The speed with which this bill got clearance and support from every political party irrespective of ideologies indicates the influence BACKWARD CASTE has on politics.
सरकार से सामान्य वर्ग के लोग आरक्षण का मांग नहीं करते हैं लेकिन स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी में बेसिक भेदभाव ना हो इतना तो सामान्य वर्ग के विद्यार्थी इस भारत से अपेक्षा रखता ही है।
एक तरफ आरक्षण का लाभ लेकर तीन-चार पीढ़ी तक अपने ही लोगों को सांसद, विधायक, मंत्री, अफसर आसानी से बना रहे हैं वही गांव की स्थिति इसके विपरीत बहुत ही खराब हैं।
आज देश कोरोना महामारी के कारण बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहा है, और ऐसे नाजुक समय में झारखंड सरकार द्वारा स्थानीय संरक्षण का हवाला देकर निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण लागू किया जा रहा है।
If the recently announced reservation were just a the political propaganda, they could have added into 9th schedule which the court would have overruled as Congress did in 2014 with Jats reservation.
गरीबी के नाम पे दिया गया आरक्षण किसी भी आरक्षित को ही नहीं पच रहा। जबकि एक आरक्षित ही दूसरे आरक्षित का हक़ मार रहा है जो उसी के समाज का है लेकिन उसके जितना शिक्षित या जानकार नहीं है।
The sudden surprising decision of the government on economically backward classes reservation paves the way for more churning in the political and judicial circles.
Will the guardian angel of Indian democracy, the honorable supreme court, save India and it’s people from the politicians and kill this quota appeasement politics in its bud?