“नया भारत” (घर में घुसेगा भी और मारेगा भी)
लिपटी हुई तिरंगे में जब वीरों की निशानी आई
अश्रुधार नयनों से झरे और लहू में रवानी आई
जो शहीदों के शवों पर मात्र निंदा कर के हारे
धिक्कार बिते तंत्र को है जो विवशता को पसारे
अब नहीं ये राष्ट्र वह जो वार झेले आह भर भर
स्वयं की रक्षा करेगा शत्रुओं का वध समर कर
शत्रु के गृह भेद विजयी लौटे रणवीरों को वंदन
देश का अभिमान है हर वीर का हो अभिनंदन
पराक्रमी हिंद के वीरों पर अब नहीं कोई अवरोध
हर शहीद का हो तर्पण लेकर प्रबल प्रखर प्रतिशोध
दुर्भाग्यवश हुआ भारत में गृहशत्रुओं का निर्माण
अपनी ही सेना से मांगे जो शौर्य के नित्य प्रमाण
कैसी विंडबना राष्ट्र की जो कुछ इसके ही स्वजन
शत्रुओं के गुणगान करे उनकी भाषा का वर्णन
पर नये भारत को है अपने नायकों की पहचान
वीरों के शौर्य से साहस से है राष्ट्र का स्वाभिमान
-दर्शन