बार–बार दलित–मुस्लिम एकता के दुहाई देने वाले नेता गण इस मामले से बचने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? क्या दलित–मुस्लिम गठजोड़ की बात करना सिर्फ चुनावी स्टंट है? देश में स्वघोषित दलित नेता का दलित प्रेम सिर्फ दिखावा है।
भारतीय संस्कृति के बारे में इतिहासज्ञों एवं विद्वानों के पास एक भी प्रमाण ऐसा नहीं है कि जो इस सनातन संस्कृति को संकीर्ण, परंपरावादी, धर्मांध, नारी विरोधी एवं दलित विरोधी साबित कर सके। किंतु, जब भी कोई दुष्कर्म जैसी घटना होती है तो उसके तमाम संदर्भों को भुलाकर चोट केवल सनातन के प्रतीकों पर होती है।
हाल के ही दिनों में दो प्रमुख घटनाएँ सामने आयीं है जिसे देख के लगता है की भारत में जातिवादी भावना भरी गई है ताकि हिन्दुओं में टकराव बना रहे और कुछ तथाकथिक धर्मनिरपेक्ष राजनितिक दल अपना प्रभाव और प्रभुत्व भारत में बना के रख सकें।
जिन दलित हिंदुओं को तथाकथित मॉब लिंचिंग के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है उनके लिए दलित की राजनीति करने वाले नेताओं का रवैया कैसा रहने वाला है। तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले नेताओं के गले की हड्डी बन चुकी यह घटना अब उनके ना तो निकलते बन रही है और ना ही उगलते।
मेरा दलित होना या नही होने का आधार मेरी जाति या मेरे साथ होने वाला भेदभाव नहीं है अपितु मेरी जाति के तथाकथित ठेकेदारों की विचारधारा है, जो उस भ्रष्ट ठेकेदारी प्रथा के साथ है उनके हिसाब से वो सब दलित है और जो इस विचारधारा के साथ नहीं वो केवल एक कट्टर संघी हिन्दू है।
If Tamil Nadu has to march towards development and sab ka vikas, Dravidian brand politics of hatred, negativity, anti-Hindu, anti-Hindi, anti-God must end.
The initiatives of Vaidyanatha Iyer for the entry of Dalits in Meenakshi temple was the first step towards the abolishing untouchability in Tamil Nadu.