2014 के बाद से ही विपक्षी दलों के तथाकथित नेता और उनके टुकड़ों पर पलने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी, फिल्मकार, कलाकार और साहित्यकार और कुछ मीडिया में बैठे लोग अपनी 60 सालों से चलती दुकान के अचनाक बंद हो जाने के बाद से खासे सदमे में हैं। अपनी खिसियाहट और बौखलाहट को पहले तो इन्होंने सिर्फ मोदी, भाजपा और संघ विरोध तक ही सीमित रखा। इससे उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ तो इन्होने एकजुट होकर एक महाठगबंधन बनाने की चेष्टा भी की।
इस प्रयोग में इन्हे आंशिक सफलता भी मिली और कुछ उपचुनावों में यह जात-पात और धर्म के आधार पर समाज को बांटने में और अनैतिक तरीके से सत्ता हथियाने में कामयाब भी रहे, लेकिन सिर्फ इतने भर से इन लोगों का मन नहीं भरा क्योंकि इन लोगों को अरबों खरबों के बड़े बड़े घोटाले करने का अनुभव था और उनके इस अनुभव का अब मोदी सरकार कोई लाभ उठा नहीं रही है। यह लोग अपने आप को पूरी तरह से बेरोजगार और ठगा हुआ सा महसूस कर रहे हैं।
कर्नाटक में भी इन लोगों को करारी हार का सामना करना पड़ गया और वहां सरकार बनाने के लिए इन्हे काफी असंवैधानिक नाटक करना पड़ा। अनैतिक और असंवैधानिक तरीके से बनाई हुई यह सरकार कितने दिनों चल पाएगी, इसमें इन लोगों को खुद भी काफी संदेह बना हुआ है। इतना सब कुछ होने के बाद भी इन लोगों की हेकड़ी जस की तस बरकरार है और यह मोदी सरकार को हराकर अपने लूटपाट के साम्राज्य को स्थापित करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। मोदी को हराने के लिए इन्होंने एक ऐसा महाठगबंधन बना डाला जिसमे जितने भी लोग हैं, वे सभी पीएम बनना चाहते हैं।
सबकी विचारधाराएं एक दूसरे से पूरी तरह विपरीत हैं। हां इतने विरोधाभास और विपरीत विचारधाराएं होने के बाद भी एक चीज इन सभी को आपस में जोड़े हुए है-वह यह कि एक बार फिर से इन्हे देश को उसी तरह से लूटने-नोचने खसोटने का मौका मिल जाए जिस तरह से यह पिछले ६० सालों से लूट रहे थे। 4-5 वामपंथी नक्सली अभी पुलिस ने हाल ही में गिरफ्तार किए हैं, जिनके कुबूलनामे से यह साफ हो जाता है कि यह लोग अपनी सत्ता की भूख को शांत करने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश भी रच रहे थे।
किसी और देश में अगर यह घटना हुई होती तो अभी तक न्यायपालिका ने खुद ही इस साजिश का संज्ञान लेकर अपराधियों को फांसी पर लटका दिया होता लेकिन हमारे देश में न्यायपालिका के काम करने का तरीका ही कुछ अजीब है। कुछ लोगों के मामले 20-30 साल तक अदालतों में लंबित पड़े रहते हैं और कुछ लोगों के लिए अदालतें रात में भी खोल दी जाती हैं। कुछ जजों को मन माफिक केस आबंटित नहीं हुए तो उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके ‘लोकतंत्र को खतरे’ में बता दिया। अब देखना यही है कि देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचने वालों का खुलासा होने से ‘लोकतंत्र खतरे’ में कब पड़ता है।
देश की जनता इस बात का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है कि जो लोग हर छोटे- मोटे स्वार्थ के पूरा न हो पाने पर लोकतंत्र को खतरे में बता रहे थे, उनके लिए देश के पीएम की हत्या की साजिश के बाद से ‘लोकतंत्र खतरे में ‘ नजर आता है या नहीं।