Friday, March 29, 2024
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ओ “बी. एल. ओ.” कल आना

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वह कहावत तो आपने सुनी होगी “जिसका काम उसी को साजे, कोई और करे तो डंडा बाजे” बस यही हाल है इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था का, जिसका जो काम है वह उसे करने नहीं दिया जाता और इधर उधर डंडा बजाने के लिए लगा दिया जाता हैं, यह सिर्फ सरकारों के द्वारा उत्त्पन की गयी समस्या नहीं हैं, यह समस्या हैं देश के “चलता हैं” व “जुगाड़” वाले रवैये की और इस मानसिकता में अक्सर “बलि के बकरा” बनते हैं देश के सरकारी कर्मचारी विशेषकर स्कूली मास्टर।

इससे पहले की यह शिक्षक अपने हाथो में कलम उठाते हुए विद्यार्थीयो को अंग्रेजी, हिंदी वर्णमाला, गणितीय पहाड़े सिखाये, कई सरकारी फरमान इनका इंतज़ार कर रहे होते हैं। यह फरमान एक प्रकार की जुगाड़ होती हैं। सरकारी जुगाड़ जिसके द्वारा अधिकतर सरकारी कर्मचारियों को विशेषकर शिक्षकों को नयी नयी जिम्मेदारियां थोपी जाती हैं, जिनका उनसे और उनके कार्यक्षेत्र से कोई लेना देना नहीं होता,इसी प्रकार की एक ज़िम्मेदारी जो आजकल शिक्षकों को सौपी जा रही हैं वह हैं “बी. एल. ओ.” (बूथ लेवल ऑफिसर) का पदभार और कार्य जिसमे मतदाता सूची का आधुनिकरण, मतदाता का नाम जोड़ना या हटाना, मतदाता कार्ड के लिए रंगीन फोटो का एकत्रीकरण आदि कार्य लगभग साल भर चलते रहते हैं। और इस कार्य को करने के लिए अच्छी खासी संख्या में व्यक्तियों की आवश्यकता हैं।

देश के हट्टे कट्टे बेरोजगार युवा कृपया “आवश्यकता” शब्द सुनकर प्रसन्न ना हो क्योकि आपकी सेवाए लेने की बजाय आपको रोजगार प्रदान कराने की बजाय इस देश की सरकारों ने कोई दूसरा रास्ता ही चुन लिया हैं। यह रास्ता हैं जुगाड़ का, हाँ तो क्या हुआ आप को कंप्यूटर आता हैं, तो क्या हुआ आप युवा हैं और भाग दौड़ कर सकते हैं फिर भी सरकार को आपकी कोई जरुरत नहीं क्योंकि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को इस कार्य में लगा दिया गया हैं। तो क्या हुआ शिक्षकों को इस कार्य में लगा देने से बच्चों की पढाई में बाधा पहुँचती हैं।

अब भई सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे तो ठहरे गरीब कौन से इनके माँ बाप पैरंट्स टीचर मीटिंग में आकर बच्चे की प्रोग्रेस पर चर्चा करेंगे।

और भाई ये “बी. एल. ओ.” का काम भी बड़ा पेचीदा हैं, नई नई तकनीकों से किया जाता है और घर घर जाकर करना हैं और तो और इस कार्य को करने के लिए सिर्फ एक या दो दिन का ही प्रशिक्षण दिया जाता है, क्योंकि यह कार्य घर घर जाकर करना हैं इसके लिए स्वस्थ, शारीरिक रूप से सक्षम युवाओं की जरूरत है परंतु यहां तो उल्टा 50- 55 वर्षीय व्यक्तियों को इस कार्य में लगाया जा रहा है। और अपेक्षा की जा रही है कि वह तीन चार मंजिल चढ़कर यह काम करे। एवं इस कार्य की सबसे गंभीर समस्या हैं इसका ऐप। सरकारी व्यवस्थायो की पोल खोलता यह ऐप चलने का नाम ही नहीं लेता। तकरीबन हर एक दो दिन के अंतराल से इसका नया वर्जन लॉन्च होता हैं परन्तु इस ऐप के क्रैश होने की समस्या वही की वही बनी रहती हैं।

ऊपर से अखबारों व टेलीविजन में न के बराबर विज्ञापनों से आम जनता के बीच इस कार्य को लेकर बहुत कम जानकारी हैं और इसके लिए कई गोपनीय जानकारी बी.एल.ओ के साथ साझा करनी पड़ती है जैसे नाम पता, फोटो, आधार नंबर आदि। जिसे देने में उचित जागरूकता के अभाव में लोग आनाकानी करते हैं इसलिए अक्सर बी.एल.ओ को इन जानकारियों को इकट्ठा करने में काफी समस्यायों का सामना करना पड़ता हैं। और कई बार “बी.एल.ओ” को “कल आना कह कर” टाल दिया जाता हैं।

देश भर के क्षेत्रीय अखबारों की खबरों के अनुसार समस्या इतनी गंभीर हैं की उत्तर प्रदेश में पिछले 1 साल में बी.एल.ओ के कार्य से तंग आकर दो कर्मचारी आत्महत्या कर चुके हैं। उनमे से एक विकलांग कर्मचारी राजेश कुमार (29) मूलतः शिक्षा विभाग में संविदा अनुदेशक के पद पर कार्यरत थे एक और मामले में मूलतः शिक्षामित्र पवन कुमार (32) ने भी बी.एल.ओ का कार्यभार जबरन दिए जाने के कारण आत्महत्या कर ली। वही राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में भी मोबाइल नेटवर्क न होने के कारण मतदाता के सत्यापन के लिए तमाम तरह की समस्याओ का सामना करना पड़ रहा हैं, साथ ही साथ केजरीवाल जैसे बड़बोले नेताओ के मतदाता सूची से नाम काट देने जैसे ऊलजलूल बयान व अभियान भी कर्मचारियों का मानसिक दबाव बड़ा देते हैं। जिससे भी अनेक प्रकार की समस्या खड़ी हो जाती हैं।

बरहाल अगर आप भी मेरी तरह एक मतदाता हैं तो मतदाता सूची के इस कार्य में अपने क्षेत्र के “बी.एल.ओ” को सहयोग दे। और अगर आप के मतदाता कार्ड पर लगी फोटो “ब्लैक एंड व्हाइट” हैं तो जल्द से जल्द रंगीन फोटो खिचवाकर रख ले और बी.एल.ओ को दे। क्योंकि नए नियमो के अनुसार मतदाता कार्ड का आधुनिकरण किया जा रहा है जिसमें रंगीन फोटो की जरूरत होगी साथ ही साथ अन्य जानकारियां भी इकट्ठा कर के रखे ताकि जल्द से जल्द आपका मतदाता सूची में नवीन जानकारियों के साथ सत्यापन हो सके।

साथ ही साथ केंद्र व राज्य सरकरों से भी उम्मीद है कि वह जल्द से जल्द कम से कम शिक्षकों को इस कार्य से मुक्त करेगी जिससे वे अपने शिक्षण के कार्य का निर्वहन सरलता से कर सके।

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