अखबार-पत्रिकाएं भले ही अभी बंद हों लेकिन उसमें शोर मचानेवाले चुप नहीं हैं. वे सोशल मीडिया में जाकर चिल्ला रहे हैं कि लॉकडाउन की अवधि बढने से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड रहा है, गरीबों-किसानों-दिहाडी मजदूरों के सिर पर आसमान टूट पडा है.
When protests are engineered with a diabolical motive to exploit the ignorance and sensitive mindsets of religious minorities to spread hate and violence, it ceases to be a protest of dissent and becomes a protest of deceit aimed to defile the national unity.