महाराष्ट्र विकास अघाड़ी औऱ एक शिवसैनिक मुख्यमंत्री।
फ्री प्रेस जर्नल के कार्टूनिस्ट, द कॉमन मैन के सर्जक आर .के.लक्ष्मण के साथी और शिवसेना के संस्थापक बाल केशव ठाकरे, जिन्हें उनके समर्थक बालासाहेब के नाम से पुकारते थे, ने १९६६ में शिवसेना की स्थापना की थी, औऱ महाराष्ट्र की राजनीति में महत्वपूर्ण धुरी के रूप में काम करने के बाद भी किसी भी सत्ता से जुड़े पद को ग्रहण नहीं करने के लिए विख्यात रहे।
उनकी मृत्यु के सात साल और बारह दिन बाद उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
हिन्दू हृदय सम्राट के रूप में विख्यात पिता के उत्तराधिकारी के रूप में उद्धव एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से सत्तासीन हुए।
एक माह पहले पूर्ण हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई थी । शिवसेना ने 126 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसे मात्र 56 सीटो पर विजय प्राप्त हुई और अन्य 70 सीटों पर वह एनसीपी और कांग्रेस से हार कर दूसरे और तीसरे स्थानों पर रही।
फिर क्या कारण रहा कि अपनी सबसे पुरानी साथी को छोड़कर भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ रहा है?
शायद इसका उत्तर सत्तासुंदरी की लालसा है जिसने उद्धव ठाकरे को अपने चुनावी विरोधियों से समर्थन लेने पे विवश कर दिया और कांग्रेस जो बालासाहेब की पुरजोर विरोधी रही और बाबरी विध्वंस के स्मरण में विपरीत ध्रुवों(कांग्रेस इस दिन काला दिवस और शिवसेना शौर्य दिवस मनाती रहीं हैं) पे खड़ी रहने वाली पार्टियां आज सत्ता पक्ष में रहने के लिए अपनी विचारधारा और मूल्यों से भी समझौता करने लगी हैं।
अस्तु उद्वव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनने की बधाई और एक मजबूत विपक्षी दल के साथ महारष्ट्र का सचमुच भला करने की शुभकामनाएं!