। इसके लिए सरकार 8100 करोड़ रुपये व्यय करेगी।
अंतरिक्ष गतिविधियों में भागीदार बनने के लिए निजी क्षेत्र को कुछ विशेष सुविधाएं प्रदान की जाएंगी जिनमें सम्मिलित हैं,
- उपग्रह, लॉन्च प्रक्रिया और अंतरिक्ष सेवाओं में निजी क्षेत्र को नवीन अवसर।
- निजी क्षेत्र के लिए स्वीकार्य नीति एवं नियामक वातावरण की उपलब्धता।
- क्षमताओं में उन्नयन हेतु इसरो की सुविधाओं का उपयोग करने की स्वतंत्रता।
- ग्रहीय अन्वेषण और बाह्य अंतरिक्ष यात्रा जैसी भविष्य की परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी।
- नए तकनीक आधारित स्टार्टअप एवं उद्यमियों को रिमोट सेंसिंग डाटा उपलब्ध कराने के लिए उदारवादी भू-स्थानिक डाटा नीति।
परमाणु ऊर्जा पर आधारित सुधार :
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) पर आधारित शोध रिएक्टर का निर्माण जहाँ चिकित्सकीय आइसोटोप बनाए जाएंगे जो कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में सहायक होंगे।
- नाशवान वस्तुओं के संरक्षण हेतु PPP मोड पर विकिरण तकनीक सुविधाओं का निर्माण जिससे कृषि सुधार कार्यक्रम को और भी सशक्त किया जा सके एवं कृषकों को सहायता मिल सके।
- भारत के स्टार्टअप तंत्र को परमाणु क्षेत्र से जोड़े जाने की योजना है जिससे तकनीक विकास के नए आयाम रचे जा सकें। इसके लिए तकनीक विकास एवं इन्क्यूबेशन केंद्र का निर्माण किया जाएगा।
उपरोक्त आठ बिंदुओं में जिन क्षेत्रों में संस्थागत, नीतिगत और निवेश आधारित सुधारों की बात की गई है वो सभी अति महत्व के क्षेत्र हैं। जहाँ एक ओर कोयला, खनिज और ऊर्जा क्षेत्र रोजगार निर्माण एवं अवसंरचना विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं वहीं अंतरिक्ष, परमाणु और उड्डयन जैसे क्षेत्र भारत की आत्मनिर्भरता के लक्ष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन क्षेत्रों में निजी भागीदारी से नए अवसरों के मार्ग खुल जाएंगे क्योंकि निजी निवेश के प्रवेश से दक्षता एवं तकनीक आधारित उन्नयन की प्रायिकता बढ़ जाएगी। भारत लगातार स्टार्टअप और तकनीक उद्यमों के माध्यम से विश्व में अपनी पहचान स्थापित कर रहा है। ऐसे में रक्षा क्षेत्र में भारत के पास आत्मनिर्भर बनने के अनेकों अवसर हैं यदि इन स्टार्टअप और तकनीक उद्यमों का उपयोग रक्षा क्षेत्रों में किया जाए। यह सब संभव है, जब निवेश को मंजूरी मिलने में होने वाली देरी और परियोजनाओं की पूर्णता में बाधक अफसरशाही और अन्य कारकों को निष्फल किया जाए।