कश्मीर के पुलवामा में पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी ने एक आत्मघाती हमले में CRPF के 40 से ऊपर बेगुनाह जवानों की जान ले ली है. जवानों के शहीद होने के तुरंत बाद ही कांग्रेस पार्टी के नेताओं के जिस तरह से शर्मनाक बयान आने शुरू हुए और उन बयानों में आतंकी की तरफदारी करते हुए जिस तरह से मोदी सरकार को घेरने की कवायद शुरू हुई, उसे देखकर किसी भी देशभक्त भारतीय का सर शर्म से झुक जाना चाहिए. रस्म अदायगी के लिए कांग्रेस पार्टी और इसके नेताओं ने सैनिकों की इस शहादत पर शोक तो प्रकट कर दिया लेकिन एक तरफ नवजोत सिंह सिद्धू समेत सारे नेता पाकिस्तान को “क्लीन चिट” देने का काम करते रहे, दूसरी तरफ इन्ही के कुछ नेता पाकिस्तान की बजाये मोदी सरकार को घेरने का काम करते रहे. इन्ही के इशारे पर आतंकी के पिता से किसी स्व-घोषित पत्रकार ने इंटरव्यू भी कर लिया और उसी के आधार पर यह कहानी बनाई जाने लगी मानो वह आतंकी पूरी तरह निर्दोष हो और सारा दोष पुलिस और सुरक्षा बलों का हो जिन्होंने 2016 में इस आतंकी से पत्थरबाज़ी की एक वारदात के सिलसिले में सख्ती से पूछताछ की थी.
आतंकी के पिता ने जो कहानी इस तथाकथित पत्रकार को सुनायी उसने उसे पूरी तरह सच मानकर अख़बारों में परोस दिया और उसी के आधार पर कांग्रेसियों ने आतंकी को “बेक़सूर” और मोदी सरकार को “गुनहगार” बताने का सिलसिला शुरू कर दिया. सुरजेवाला ने इस हमले को मोदी सरकार की बड़ी विफलता बताया तो कपिल सिब्बल ने इस घटना के लिए अति-राष्ट्रवाद [हाइपर-नेशनलिज्म] को जिम्मेदार बता दिया. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे भी कहाँ पीछे रहने वाले थे- उन्होंने इस हमले को भारत द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का जबाबी हमला बता दिया. नवजोत सिंह सिद्धू तो पहले ही पाकिस्तान को इस हमले के मामले में “क्लीन चिट” दे चुके थे. कांग्रेस पार्टी और इनकी भजन मंडली ने जो कहानी तैयार की उसके हिसाब से आतंकी एक निहायत शरीफ व्यक्ति था. क्योंकि पुलिस और सुरक्षा बलों ने उससे पत्थरबाज़ी के सिलसिले में सख्ती से पूछताछ कर ली थी, इसलिए वह बहुत अपमानित महसूस कर रहा था और इसीलिए उसने आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद को ज्वाइन कर लिया. अगर एक बार को यह कहानी सही भी मान ली जाए तो उसके हिसाब से पुलिस पूरे देश में रोजाना सैंकड़ों आरोपियों को संदेह के आधार पर पकड़कर पूछताछ करती है- फिर तो उन सभी को आतंकी बनकर सेना पर हमला करने का अधिकार मिल जाना चाहिए. क्या इस तरह से किसी देश में कानून व्यवस्था चल सकती है ?
दरअसल 2014 में लोकसभा चुआवों में हारने के साथ ही कांग्रेस ने मोदी सरकार को हटाने के लिए नित नए पैतरे इस्तेमाल करने शुरू कर दिए थे. पुलवामा का आतंकी हमला उनमे से आखिरी पैतरा है. 2015 में कांग्रेस के नेता मणि शंकर अय्यर पाकिस्तान में यह फ़रियाद करने गए थे की मोदी को हटाने में कांग्रेस की मदद करो. इसी बात को इनके अलग अलग नेता अलग अलग समय पर अलग अलग तरीके से उठाते रहे. पाकिस्तानी रणनीतिकार तारिक पीरज़ादा ने इसके बाद यह सुझाव भी दिया कि मोदी को सत्ता से हटाने का सिर्फ और सिर्फ एक ही तरीका है -वह यह कि राहुल और केजरीवाल मिलकर हिन्दुओं को जाति-पाति में बाँट दें. कांग्रेस ने यह तरीका भी अपनाया और दलित आंदोलन को वेवजह हवा देकर जोर अजमायश की लेकिन वहां भी ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी.
इसके बाद “इन्टॉलरेंस” की डुगडुगी बजाकर अवार्ड वापसी भी कराई गयी, जिसका कुछ असर हुआ और बिहार में सत्ता हथियाने में महागठबंधन कामयाब हुआ. कांग्रेस के सामने लक्ष्य बड़ा था -लिहाज़ा उसने अब नोटबंदी और जी एस टी का जमकर विरोध किया और इसे जन विरोधी साबित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया लेकिन इसके तुरंत बाद हुए उत्तर प्रदेश के चुनावों में भाजपा की बम्पर जीत ने कांग्रेस की रही सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया. इसके बाद शुरू हुआ किसान आंदोलन और नोटा की साज़िश जिसके चलते कांग्रेस को हालिया तीन राज्यों में सत्ता हासिल करने में मदद मिली. लेकिन इन राज्यों में मिली जीत निर्णायक नहीं थी और सिर्फ उसी के आधार पर लोकसभा चुनावों की नैया पार लग पाना मुश्किल काम था-लिहाज़ा “राफेल” नाम के एक फ़र्ज़ी घोटाले का निर्माण किया गया और उसे जोर-शोर से प्रचारित किया गया- लेकिन पहले सुप्रीम कोर्ट और बाद में CAG की “क्लीन चिट” मिलने की वजह से इस काल्पनिक घोटाले के भी हवा निकल गयी. जब कुछ भी नहीं बचा तो हताशा में पाकिस्तान प्रायोजित पुलवामा का हमला हो गया.
पाठकगण कृपया ध्यान दें-इतनी बड़ी कांग्रेस पार्टी में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह अकेले कांग्रेसी नेता हैं जिन्होंने इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है-बाकी किसी कांग्रेसी नेता की आज भी हिम्मत नहीं है कि इस हमले के लिए पाकिस्तान की तरफ उंगली भी उठा सके. उंगली तो तब उठाएंगे जब इन्होने पाकिस्तान से मोदी को हटाने के लिए मदद न माँगी हो. अब जब पाकिस्तान ने माँगी हुई मदद की आखिरी किश्त पहुंचा दी तो अब उसके लिए पाकिस्तान को भला यह लोग दोषी कैसे ठहरा सकते हैं?
पाठकों की याददाश्त ताज़ा करते हुए मैं वाजपेयी सरकार के समय 13 दिसंबर 2001 को हुए संसद पर हुए हमले की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ. इस हमले के बारे में सभी को सब कुछ मालूम होगा लेकिन एक बात सबको मालूम नहीं होगी या फिर किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया होगा. संसद पर हमले वाले दिन सोनिया गाँधी जी खुद संसद में नहीं आयी थीं- हमले के बाद उन्होंने फ़ोन करके वाजपेयी जी की खैरियत जरूर पूछी थी. वाजपेयी जी ने उस हमले पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की और उनके हाथ से सत्ता फिसलकर अगले दस सालों के लिए कांग्रेस के पास चली गयी. पुलवामा का हमला संसद का हमला बनकर कांग्रेस की मदद करेगा या नहीं, यह आने वाला समय ही बताएगा.
यह बात कांग्रेस को भी पता है कि मोदी जी का तरीका वाजपेयी जी से पूरी तरह उलट है -इसीलिए कांग्रेस को इस सारे नाटक में मिलने वाली सफलता मोदी जी के अगले कदम पर निर्भर है. आज भी हालत यह है कि सब कुछ मोदी जी के हाथ में है -कांग्रेस की सारी उम्मीदें इस बात पर टिकी हैं कि मोदी जी गलती से कोई गलत कदम उठा लें और कांग्रेस की बात बन जाए. ऐसा कुछ होता फिलहाल तो दिख नहीं रहा है- जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि मोदी जी वाजपेयी जी से बिलकुल उलट हैं- सेना को खुली छूट देने के साथ साथ, पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का स्टेटस छीना जाना और हुर्रियत के अलगाववादियों को पिछले 70 सालों से दी जाने वाली सुरक्षा और अन्य सरकारी सुविधाओं का वापस लिया जाना इस बात की तरफ संकेत कर रहा है कि कांग्रेस की मुश्किलें अभी ख़त्म नहीं हुई हैं.