जमात-ए-इस्लामी ने मुसलमानों से लिखित अपील करके सपा-बसपा को वोट करने के लिये कहा है. इससे पहले खुद मायावती खुले आम मुसलमानों से यह अपील कर चुकी हैं कि वोट सिर्फ सपा-बसपा को दिये जाएं. कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र मे 72000 रुपये सालाना की “कैश फॉर वोट” स्कीम शामिल की जाती है. कांग्रेस पार्टी और उसके नेता 767 करोड़ रुपयों के “तुग़लक़ रोड चुनावी घोटाला” मे रंगे हाथों पकड़े जाते हैं. इस घोटाले मे 281 करोड़ रुपये नकद पकड़े गये हैं जिसमे से 20 करोड़ रुपये राहुल गाँधी को हवाला की मार्फत उनके तुग़लक़ रोड स्थित आवास पर भेजे गये हैं.
चुनाव आयोग को यह सब कुछ ना तो दिख रहा है और अगर दिख भी रहा है तो उस पर कोई कार्यवाही होती नज़र नही आ रही है. चुनावों मे काले धन का इस्तेमाल वोट खरीदने और वोटरों को प्रभावित करने के लिये बिल्कुल ना हो, यह जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है. चुनाव आयोग खुद तो इस जिम्मेदारी को निभाने मे पूरी तरह से नाकाम रहा है और जब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट खुद आगे बढ़कर चुनाव आयोग की मदद कर रहा है और कांग्रेस पार्टी और उसके नेता रंगे हाथों आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करते हुये पकड़े जा रहे हैं तो चुनाव आयोग को बहुत तकलीफ हो रही है और इनकम टैक्स विभाग को शाबाशी देने की बजाये डांट लगा रहा है. देश की जनता चुनाव आयोग की इन सब हरकतों का गंभीरता से संज्ञान ले रही हैं और इसका जबाब वोट से देने का मन बना चुकी है.
ऐसा नही है कि चुनाव आयोग कुछ भी नही कर रहा है. कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष द्वारा अगर भाजपा के खिलाफ कोई बेबुनियाद शिकायत भी चुनाव आयोग से की जाती है तो चुनाव आयोग सारा काम धंधा छोड़कर उस पर कार्यवाही करने के लिये एकदम तत्पर नज़र आ रहा है. मोदी के जीवन पर बनने वाली फिल्म पर बैन लगाना और नमो टी वी पर बैन लगाकर चुनाव आयोग शायद यह समझ रहा है कि देश की जनता कुछ नही समझ रही है और वह अपने मनसूबों मे कामयाब हो जायेगा. मतलब कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष किसी भी तरह से चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करता रहे, उस पर चुनाव आयोग गहरी चुप्पी लगाकर बैठा रहेगा और जहाँ उसे लगेगा कि किसी भी तरह से किसी भी वजह से भाजपा को चुनावी फायदा मिलने की दूर दूर तक भी कोई संभावना है तो वहां वह आदर्श आचार संहिता की दुहाई देकर भाजपा पर अपना डंडा फौरन चला देगा. जब “उडता पंजाब” नाम की फिल्म बनाकर पंजाब की सत्ता कांग्रेस ने हथियाई थी, तब चुनाव आयोग क्या सो रहा था?
अगर चुनाव आयोग को अपनी बची खुची साख और विश्वसनीयता की थोड़ी सी भी फिक्र है तो वह तुरंत मायावती, जमात-ए-इस्लामी, कमलनाथ,अहमद पटेल और राहुल गाँधी के खिलाफ चुनाव आचार संहिता के गंभीर उल्लंघन के लिये FIR कराये ताकि इन लोगों के खिलाफ अवश्यक कानूनी कार्यवाही की जा सके. कांग्रेस पार्टी और बाकी विपक्षी पार्टियों की तरह चुनाव आयोग भी शायद इस गलतफ़हमी मे है कि जनता एकदम अनपढ और बेबकूफ है और उसे कुछ पता नही चल रहा है इसलिये अपनी मनमानी करते रहो. सोशल मीडिया की ताकत से चुनाव आयोग भी उतना ही अनजान मालूम पड रहा है जितना कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष है. चुनाव आयोग को मालूम होंना चाहिये कि उसके इस पक्षपात पूर्ण रवैये पर देश की जनता की कडी नज़र बनी हुई है. उम्मीद यही की जाती है कि चुनाव आयोग कम से कम अब तो अपने पक्षपात पूर्ण रवैये को छोड़कर विपक्षी पार्टियों द्वारा किये जा रहे आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों पर कुछ सख्ती दिखायेगा.
चुनाव आयोग इनकम टैक्स विभाग से कह रहा है कि काले धन पर छापा डालने से पहले हमे सूचना दो-क्या चुनाव आयोग ने इस बात की व्यवस्था कर रखी है कि यह सूचना उसके यहाँ से ” लीक “नही होगी और छापा पड़ने से पहले ही काला धन अपने ठिकानों से नही हटा लिया जायेगा?